प्राणायाम रहस्य (वैज्ञानिक तथ्यों के साथ) इन हिंदी | Pranayama Rahasya (With Scientific Factual Evidence) PDF Download Free
Pranayama Rahasya (With Scientific Factual Evidence) Book in PDF Download
The rituals of religion, earning money, procreation from divine desire (Shiva-sankalpa) and the accomplishment of salvation - it is absolutely necessary to be healthy in all four senses to fulfill these fourfold efforts. Where the body is diseased, where is happiness, peace and joy? Even if we get wealth, glory, opulence, Ishta-family and name, fame etc., yet if the blood circulation in the body is not done properly, the limbs are not strong and there is no strength in the nerves, that human body is said to be dead. will go. In order to get a healthy body and a healthy mind in human life, Ayurveda was originated, which is very useful even today. Rishis, sages and siddha yogis have invented the yogic process to remove the internal impurities and defects of the body and to purify the inner being and attain perfection through samadhi. Pranayama has a very special importance in yoga processes. Patanjali Rishi has prescribed Ashtanga Yoga for the welfare of human beings. Among them, Yama, Niyama and Asana are under Bahiranga Yoga, which are helpful in purifying the body and mind.
Dharana, Dhyana and Samadhi are included in Antaranga Yoga, which are the means of self-realization and attainment of Kaivalyananda. Pranayama acts as a bridge between inner and outer yoga. If the body is to be healthy and disease-free, or the mind is to be purified or the soul is to be purified, then that is possible only through Pranayama. Through Pranayama, the seeker can attain liberation-in-life only by controlling the attitude and becoming self-centered.
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प्राणायाम रहस्य (वैज्ञानिक तथ्यों के साथ) पीडीएफ में डाउनलोड करे
प्रस्तुत पुस्तक धर्म का अनुष्ठान, अर्थोपार्जन, दिव्यकामना (शिव-संकल्प) से सन्तति-उत्पत्ति तथा मोक्ष की सिद्धि - इन चतुर्विध पुरुषार्थों को सिद्ध करने के लिए सर्वतोभावेन स्वस्थ होना परम आवश्यक है। जहाँ शरीर रोगग्रस्त है, वहाँ सुख, शान्ति एवं आनन्द कहाँ? भले ही धन, वैभव, ऐश्वर्य, इष्ट-कुटुम्ब तथा नाम, यश आदि सब कुछ प्राप्त हो, फिर भी यदि शरीर में रक्त संचार ठीक से नहीं होता, अंग-प्रत्यंग सुदृढ नहीं एवं स्नायुओं में बल नहीं, वह मानव शरीर मुर्दा ही कहा जायेगा। मानव-जीवन में निरोग देह और स्वस्थ मन प्राप्त करने के लिए आयुर्वेद का प्रादुर्भाव हुआ था, जो आज भी अतीव उपयोगी है। शरीर के आन्तरिक मलों एवं दोषों को दूर करने तथा अन्तःकरण की शुद्धि करके समाधि द्वारा पूर्णानन्द की प्राप्ति हेतु ऋषि, मुनि तथा सिद्ध योगियों ने यौगिक प्रक्रिया का आविष्कार किया है। योग प्रक्रियाओं के अन्तर्गत प्राणायाम का एक अतिविशिष्ट महत्त्व है। पतंजलि ऋषि ने मनुष्य मात्र के कल्याण हेतु अष्टांग योग का विधान किया है। उनमें यम, नियम और आसन बहिरंग योग के अन्तर्गत हैं, जो शरीर और मन को शुद्ध करने में सहायक हैं।
धारणा, ध्यान और समाधि अन्तरंग योग के अन्तर्गत हैं, जो आत्मोत्थान एवं कैवल्यानन्द की प्राप्ति के साधन हैं। प्राणायाम अन्तरंग एवं बहिरंग योग के बीच सेतु का कार्य करता है। यदि शरीर को स्वस्थ एवं रोगमुक्त करना हो या मन को पवित्र या आत्मा को निर्मल करना हो, तो वह प्राणायाम से ही सम्भव है। प्राणायाम के द्वारा वृत्ति-निरोध करके और आत्मस्थ होकर ही साधक जीवन्मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
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