गुप्त धन इन हिंदी | Gupt Dhan PDF Download Free
Gupt Dhan Book in PDF Download
Gupt Dhan, गुप्त धन PDF Free download, गुप्त धन PDF किताब, गुप्त धन PDF, गुप्त धन बुक फ्री डाउनलोड, Gupt Dhan PDF Download Free. Fifty-six new stories of Premchand are being given in two volumes of 'Gupt Dhan'. These stories are not new in the sense that so many new manuscripts have been found. How was that? There is so much demand for stories, even an ordinary well-known writer does not have a story left, it is another matter of Premchand.
These stories are new in the sense that for the first time they are coming before the Hindi readers. The sutras are indicated at the end of each story and as you will see, most of these stories we got from Munshiji's Urdu story-collections and old magazines and some were buried in old Hindi magazines. Why these stories did not come from Urdu to Hindi or why they are also in Hindi, why they were not compiled - I cannot say. It is only conceivable that how careless Munshiji was in the matter of handling things, he would not have received these stories in time, he would not have kept the cuttings, the file would have been moved around, some stories might have been omitted from attention. Whatever the case may be, these stories were missed. I am really happy to present this new treasure trove of missing stories, this secret wealth, to you - that the hard work paid off, a kind of work was done. Four stories from 'Soje Watan', which have not appeared anywhere else before, have also been included in this book. In this way, the total number of Premchand's stories about these stories goes from 210 to 266. I estimate that there should be forty-three more stories to be found. Old files of Urdu-Hindi magazines - and files of Urdu magazines even more than Hindi - are not easily found. Often found fragmented. Less well known and weekly-fortnightly papers are often not found. For example, not getting the file of 'Pratap' of Ganesh Shankar Vidyarthi is a matter of great sorrow.
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'गुप्तधन' के दो खण्डों में प्रेमचंद की छप्पन नयी कहानियाँ दी जा रही हैं। ये कहानियाँ इस अर्थ में नयी नहीं हैं कि इतनी नयी पाण्डुलिपियाँ मिली हैं। वह कैसे होता ? कहानियों की जिस क़दर माँग रहती है, साधारण जाने-माने लेखक के पास भी कहानी नहीं बचती, प्रेमचंद की तो बात ही और है।
ये कहानियाँ नयी इस अर्थ में हैं कि हिन्दी पाठकों के सामने पहली बार संकलित होकर आ रही हैं। हर कहानी के अंत में सूत्र का संकेत दिया हुआ है और जैसा कि आप देखेंगे, इनमें से अधिकांश कहानियाँ हमको मुंशीजी के उर्दू कहानी-संग्रहों और पुरानी पत्रिकाओं से मिली हैं और कुछ हैं जो हिन्दी की पुरानी पत्रिकाओं में दबी पड़ी थीं। क्यों ये कहानियाँ उर्दू से हिन्दी में नहीं आयीं या जो हिन्दी में हैं भी, क्यों उन्हें संकलित नहीं किया गया- यह मैं नहीं कह सकता। यही अनुमान होता है कि मुंशीजी चीजों के रख-रखाव के मामले में जिस क़दर लापरवाह थे, समय पर उनको ये कहानियों न मिली होंगी, कटिंग न रखो होगी, फ़ाइल इधर-उधर हो गयी होगी, शायद कुछ कहानियाँ ध्यान से भी उतर गयी हों, जो भी बात रही हो, ये कहानियाँ छूट गयीं। गुमशुदा कहानियों का यह नया खजाना, यह गुप्त धन, आपके सामने रखते हुए मुझे वास्तव में बड़ा हर्ष हो रहा है - यही कि मेहनत ठिकाने लगी, एक ढंग का काम हुआ। 'सोजे वतन' की चार कहानियाँ भी, जो पहले और कहीं नहीं छपीं, इस किताब में शामिल कर ली गयी हैं। इस तरह इन कहानियों को लेकर प्रेमचंद की कुल कहानियों की संख्या २१० से २६६ हो जाती है। मेरा अनुमान है कि अभी तोस-चालीस कहानियाँ और मिलनी चाहिए। उर्दू-हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं की पुरानी फ़ाइलें - और हिन्दी से भी ज्यादा उर्दू पत्र-पत्रिकाओं की फ़ाइलें - आसानी से नहीं मिलतीं। अकसर खण्डित मिलती हैं। कम जाने-माने और साप्ताहिक-पाक्षिक पत्रों की तो प्रायः नहीं मिलतीं। उदाहरण के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी के 'प्रताप' की फ़ाइल का न मिलना बड़े हो कष्ट की बात है। Gupt Dhan, गुप्त धन PDF Free download, गुप्त धन PDF किताब, गुप्त धन PDF, गुप्त धन बुक फ्री डाउनलोड, Gupt Dhan PDF Download Free.
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