हरिवंशराय बच्चन जी की प्रेरणादायक कविता | Inspirational poem by Harivansh Rai Bachchan

हरिवंशराय बच्चन जी की प्रेरणादायक  कविता 

 जब सब कुछ उजड़ जाने के बाद ऐसा लग रहा होता है मानो सब कुछ खत्म हो गया है, और जीवन उस शाम की तरह बोझ है, जिसके ढ़लने की कोई आस नहीं दिखती है तब यह कविता मन में एक प्रकाश-पुंज की भांति एक उत्साह जगाती है। फलत: वो नन्ही चिढ़िया (/हारा हुआ मनुज) फिर से एक आशियाना (घर) बनाने की सोचती है और फिर एक-एक तिनका जोड़कर आशा के संचार का प्रदर्शन करती है। बस इसी एक तिनके या छोटे से प्रयास में बहुत बड़ा परिवर्तन निहित होता है ।

हरिवंशराय बच्चन जी की प्रेरणादायक  कविता  | Inspirational poem by Harivansh Rai Bachchan



नीड़ का निर्माण फिर-फिर,


नेह का आह्वान फिर-फिर!


वह उठी आँधी कि नभ में


छा गया सहसा अँधेरा,


धूलि धूसर बादलों ने


भूमि को इस भाँति घेरा,


रात-सा दिन हो गया, फिर


रात आ‌ई और काली,


लग रहा था अब न होगा


इस निशा का फिर सवेरा,


रात के उत्पात-भय से


भीत जन-जन, भीत कण-कण


किंतु प्राची से उषा की


मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!


नीड़ का निर्माण फिर-फिर,


नेह का आह्वान फिर-फिर!


वह चले झोंके कि काँपे


भीम कायावान भूधर,


जड़ समेत उखड़-पुखड़कर


गिर पड़े, टूटे विटप वर,


हाय, तिनकों से विनिर्मित


घोंसलो पर क्या न बीती,


डगमगा‌ए जबकि कंकड़,


ईंट, पत्थर के महल-घर;


बोल आशा के विहंगम,


किस जगह पर तू छिपा था,


जो गगन पर चढ़ उठाता


गर्व से निज तान फिर-फिर!


नीड़ का निर्माण फिर-फिर,


नेह का आह्वान फिर-फिर!


क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों


में उषा है मुसकराती,


घोर गर्जनमय गगन के


कंठ में खग पंक्ति गाती;


एक चिड़िया चोंच में तिनका


लि‌ए जो जा रही है,


वह सहज में ही पवन


उंचास को नीचा दिखाती!


नाश के दुख से कभी


दबता नहीं निर्माण का सुख


प्रलय की निस्तब्धता से


सृष्टि का नव गान फिर-फिर!


नीड़ का निर्माण फिर-फिर,


नेह का आह्वान फिर-फिर!


-हरिवंशराय बच्चन

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