श्री भगवान् वेदव्यास जी ने संसारी जीवों को संसार सागर से उत्तीर्ण होने के लिये नौकारूपी अष्टादशपुराण व बहुत से उपपुराण विरचित किये-उनमें से एक यह आदि ब्रह्मपुराण भाषा भी है ॥
इस पुराण में ब्रह्मा से लेकर सम्पूर्ण सुर, असुर, म- नुष्य, पशु, पक्षी,कीट,पतङ्गादि चौरासी योनियों की उत्पत्ति व सम्पूर्ण अण्डकोशान्तर्गत नदी, नद, पर्वत,वन, उपवनादिकों का विस्तार वर्णनकियागया है जिसेपढ़ कर मनुष्य इस विधाता की अपरम्पार सृष्टि का वृत्त सहजमें समझने लगता है ।
ऐसा लाभकारी ग्रन्थ अबतक संस्कृत में होने के का रण से भाषा मात्र के पठन पाठन कुत्ता पुरुष अच्छे प्रकार इसके अभ्यन्तर को न जान सक्ते थे इसलिये सम्पूर्ण भारतेतिहासाकां्षि पुरुषोंके अवलोकनार्थ व बुद्धिबो- धार्थ सन्तत धर्म धुरीए श्रीमान् मुन्शीनवलकिशोरजी ने बहुत साधन व्यय करके रोहतक प्रदेशान्तर्गत बेरी - ग्रामनिवासि पण्डित रविदत्तजीकेद्वारा संस्कृत से भाषा में प्रतिश्लोक का उल्थाकराकर स्वयंत्रालय में मुद्रित कराय प्रकाशितकिया-आशाहै कि जो महात्मा विद्वान् इसका अवलोकन करेंगे प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करेंगे। इसके सिवाय इस छापेखाने में और भी बहुत वि- षय की पुस्तकें संस्कृत से भाषामें उल्थाहोकर मुद्रित हुई है।
No comments:
Post a Comment