Some Excerpts From the Book Brahamand Maha Puran
This is the last Purana among the Puranas. It has got an important place in the Puranas of high order. In praise of this, the Puranakars went so far as to declare it like a Veda. This means that for the purpose for which the reader studies the Vedas, he gets that kind of material here also and he can make life four-faced.
The tradition of reading, reading, contemplating and studying this Purana is also commendable. The Guru gave this knowledge from among his disciples to his best disciple considering it as his character so that its tradition would continue at a constant pace. Lord Prajapati gave this elemental knowledge to Vasistha sage, Lord Vasistha Rishi gave this elemental knowledge in the form of supreme virtuous nectar to his grandson Parashara, son of Shakti. In ancient times Lord Parashara taught this supreme transcendental knowledge to Jatukarnya Rishi, Jatukarnya Rishi to Param Syammi Dvapayana. The Dvapayana sage, like Shruti, taught this wonderful Purana to his five disciples Jaimini, Sumantu, Vaishampayana Pailava and Lomaharshana. The yarns were extremely humble, religious and holy. Therefore, he was taught the Purana containing this wonderful story. It is believed that Sutji had heard this Purana from Lord Vyas Dev Ji. It was this supremely knowledgeable Sut ji who had discoursed this Purana to Mahatma sages in Naimisharanya. The same knowledge is in front of us today.
The characteristics of the Puranas are - Sarga means creation and Prati Sarga means creation from that creation, description of descendants, Manvantara means narration of Manus. This means that which Manu came after whom? The existence of these five things is the characteristic of the people in the lineages. All these symptoms are present in this Purana.
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ब्रह्माण्डमहापुराण पुस्तक के कुछ अंश
पुराणों में यही अन्तिम पुराण है। उच्च कोटि के पुराण में इसे महत्व पूर्ण स्थान प्राप्त है। इसकी प्रशंसा में पुराणकार यहाँ तक चले गये कि उन्होंने इसे वेद के समान घोषित किया। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पाठक जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वेद का अध्ययन करता है, उस तरह को विषय सामग्री उसे यहाँ भी प्राप्त हो जाती है और वह जीवन को चतु मुखी बना सकता है।
इस पुराण के पठन-पाठन, मनन-चिन्तन और अध्ययन की परम्परा भी प्रशंसनीय है। गुरु ने अपने शिष्यों में से इसका ज्ञान अपने योग्यतम शिष्य को उसका पात्र समझ कर दिया ताकि इसकी परम्परा अवाध गति से निरन्तर चलती रहे। भगवान प्रजापति ने वसिष्ठ मुनि को, भगवान वसिष्ठ ऋषि ने परम पुण्यमय अमृत के अदृश इस तत्व ज्ञान को शक्ति के पुत्र अपने पौत्र पाराशर को दिया। प्राचीन काल में भगवान पाराशर ने इस परम दिव्य ज्ञान को जातुकूर्ण्य ऋषि को, जातुकर्ण्य ऋषि परम संयमी द्वपायन को पढ़ाया। द्वपायन ऋषि ने श्रुति के समान इस अद्भुत पुराण को अपने पाँच शिष्यों जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन पेलव और लोमहर्षण को पढ़ायां । सूत परम विनम्र, धार्मिक और पवित्र थे। अतः उनको यह अद्भुत वृतान्त वाला पुराण पढ़ाया था। ऐसी मान्यता है कि सूतजी ने इस पुराण का श्रवण भगवान व्यास देव जी से किया था। इन परम ज्ञानी सूत जी ने ही नैमिषारण्य में महात्मा मुनियों को इस पुराण का प्रवचन किया था। वही ज्ञान आज हमारे सामने है।
पुराण का लक्षण है--सर्ग अर्थात् सृष्टि और प्रति सर्ग अर्थात् उस सृष्टि से होने वाली सृष्टि, वंशों का वर्णन, मन्वन्तर अर्थात् मनुओं का कथन । इसका तात्पर्य यह है कि कौन-कौन मनु किस-किस के पश्चात् हुए ! वंशों में होने वालों का चरित यह ही पांचों बातों का होना पुराण का लक्षण है। यह सभी लक्षण इस पुराण में उपस्थित हैं।
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ब्रह्माण्ड पुराण (भाग 1) | Brahmand Puran (Part 1) PDF | |
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