Shankaracharya Jivan Charitra |
Some Excerpts From the Book Shankaracharya Jivan Charitra
Lord Shankaracharya was born in Vikram's 8th century. Earlier, before the emergence of Mahatma Buddha, the Aryan race was divided into many parts and started following different religions. The Chayadamvaras had taken the place of real religion. People used to understand that salvation can be achieved only without yoga and penance. There was a fierce propaganda of Shaktadha-dharma and Vaammarga. Religion was being understood only in sacrificing animals and animals. By meeting the teachings of Vedas and Puranas, people did not get frustrated in sacrificing even human beings. All over the country, the market of ana char and adultery was heating up. By saying that liquor, meat, fish and sex are the main religions, the door of horrific adultery was freed. Sacrifice was predominant in all kinds of deities. At that time, if an absolute man had seen the religious activities of a degraded virtuous Aryan race, he could not even recognize it by seeing the distorted form of the Aryan race! The ancestral sages and sages, who had prepared invaluable texts for future children after analyzing spirituality, spiritual thinking, wonderful religion, their children started giving religion to alcohol, meat and adultery and sacrifice, leaving the real religion. At this time i.e. 600 years before AD, Mahatma Buddha was born.
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शंकराचार्य जीवन चरित्र पुस्तक के कुछ अंश
भगवान् शङ्कराचार्यका जन्म विक्रमकी ८ वीं शताब्दी में हुआ था। इससे पहले महात्मा बुद्धके प्रादुर्भावसे पहले, आर्यजाति अनेक भागों में विभक्त होकर नाना धर्मों का पालन करने लगी थी। चाह्याडम्वरोंने वास्तविक धर्मके स्थानको ग्रहण कर लिया था। लोग समझते थे कि विना योग और तपके ही मुक्ति हो सकती है ! शाक्तध-धर्म और वाममार्गका प्रचण्ड प्रचार हो गया था। जीव-जन्तुओं और पशुओंका बलिदान करने में ही धर्म समझा जाने लगा था। वेदों और पुराणोंकी शिक्षाको मुला कर लोग मनुष्य तकका वलिदान करनेमे कुण्ठित नहीं होते थे ! समस्त देशमें अना चार और व्यभिचारका बाजार गरम हो रहा था। मद्य, मांस, मछली और मैथुनको ही मियोंने प्रधान धर्म बता कर भीपण व्यभिचारका द्वार उन्मुक्त कर दिया था। सभी तरहकी देव-वन्दनाओंमें बलिदान प्रथाका बाहुल्य था। उस समय यदि कोई निरपेक्षं मनुष्य बिगड़ी हुई व्यध:पतित आर्यजातिके धार्मिक कार्यकलाऐंको देखता तो, आर्य जातिके विकृत रूपको देख कर उसे पहचान तक न सकता ! जिस जातिके पूर्वपुरुषा ऋषि-मुनिगण अध्यात्म-चिन्तन, व्अद्भुत धर्म विश्लेषण करके भावी सन्तानोंके लिये अमूल्य ग्रन्थ रच कर रख गये थे, उन्हीं की सन्तान वास्तविक धर्मको छोड़ कर मद्य, मांस और व्यभिचार तथा बलिदानको धर्म बताने लगी थी। इसी समय अर्थात् ईस्वी सनसे ६ सौ वर्ष पूर्व महात्मा बुद्धका जन्म हुआ।
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शंकराचार्य जीवन चरित्र | Shankaracharya Jivan Charitra PDF | |
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