Some Excerpts From the Book Gayatri Sadhana Se Kundalini Jagran
In the Puranas, there is a mention of Brahma Ji having two wives. (1) Gayatri (2) Savitri. In fact, behind this allegorical depiction, the feeling of the existence of two main forces of God is shown, the first being consciousness or the para nature, the second matter consciousness or the inferior nature. Whatever activity of mind, intellect, chit, ego, etc. is seen in the universe, it all comes under the para Prakriti or Gayatri Vidya. Gayatri worship leads to the development of feelings to such an extent, by a person gets the benefit of samadhi, heaven, and liberation by connecting with the cosmic consciousness-Parmatma.
The second being of the world is inert nature. The rotation of atoms on their axis and the creation of many substances and the material world through various combinations come under this. The outer life seems to be highly influenced by the atoms of nature, given more importance than the physical life. All streams of science come under this. Today's material progress can be said to be a part of Savitri Sadhana, but its origin has not yet been caught by physical science. That is why human talent seems incomplete even after making the best instruments. It is fulfilled by worshiping Savitri.
Kundalini Sadhana is often discussed in the science of yoga. Kundalini Sadhana is actually the study of the control of material substances by conscious nature. In physics, instruments and instruments are achievable, but no such complex system is necessary for the science obtained by the combination of Para and Apara Prakriti. Only the all-powerful body created by God fulfills those needs. In radio transmission, there is only a one-way system of message transmission, but the body is such a capable device, if one is fully aware of its operation, then man can establish contact with any power-power in any corner of the universe. , can introduce movement and change. Under these means, nuclear power is controlled, used, and launched. It is called life. Prana is actually such a fiery spark that can also be called inert, also conscious. Kundalini Sadhana is the practice of learning to see, develop, control explosions, etc. to see this subconscious atom.
If we look at the India of the past, it comes to know that our progress has not only been spiritual, but it has also reached the highest peak of prosperity and success of the country from a physical point of view. This world has been called Maya, mithya, illusion, jangala, it is a gift of the Middle Ages. The need to maintain harmony and balance in both the expectations has been fulfilled by Kundalini Sadhana. The development of Ritambhara wisdom through Gayatri worship and attainment of material accomplishments and abilities through Kundalini sadhana kept the order of life here perfect. The bliss of direct heaven continued to be experienced in both the world and the hereafter. That is why both Gayatri and Savitri worship have been given equal importance. There is a combination of these two in Kundalini Sadhana. Even today's science cannot do the welfare of humanity without taking the help of this science.
Gayatri and Savitri are complementary to each other. There is no rivalry between them. Like the Ganges and Yamuna, they can be called two Nirjharini of Brahma Himalaya. The truth is that the two are inseparably intertwined with each other. They should be called one life and two bodies. A theologian also needs a body of blood and flesh and its means of subsistence, the sutra operation of substances is not possible without consciousness. Thus this creation sequence is going on with the joint effort of both. If the union of inanimate consciousness disintegrates, then neither of the two will cease to exist. Both will merge into their root cause. It should be called the two wheels of progress, of creation. One without the other is meaningless. Both the crippled philosopher and the idiot man-animal are incomplete. The body has two arms, two legs, two eyes, two lungs, two kidneys, etc. The Brahma body is also preserved with the help of the use of any word like two energy streams, etc. The word wife is just an ornament. Where is the family of conscious beings like human beings? The element of fire has two characteristics - heat and light. If one wants, they can be called two wives of Agni. If these words sound distasteful, then they can be called daughters. Saraswati is said to be the daughter of Brahma and sometimes the wife. It should not be taken as gross human behavior. This rhetorical description is for simile only. Atma Shakti is called Gayatri and material power is called Savitri. Savitri Sadhana is called Kundalini awakening. In it, an attempt is made to remove the dormant distortion of the vital energy in the body. There are two streams of electricity debt and money. When the two meet, power flows. The overall need of spiritual practice is fulfilled by the coordination of Gayatri and Savitri. To get the balanced benefits of Gayatri Sadhana, Savitri Shakti also has to be taken along with her.
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गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण पुस्तक के कुछ अंश
पुराणों में ब्रह्मा जी के दो पत्नी होने का उल्लेख है। (1) गायत्री (2) सावित्री। वस्तुतः इस अलंकारिक चित्रण के पीछे परमात्मा की दो प्रमुख शक्तियों के होने का भाव दर्शाया गया है, पहली भाव चेतना या परा प्रकृती दूसरी पदार्थ चेतना या अपरा प्रकृति। सृष्टि में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि की जो भी क्रियाशीलता दिखाई देती है, वह सब परा प्रकृति अथवा गायत्री विद्या के अन्तर्गत आती है। गायत्री उपासना से भावनाओं का विकास इस सीमा तक होता है, जिससे मनुष्य ब्रह्माण्डीय चेतना-परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ कर समाधि, स्वर्ग, मुक्ति का आनन्द लाभ प्राप्त करता है।
जगत की दूसरी सत्ता जड़ प्रकृति है। परमाणुओं का अपनी धुरी पर परिभ्रमण और विभिन्न संयोगों के द्वारा अनेक पदार्थो तथा जड़ जगत की रचना इसी के अन्तर्गत आती है। बाह्य जीवन प्रकृति परमाणुओं से अत्यधिक प्रभावित प्रतीत होने के कारण भौतिक जीवन में से अधिक महत्व दिया गया है। विज्ञान की समस्त धाराएँ इसी के अन्तर्गत आती है। आज की भौतिक प्रगति को सावित्री साधना का एक अंग कहा जा सकता है, पर उसका मूल अभी तक भौतिक विज्ञान की पकड़ में नहीं आया। इसी कारण अच्छे से अच्छे यंत्र बना लेने पर भी मानवीय प्रतिभा अपूर्ण लगती है। उसकी पूर्णता सावित्री उपासना से होती है।
योग विज्ञान के अन्तर्गत कुण्डलिनी साधना की चर्चा प्रायः होती है। कुण्डलिनी साधना वस्तुतः चेतन प्रकृति द्वारा जड़ पदार्थों के नियंत्रण की ही विद्या है। भौतिक विज्ञान तो उपकरण और यंत्र साध्य होते हैं, पर परा और अपरा प्रकृति के संयोग से प्राप्त विज्ञान में ऐसी कोई जटिल प्रणाली आवश्यक नहीं होती। परमात्मा का बनाया हुआ सर्व समर्थ शरीर ही उन आवश्यकताओं को पूर्ण कर देता है। रेडियो, ट्रांसमिशन में तो केवल संदेश- संप्रेषण की एकांगी व्यवस्था रहती है, पर शरीर एक ऐसा समर्थ यंत्र है, यदि उसके पूरी तरह संचालन की जानकारी हो जाये तो मनुष्य ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने की किसी भी शक्ति सत्ता से सम्पर्क स्थापित कर सकता है, हलचल और परिवर्तन प्रस्तुत कर सकता है। इन साधनों के अन्तर्गत जिस परमाणु शक्ति का नियंत्रण, प्रयोग प्रक्षेपण होता है। उसे प्राण कहते हैं। प्राण वस्तुतः एक ऐसा आग्नेय स्फल्लिंग है जिसे जड़ भी कह सकते हैं, चेतन भी। इस अर्द्धचेतन परमाणु को देखने जानने, विकसित करने, विस्फोट करने नियंत्रित करने, आदि की विद्या का साधना का नाम कुण्डलिनी साधना है।
अतीत कालीन भारत को देखें तो पता चलता है कि हमारी प्रगति आत्मिक ही नहीं रही भौतिक दृष्टि से भी यह देश की समृद्धि और सफलता के उच्च शिखर तक पहुँचा है। इस जगत को माया, मिथ्या, भ्रम, जंजाल कहा गया, यह मध्य युग की देन है। दोनों अपेक्षाओं में संगति संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता कुण्डलिनी साधना द्वारा पूर्ण होती रही है। गायत्री उपासना द्वारा ऋतम्भरा प्रज्ञा का विकास और कुण्ड़लिनी साधना द्वारा भौतिक सिद्धियों सार्मर्थ्यों की उपलब्धि से यहाँ का जीवन क्रम परिपूर्ण बना रहा। लोक और परलोक दोनों में प्रत्यक्ष स्वर्ग की आनन्दानुभूति होती रही। इसीलिए गायत्री और सावित्री दोनों ही उपासनाओं को समान महत्व दिया गया है। कुण्डलिनी साधना में इन दोनों का समन्वय है। इस विज्ञान का सहयोग लिए बिना आज का विज्ञान भी मानवता का कल्याण नहीं कर सकता।
गायत्री और सावित्री दोनों परस्पर पूरक है। इनके मध्य कोई प्रतिद्वन्दिता नहीं। गंगा- यमुना की तरह ब्रह्म हिमालय की इन्हें दो निर्झरिणी कह सकते हैं। सच तो यह है कि दोनों अविच्छिन्न रूप से एक दूसरे के साथ गुँथी हुई हैं। इन्हें एक प्राण दो शरीर कहना चाहिए। ब्रह्मज्ञानी को भी रक्त मांस का शरीर और उसके निर्वाह का साधन चाहिए, पदार्थों का सूत्र संचालन चेतना के बिना सम्भव नहीं। इस प्रकार यह सृष्टि क्रम दोनों के संयुक्त प्रयास से चल रहा है। जड़ चेतन का संयोग बिखर जाय तो फिर दोनों में से एक का भी अस्तित्व शेष न रहेगा। दोनों अपने मूल कारण में विलीन हो जायेंगे। इसे सृष्टि के, प्रगति के दो पहिए कहना चाहिए। एक के बिना दूसरा निरर्थक है। अपंग तत्वज्ञानी और मूढ मति नर -पशु दोनों ही अधूरे हैं। शरीर में दो भुजाएँ, दो पैर, दो आँखें, दो फेंफड़े, दो गुर्दे आदि हैं। ब्रह्म शरीर भी दो शक्ति धाराओं आदि किसी भी शब्द प्रयोग के सहारे यह सृष्टि प्रपंच संजोये हुए है, इन्हें उसकी दो पत्नियाँ, दो धाराऐं आदि किसी भी शब्द प्रयोग के सहारे ठीक तरह वस्तुस्थिति को समझने का प्रयोजन पूरा किया जा सकता है। पत्नी शब्द अलंकार मात्र है। चेतन सत्ता का कुटुम्ब परिवार मनुष्यो जैसा कहाँ है ? अग्नि तत्व की दो विशेषताऐं हैं-गर्मी और रोशनी। कोई चाहे तो इन्हें अग्नि की दो पत्नियाँ कह सकते हैं। यह शब्द अरुचिकर लगे तो पुत्रियाँ कह सकते हैं। सरस्वती को कहीं ब्रह्मा की पुत्री कहीं पत्नी कहा गया है। इसे स्थूल मनुष्य व्यवहार जैसा नहीं समझना चाहिए। यह अलंकारिक वर्णन मात्र उपमा भर के लिए है। आत्मशक्ति को गायत्री और वस्तु शक्ति को सावित्री कहते हैं। सावित्री साधना को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं। उसमें शरीरगत प्राण ऊर्जा की प्रसुप्ति विकृति के निवारण का प्रयास होता है। बिजली की ऋण और धन दो धाराएँ होती हैं। दोनों के मिलने से शक्ति प्रवाह बहता है। गायत्री और सवित्री के समन्वय से साधना की समग्र आवश्यकता पूरी होती है। गायत्री साधना का सन्तुलित लाभ उठाने के लिए सावित्री शक्ति को भी साथ लेकर चलना पड़ता है।
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