धम्मपदपालि | Dharmmapada Pali |
Some Excerpts From the Book Dharmmapada Pali
Excellent recognition of Dhammapada - Although to say that the collectors have collected the Dhammapada in small texts under the Khuddakanikaya in terms of size, but (even though the size is small) (every Buddhist has a very revered feeling towards it; Because It contains all the principles of Buddhism. Along with the Four Noble Truths and the Noble Eightfold Path, there is also a strong command of the Lord to follow various virtues. On studying this carefully, we can heart the entire outline of Buddhism.
It is our firm belief that in the present materialistic period, these Bahujan welfare words of the Lord are available to every man, irrespective of the country, of any caste, of any age, to all. can be benevolent.
About 2200 years ago from today, Emperor Ashoka had reverently listened to only the initial part of this book from scholars, due to the influence of his conduct, he did so many philanthropic works in his time and ruled ideally that his name was on the pages of history. Even today it is inscribed in golden letters.
Therefore, this book has the same reverence, reverence and worship in the heart of Buddhists as a Hindu has for the Vedas or Gita and a Christian believer has towards the Bible or a Parsi has towards the Avesta. In this way we can say that this Dhammapada text has been considered of equal importance among scholars both at the literary and religious level. Such texts are uncountable in the world.
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धम्मपदपालि पुस्तक के कुछ अंश
धम्मपद की अत्युत्कृष्ट मान्यता- यद्यपि कहने के लिये तो संग्रहकारों ने आकार की दृष्टि से धम्मपद का संग्रह खुद्दकनिकाय के अन्तर्गत लघु ग्रन्थों में किया है, परन्तु (आकारदृष्ट्या छोटा होने पर भी) ( प्रत्येक बौद्ध के हृदय में इसके प्रति अत्यधिक पूजनीय भाव है; क्योंकि इसमें बौद्ध धर्म के सभी सिद्धान्तों का समावेश मिलता है। चार आर्यसत्य एवं आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग के साथ साथ विविध सदाचारों के पालन का भी दृढता से भगवान् का आदेश है। इसका समीचनतया अध्ययन करने पर हम बौद्ध धर्म की समस्त रूपरेखा हृदयङ्गम कर सकते हैं।
हमारा यह दृढ विश्वास है कि वर्तमान भौतिकवादी काल में भगवान् के ये बहुजन कल्याणकारी वचन प्रत्येक पुरुष के लिये, भले ही वह पुरुष किसी भी देश का वासी हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी आयु का हो, सभी के लिये अधिक से अधिक कल्याणकर हो सकते हैं।
आज से प्रायः २२०० वर्ष पूर्व सम्राट् अशोक ने इस ग्रन्थ के केवल प्रारम्भिक अंश का ही विद्वानों से श्रद्धापूर्वक श्रवण किया था, उसी पर आचरण के प्रभाव प्रताप से अपने समय में उसने इतने लोकोपकारी कार्य किये एवं आदर्श शासन किया कि उसका नाम इतिहास के पृष्ठों पर आज भी स्वर्णाक्षरों में अङ्कित है।
अतएव इस ग्रन्थ का बौद्धों के हृदय में वही आदर, श्रद्धा तथा पूजा भाव है जो किसी हिन्दू का वेद या गीता के प्रति तथा किसी ईसा मतावलम्बी का बाइबिल के प्रति या किसी पारसी का अवेस्ता के प्रति होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि विद्वानों में इस धम्मपद ग्रन्थ का साहित्यिक एवं धार्मिक-दोनों ही स्तरों पर समान महत्त्व माना गया है। ऐसे ग्रन्थ संसार में अङ्गुलिगणनीय ही हैं।
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Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
धम्मपदपालि / Dharmmapada Pali PDF | |
स्वामी द्वारिकादास शास्त्री / Swami Dwarika Das Shastri | |
Hindi | |
धार्मिक / Religious |
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