स्त्री मुक्ति : हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – सामाजिक | Stree Mukti : Hindi PDF Book – Social (Samajik)
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Stree Mukti pdf free download, Stree Mukti Hindi pdf, Stree Mukti book in Hindi pdf Free Download, Stree Mukti Hindi PDF Download free The author of this author also draws the attention of the poetic Chash Digambar Jain society to one of the main subjects which have been vainly destroying the power of Jainas for centuries and Shvetambara Digambara is the unappreciated root cause of the course of these two annas. The Shvetambaramanyi believe in the salvation of a woman and the Digamvariyas forbid it. Due to this, there has been such a difference of opinion between each other that they do not consider each other to be a Jain, but it is called a falsehood, a person with one income considers the other righteous better than the other one. Often the learned sages and leaders of both the Aajayas say that when there is a deep difference between our religion and faith, then how can we be united amongst ourselves. can. Have faith contrary to the words of God and still call yourself a Jain, then we will never have oneness with such? Other righteous than him who do not change the nature of Jainism.
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इस लेखका लेखक भी कतव्य चश दिगंबर जैन समाज का ध्यान उन विषयों में से एक मुख्य विषय की ओर आकर्षित करता है जो व्यर्थ ही शताब्दियों से जैनस की शक्ति को तोड़ रहे हैं और श्वेताम्बर दिगम्बर इन दो आनाओं के पार्यक्रम के अप्रयोजनभूत मूल कारण हैं। श्वेताम्बराम्नायी स्त्री का मोक्ष होना मानते हैं और दिगम्वरीय इसका निषेध करते हैं। इसी से परस्पर दोनों में ऐसा भेद-विचार हो गया है कि एक दूसरे को जैनी हो नहीं समझते प्रत्युत मिथ्यात्वी कहते हैं, एक आय वाला इतर आम्नायी की अपेक्षा अन्य धर्मी को अच्छा समझता है । प्रायः दोनों ही आझायों के विद्वान् साधु और नेता यह ही कहा करते हैं कि जब हमारे धर्म्म और श्रद्धान में ही गहरा भेद होगया तो फिर हम आपस में संयुक्त हो ही कैसें . सकते हैं। भगवान के वचनों के प्रतिकूल श्रद्धा रखें और फिर भी अपने को जैनी कहें ऐसों से तो हमारा ऐक्य कदापि नहीं होगा? उन से तो अन्य धर्मी ही भले जो जैनधर्म का स्वरूप तो नहीं बद लते
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