कुण्डलिनी जागरण की विधि pdf | Kundalini Jagran PDF Download
कुण्डलिनी जागरण |
Kundalini Jagran Hindi Book in PDF Download
Its energy has been towards the body since infinite births. The work that becomes power. But when it is awakened by the yogic method, it starts flowing upwards towards the soul, and falling down in sex, becomes only pulsating towards the body while sleeping, this energy is sleeping very near the center of puberty. When the Kundalini awakens, the whole body becomes full of energy. The whole world universe seems to be absorbed in itself, it seems within itself, a flood of energy has come. The river broke, the seeker went on drowning in it. But even this drowning seemed enjoyable. If there is Guru's grace at this time, then energy is absorbed with twice the power. As the water of Kundalini river is rising from below and Guru's grace is rising from above.
When it is raining in the form of blessings or shaktipat, then the sadhna of the seeker gets four moons. The awakening of Kundalini means the flood of the river is its own. shaktipat
belongs to the Guru. Although both are possible only indirectly. We just have to be eligible. Customer is to be kept only in yourself. Yes, when the Kundalini awakens, as the water of the flood pours out from all sides, in the same way there is an attack of subtle energy from all sides. Ordinary seekers become deranged or insane, because the dam of water, energy is broken. Which can only be controlled by a clever aspirant. Some people try to awaken Kundalini by reading a book. The result of which becomes dire. Some learned gurus unknowingly give instructions to the disciple. Due to which when the energy is awakened, it is not able to handle it. Then he starts vomiting blood or becomes a victim of various diseases. Their life becomes difficult. Such misguided seekers have come to me. Which are very difficult to handle. Because in this difficult situation, creating a terrible mental pulsation in that seeker, it can completely destroy his nerves and body-mind by shaking his nerves. Therefore, you should get instructions only from a knowledgeable guru.
This power seems to be the same as if hundreds of thousands of thousands of watt bulbs have been installed in a room, about which there is no prior knowledge and the switch is turned on as soon as you enter the room, the eye will suddenly fall into dazzle. The intellect will be stunned, the same is the condition of Kundalini. From it a huge snake can also be seen in the form of light and colorful form like hundreds of suns. Various instruments are also heard. Everything is an untoward incident for the seeker. When this Kundalini moves in an upward motion, the chakra it reaches blossoms from downward to upward facing. is filled with light. In this way, when the Kundalini of a yogi with various experiences and powers, crossing all the chakras, reaches Sahasrara, then after consuming all the vrittis, he attains Asamprajnata Samadhi. When Kundalini is awakened, different types of power and experience are obtained.
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इसकी ऊर्जा अनंत जन्मों से शरीर की तरफ रही है । जो काम शक्ति बन जाती है। परंतु जब योग युक्ति द्वारा इसे जगाया जाता है तो वह उर्ध्वगामी होकर आत्मा की तरफ बहने लगती है तथा काम में अधोगामी होकर शरीर की तरफ सोये हुए मात्र स्पंदित हो जाती है यह शक्ति यौवन केंद्र के बिलकुल समीप सोई हुई है । जब कुण्डलिनी जग जाती है तो सारा शरीर ऊर्जा से पूर्ण हो जाता है। सारा विश्व ब्रह्माण्ड अपने में समाया हुआ लगता है, अपने अंदर मालूम होता है, शक्ति की बाढ़ आ गई। नदी टूट गई, साधक उसमें डूबता चला गया। परंतु यह डूबना भी आनंददायक मालूम होता । यदि इस समय गुरुकृपा हो तो दुगुनी ताकत से ऊर्जा समाहित होती है । जैसे नीचे से कुण्डलिनी रूपी नदी का पानी बढ़ रहा हो तथा ऊपर से गुरु कृपा
रूपी आशीर्वाद या शक्तिपात रूपी वर्षा हो रही हो तब फिर साधक की साधना में चार चांद लग जाते हैं। कुण्डलिनी का जागना यानी नदी का बाढ़ आना अपना होता है। शक्तिपात गुरु का होता है। हालांकि दोनों परोक्ष रूप से ही संभव है । हमें मात्र पात्र बनना है। ग्राहकता मात्र अपने आप में रखना है । हां कुण्डलिनी के जगने से जैसे बाढ़ का पानी चारों तरफ से उमड़ा करता है, उसी तरह सूक्ष्म शक्ति का चारों तरफ से हमला है। साधारण साधक विक्षिप्त या पागल हो जाते हैं, क्योंकि पानी, शक्ति का बांध टूट जाता है। जिसे चतुर साधक ही नियंत्रित कर सकता है। कुछ लोग पुस्तक पढ़कर कुण्डलिनी जाग्रत करने की कुचेष्टा करते हैं। जिसका परिणाम भयंकर हो जाता है । कुछ विद्वान गुरु अंजाने में निर्देश शिष्य को दे देते हैं। जिससे ऊर्जा के जागरण होने पर उसे संभाल नहीं पाते हैं । तब वह खून का वमन करने लगते हैं या विभिन्न रोगों का शिकार हो जाते हैं । इनका जीवन कष्टकर हो जाता है। ऐसे भटके साधक मेरे पास आए हैं। जिन्हें संभालने में बहुत कठिनाई होती है। क्योंकि इस विषम परिस्थिति में उस साधक में एक भयानक मानसिक धूर्णिवात का निर्माण कर उसके स्नायुओं और देह-मन को झकझोर कर उसे पूरी तरह विध्वंस कर सकती है । अतएव आप विज्ञ गुरु से ही निर्देश प्राप्त करें।
यह शक्ति उसी तरह की मालूम होती है जैसे किसी कमरे में हजारों-हजार वाट के सैकड़ों बल्ब लगा दिए हों जिसके बारे में पूर्व किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं हो एवं कमरे में जाते ही स्विच ऑन कर दिया जाए, आंख एकाएक चकाचौंध में पड़ जाएगी, बुद्धि तिलमिला जाएगी वही स्थिति है कुण्डलिनी की। उससे सैकड़ों सूर्य के समान प्रकाश तथा रंग-बिरंगे रूप में विशाल सर्पिणी भी दिखाई पड़ सकती है । विभिन्न वाद्य भी सुनाई पड़ने लगते हैं। सारा कुछ साधक के लिए अनहोनी घटना होता है। जब यह कुण्डलिनी उर्ध्व गति से चलती है तो जिस चक्र पर पहुंचती है वह अधोमुख से उर्ध्व मुख होकर खिल जाता है। प्रकाश से भर जाता है। इस तरह सारे चक्रों को पार करते हुए विभिन्न अनुभव एवं शक्ति संपन्न योगी की कुण्डलिनी जब सहस्रार तक पहुंचती है तब सारी वृत्तियों को भस्म कर असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध होता है। कुण्डलिनी जाग्रत होने पर विभिन्न प्रकार की शक्ति तथा अनुभव प्राप्त होता है।
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