Mahalakshmi Vrat Katha Book in PDF Download
Om Shree Ganeshaya Namaha . King Yudhishthira says that O Purushottam! After thinking, make such a fast that by doing which your lost fearful place (the kingdom etc. which have been left) will be found again and the fruits of opulence, son, you etc. can be attained. Shri Krishna says, O Yudhishthira! of Satyayug
Om Shree Ganeshaya Namaha . Yudhishthira Uvacha || In situ profit putrayu: sarvesvaryafalpradam. Vratmekam sama sattva vicharya purushottam 1 Krishna Uvacha Durvare Chaiva Daityendre Parivyapttrivishtape. Et dev kritsyadou devendrah prah nardam 2 Tasya srutva tato sentences sa munih pratyabhat. Narada Uvacha Purandara Puram Purva Paramasitsushobhitam. 3
In the beginning, when such a Vritrasura, capable of getting rid of sorrow, pervaded the heavens (that is, he started giving great trouble to the deities) and Indra had also said the same thing to Naradji. 2 At that time, listening to Indra's words, Narada Muni said, O Purandar, O Indra. Earlier there was a very beautiful city. 3
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श्रीगणेशाय नमः ॥ राजा युधिष्ठिर कहते हैं कि हे पुरुषोत्तम ! विचारकर एक ऐसा व्रत बललाइये कि जिसके करने से अपना नष्ट भया हुवा स्थान (राज्यादि जो छूट गये हों) फिर मिलें और सय ऐश्वर्य, पुत्र, आपु आदि फलोंकी प्राप्ति हो॥१॥ श्रीकृष्णजी कहते हैं हे युधिष्ठिर! सत्ययुग के
श्रीगणेशाय नमः ॥ युधिष्ठिर उवाच || स्वस्थान लाभपुत्रायुः सर्वेश्वर्यफलप्रदम् ॥ व्रतमेकं समा सत्व विचार्य पुरुषोत्तम ॥ १ ॥ कृष्ण उवाच ॥ दुर्वारे चैव दैत्येन्द्रे परिव्याप्तत्रिविष्टपे ॥ एत देिव कृतस्यादौ देवेन्द्रः प्राह नारदम् ॥ २ ॥ तस्य श्रुत्वा ततो वाक्यं स मुनिः प्रत्यभाषत । नारद उवाच ॥ पुरन्दर पुरं पूर्व परमासीत्सुशोभितम् ॥ ३ ॥
आरम्भ में दुःखसे वारण करने योग्य ऐसे वृत्रासुरने स्वर्ग जब व्याप्त कर लिया (अर्थात् देवताओंको बहुत त्रास देने लगा) तथ यही बात नारदजीसे इन्द्रने भी कही थी॥ २ ॥ उस वक्त इन्द्रको वाक्यको सुनकर नारद मुनि बोले हे पुरन्दर, हे इन्द्र | पहले एक अत्यंत सुन्दर नगर था ॥ ३ ॥
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महालक्ष्मी व्रत कथा | Mahalakshmi Vrat Katha PDF | |
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