मनोविज्ञान इन हिंदी | Manovigyan PDF Download Free
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Psychology is the study of the mental process of man. For this study, mental processes can be divided into cognitive, affective, and volitional experiences. Sensation, perception, thought and reasoning are the specific forms of cognitive experience. Similarly feelings, emotions, etc., are different forms of emotional experience, and various natural or acquired desires and motivations are different forms of volitional experience.
All these three qualities are found in every experience of life. They are so closely related that they cannot be separated – that is, every experience is a composite of all three. For example, although cognitive experience is predominant in perception, it also has the influence of emotion and motivation. Individuals often see and understand only those things in which they are interested and in each of their experiences, a feeling of satisfaction or dissatisfaction is present, expressed or latent. Similarly, in every material experience both inspiration and knowledge are found. In anger, the person does not only have emotion, his anger is towards some subject, and there is a strong desire to change the situation that provokes anger.
A person's behavior is often a manifestation of his mental process. We infer from a person's behavior what is attracting his attention, what emotion he is experiencing, what his desire is, and how strong it is.
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प्रस्तुत पुस्तक मनोविज्ञान मनुष्य की मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन है। इस अध्ययन के लिए मानसिक प्रक्रिया को ज्ञानात्मक, भावात्मक, तथा इच्छात्मक अनु भव में विभाजित किया जा सकता है। संवेदना प्रत्यक्षीकरण, चिन्तन, विचार तथा तर्क आदि ज्ञानात्मक अनुभव के ही विशिष्ट रूप हैं। इसी प्रकार भावना, संवेग आदि मावात्मक अनुभव के, और विभिन्न नैसर्गिक या अर्जित इच्छाएँ और प्रेरणाएँ इच्छात्मक अनुभव के विभिन्न रूप हैं।
जीवन के प्रत्येक अनुभव में यह तीनों ही गुण पाये जाते हैं। इनमें परस्पर इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि इन्हें अलग-अलग नहीं किया जा सकता - अर्थात्, प्रत्येक अनुभव इन तीनों का सम्मिलित रूप है। जैसे, प्रत्यक्षीकरण में यद्यपि ज्ञानात्मक अनुभव की प्रधानता अवश्य है, किन्तु उसमें भावना और प्रेरणा का प्रभाव भी रहता है। व्यक्ति प्रायः वही चीजें देखते और समझते हैं जिनमें उन्हें रुचि रहती है और उनके प्रत्येक अनुभव में सन्तोष या असन्तोष की भावना मी व्यक्त या अव्यक्त रूप से वर्तमान रहती है। इसी प्रकार प्रत्येक मावात्मक अनुभव में प्रेरणा और ज्ञान दोनों ही पाये जाते हैं। क्रोध में व्यक्ति को केवल भावावेश ही नहीं होता, उसका क्रोध किसी विषय के प्रति होता है, और उसमें क्रोध उत्तेजित करनेवाली स्थिति को बदल देने की इच्छा प्रबल हो उठती है।
व्यक्ति का व्यवहार बहुधा उसकी मानसिक प्रक्रिया का प्रगट रूप ही होता है। हम व्यक्ति के व्यवहार से यह अनुमान लगा लेते हैं कि उसका ध्यान किस ओर आकर्षित है, उसे किस संवेग का अनुभव हो रहा है, उसकी इच्छा क्या है, और वह कितनी प्रबल है।
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