करवा चौथ व्रत कथा (कहानी) | Karva Chauth Vrat Katha & Pooja Vidhi PDF in Hindi
Karwa Chauth Katha Book in PDF Download
karva Chauth fast
Karva Chauth fast is observed on the Chaturthi of Krishna Paksha of Kartik month. The married women observe this fast for the long life of their husband. Suhagins should observe Nirjala fast on this day. When the moon rises at night, she should be offered Arghya and take food after taking blessings from her husband.
karva chauth fast worship method
Keep a fast on the day of Karva Chauth and keep a back full of water on a leash. Keep wheat in an earthen bowl and sugar in the lid and money as per the capacity. Worship Ganpati with Roli, Rice, Jaggery etc. Make a swastika on the Karve with Roli and place 13 dots. Put a bindi yourself and listen to the story by taking 13 grains of wheat in the right hand. After listening to the story, touch the feet of your mother-in-law. And give it to them. Keep the water bottle and wheat grains separately. When the moon rises in the night, put wheat grains in water and offer it Arghya, then eat food. If you have heard the story from Panditaine, give him wheat, sugar, and money. If the sister is a daughter, give her wheat, sugar, and money.
karva Chauth fasting story
A moneylender had one daughter and seven sons. On the day of Karva Chauth, the moneylender's wife, daughter and daughter-in-law observe a fast. When the moneylender's sons started eating at night, he asked his sister to eat. Sister said- "Brother! The moon has not come out yet, I will eat food by offering arghya when it comes out." On this, the brothers went out of the city and lit the fire, taking a sieve and showing light from it, said to the sister - "Sister! The moon has come out. Have food by offering Arghya."
The sister also called her sisters-in-law to offer Arghya to the moon, but they knew the actions of their husbands. He said- "Baiji! The moon has not come out yet. Your brothers are cleverly showing the light of the fire through a sieve."
But the sister did not pay attention to the words of the sisters-in-law and ate food by offering arghya to the light shown by the brothers. Thus breaking the fast made Ganesha angry with him. After this her husband became seriously ill and whatever was in the house was added to his illness. When the moneylender's daughter came to know of her fault, she was filled with remorse. After praying for forgiveness from Ganesh ji, he again started fasting on Chaturthi by law. He devoted his mind to taking the most blessings, while giving respect to everyone according to reverence. Thus seeing his deed with devotion, Ganesha became pleased with him. She gave life to her husband, after freeing him from illness, made him endowed with wealth.
In this way, whoever observes the fast of Chaturthi with devotion and devotion, free from deceit, he will be free from troubles and thorns while being happy in all respects.
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करवा चौथ व्रत
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। सुहागिनें पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु यह व्रत करती हैं। सुहागिनों को इस दिन निर्जला व्रत रखना चाहिए। रात्रि को चन्द्रमा निकलने पर उसे अर्घ्य देकर पति से आशीर्वाद लेकर भोजन ग्रहण करना चाहिए।
करवा चौथ व्रत पूजन विधि
करवा चौथ के दिन व्रत रखें और एक पट्टे पर जल से भरा लौटा रखें। मिट्टी के एक करवे में गेहूं और ढक्कन में चीनी व सामर्थ्यानुसार पैसे रखें। रोली, चावल, गुड़ आदि से गणपति की पूजा करें। रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं और 13 बिन्दियां रखें। स्वयं भी बिन्दी लगाएं और गेहूं के 13 दाने दाएं हाथ में लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अपनी सासूजी के चरण स्पर्श करें। और करवा उन्हें दे दें। पानी का लोटा और गेहूं के दाने अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रोदय होने पर पानी में गेहूं के दाने डालकर उसे अर्घ्य दें, फिर भोजन करें। यदि कहानी पंडिताइन से सुनी हो तो गेहूं, चीनी और पैसे उसे दे दें। यदि बहन बेटी हो तो गेहूं, चीनी और पैसे उसे दे दें।
करवा चौथ व्रत कथा
एक साहूकार के एक पुत्री और सात पुत्र थे। करवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, बेटी और बहुओं ने व्रत रखा। रात्रि को साहूकार के पुत्र भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने के लिए कहा। बहन बोली- "भाई! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है, उसके निकलने पर मैं अर्घ्य देकर भोजन करूंगी।" इस पर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा- "बहन! चन्द्रमा निकल आया है। अर्घ्य देकर भोजन कर लो।"
बहन अपनी भाभियों को भी बुला लाई कि तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो, किन्तु वे अपने पतियों की करतूतें जानती थी। उन्होंने कहा- "बाईजी! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है। तुम्हारे भाई चालाकी करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।"
किन्तु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने से गणेश जी उससे रुष्ट हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की पुत्री को जब अपने दोष का पता लगा तो वह पश्चाताप से भर उठी। गणेश जी से क्षमा प्रार्थना करने के बाद उसने पुनः विधि-विधान से चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका आदर-सत्कार करते हुए, सबसे आशीर्वाद लेने में ही उसने मन को लगा दिया। इस प्रकार उसके श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देख गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे उसे बीमारी से मुक्त करने के पश्चात् धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया।
इस प्रकार जो कोई छल-कपट से रहित श्रद्धाभक्तिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करेगा, वह सब प्रकार से सुखी होते हुए कष्ट-कंटकों से मुक्त हो जाएगा।
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