जाट इतिहस इन हिंदी | Jat Itihas PDF Download Free
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The pride of the Jat-caste - the sun was shining brightly at one time, each of its people was self-respecting and warrior. He had kingdoms, palaces and land. Where he is seen subsistence only by farming, then some consider him Vaishya and some only farmer Jat. Even wishing to say something against this statement, I cannot say, because he did not preserve any certificate (history) of his high position of his pride. A foreign historian has written - When the Jats were asked to erect a mausoleum, inscription and stupa for their memorial, they would say that Sadguga is the only true monument. 'At this time also this is the same thing in many minds of Jats. Just now while speaking at the Jat Vidyarthi Parishad in Pilani, a well-educated Jat had reiterated the same point. The essence of his words is as follows - "I have heard that some gentleman is writing "Jat history", it would have been better to have a Jat boarding house built in Pilani than the amount of money that would be spent in the printing of history."
The Jat people did not realize the need of history. Other castes paid full attention to this. Its fruit came to the fore. Those who respected history are respected by everyone today. Jats should think for themselves whether their place in the society has fallen due to neglect of history or no Who is in the public eye today in Bharatpur and Chittor? Chittor | Why ? That's why the people of Chittor got their works publicized by the barons, by the bhats, by the writers - got its history prepared. Chittor was climbed from Delhi side. It happened at Bharatpur also. But Chittor never went on climbing Dehli. Bharatpur merged Delhi in the nose. The thing that went to Delhi from Chittor, Bharatpur brought it home from Delhi. But Bharatpur did not keep any evidence (history) of these events and acts, nor did any expenditure for its publicit
Like the Jats, other nations do not want to remain ignorant of the benefits of history and did not live before. He has spent lakhs of rupees for this work. We have seen many histories of many small Rajput princely states, but not a single history of big and big princely states of Jat Others took great advantage of seeing such indifference to the history of the Jats. Somewhere he was written the son of Rajputs and somewhere Varnashankar. When foreign writers did not see any of their own history, many brought me so much that they even wrote rude and savage.s.y.t?
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जाट-जाति का गौरव-सूर्य किसी समय खूब चमका था, उसका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभिमानी और योद्धा था। उसके राज्य थे, रिसाले थे और भूमि थी । जहाँ उसे केवल खेत करके जीवन निर्वाह करते देखा जाता है तो कोई उसे वैश्य अनुमान करता है और कोई केवल किसान जाट । इस कथन के विरुद्ध कुछ कहने की इच्छा रखते हुए भी कह नहीं सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने गौरव का अपने उच्च पद का कोई प्रमाण पत्र ( इतिहास ) सुरक्षित नहीं रक्खा | एक विदेशी • इतिहासकार ने लिखा है-जाटों से जब कहा जाता कि अपने स्मारक के लिए कोई समाधि, लेख व स्तूप खड़ा कीजिये तो वे कहते सद्गुगा ही सच्चा स्मारक है' । 'इस समय भी जाटों के अनेकों दिमागों में यही बात है। अभी पिलानी में जाट विद्यार्थी परिषद् में बोलते हुए एक पढ़े लिखे कहे जाने वाले जाट ने इसी बात को दुहराया था। उसके शब्दों का सार इस प्रकार है-"मैंने सुना है कोई सज्जन "जाट इतिहास" लिख रहे हैं, उससे तो अच्छा यह होता कि जितना रुपया इतिहास की छपाई में लगाया जायगा पिलानी में जाट बोर्डिंग हौस बनवा दिया जाता ।"
जाट लोगों ने इतिहास की आवश्यकता को अनुभव नहीं किया। दूसरी जातियों ने इस ओर पूरा ध्यान दिया। उसका फल सामने आया। जिन्होंने इतिहास की क़द्र की उनकी आज सब कद्र करते हैं। जाट अपने विषय में खुद सोच लें कि इतिहास की उपेक्षा करने के कारण समाज में उनका स्थान गिरा या नहीं ?
भरतपुर व चित्तौड़ में आज कौन लोक निगाह में चढ़ा हुआ है ? चित्तौड़ | क्यों ? इसीलिए कि चित्तौड़ के लोगों ने चारणों से, भाटों से, लेखकों से अपने कृत्यों का प्रचार कराया- उसका इतिहास तयार कराया। चित्तौड़ पर देहली की ओर से चढ़ाइयाँ हुईं। भरतपुर पर भी हुईं। किन्तु चित्तौड़ देहली पर चढ़ कर कभी नहीं गया। भरतपुर ने दिल्ली को नाक में मिला दिया। चित्तौड़ से जो वस्तु दिल्ली गई, भरत पुर उसे दिल्ली से घर ले आया। किन्तु भरतपुर ने इन घटनाओं और कृत्यों का कोई प्रमाण ( इतिहास ) नहीं रक्खा, न उसके प्रचार के लिए कुछ व्यय किया ।
जाटों के समान दूसरी क़ौमें इतिहास के लाभों से अनभिज्ञ नहीं रहना चाहतीं और न पहिले रहीं। उन्होंने इस काम के लिए लाखों रुपये व्यय किये हैं। हमने कई छोटी-छोटी राजपूत रियासतों के कई-कई इतिहास देखे हैं, किन्तु जाटों की बड़ी-बड़ी रियासतों का एक भी इतिहास नहीं मिला।
दूसरे लोगों ने जाटों के इतिहास के प्रति ऐसी उदासीनता देख कर खूब लाभ उठाया। कहीं उन्हें राजपूतों की औलाद लिखा तो कहीं वर्णशङ्कर । विदेशी लेखकों ने जब इनका कोई भी अपना इतिहास नहीं देखा, तो कई तो इतना मुझ लाये कि असभ्य और जंगली तक लिख गये ।
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भर्मित और तथ्यहीन किताब
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