Ravan Bhashya PDF Download | रावण भाष्य के बारे में कुछ जानकारी :-
पिछली कुछ शताब्दियों से रावण एक वेदभाष्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । फिट्ज ऐडवर्ड होल ने लिखा है कि कल कता से प्रकाशित ग्रहलाघव के संस्करण (पृ० ५) में मल्लारि के लेख मे इंगित होता है कि रावण ने वेद के कुछ अंशों पर भाष्य लिखा । अजमेर और ग्वालियार तथा अन्य स्थानों में उन्हें कुछ ऐसे पण्डित मिले जिन्हों ने निश्चयात्मक रूप में कहा कि उन्हों ने रावणभाष्य देखा है और उन के पास रहा भी है । इन पण्डितों के मतानुसार यह भाष्य सम्पूर्ण ऋग्वेद और यजुर्वेद पर था ।
२. नामसाम्य के कारण लोक में सामान्य धारणा वेदभाष्य कार रावण का लंका के राजा और रामायण के प्रतिनायक रावण से तादात्म्य करती है । इस धारणा को तो बिना किसी समीक्षा के तुरन्त ही त्यागा जा सकता है । आगे के विवरण भी इसी निष्कर्ष की ओर इंगित करते हैं ।
३. कुछ लोगों के मत में रावण और सायण एक ही व्यक्ति हैं । लेखप्रमाद से सायण रावण बन जाते हैं । परन्तु रावणभाष्य
के अंशों को सुरक्षित रखने वाले देवज्ञ पण्डित सूर्य सायण और रावण में रावण का एक रामायणीय पर्याय प्रयुक्त कर मेद प्रद शित करते हैं
'विदित्वा वेदार्थ दशवदनवाणीपरिणतम्' ।
सूर्य पण्डित ने एक स्थल पर रावण और सायण दोनों का नाम लेते हुए दोनों के भाष्यों में तुलना की है । रावणभाष्य अध्यात्मपरक है और सायणभाष्य अधिदेवात्मक
"सायनभाष्यकारराधिदैविकाभिप्रायेण बाह्यसंग्रामविषयो दर्शित: । रावणमाष्ये तु अध्यात्मरीत्याभ्यन्तरसंग्रामविषयो दर्शितः । वोटभाष्ये तुभयमपि ।"
एक अन्य स्थल पर कण्वसंहिताभाष्यकार कह कर सायण का एक मत भी दिया है।
"अत्र कण्वसंहिताभाष्यकारस्तु तत्सवितुरिति विश्वा मित्रः सावित्री गायत्री तदिति षष्ठ्या विपरिणाम्यते ।""
अतः देबज्ञ पण्डित सूर्य के मत में रावण और सायण दो भिन्नभिन्न व्यक्ति हैं। इन दोनों के भाष्य की तुलना आगे दी गई है। वह भी सूर्यपण्डित के विचार को पुष्ट करती है । सूर्यपण्डित को मन्त्रों के गीता के विषय के श्रनुरूप श्रध्यात्मक श्र्थों की खोज थी , जो उसे रावणभाष्य में ही मिल सके । अतः उस ने रावणभाष्य का आश्रय लिया। जहाँ उस अपना भाष्य दिया है, वहाँ सम्भवतः: रावण का भाष्य या तो उपलब्ध न था, या उन के अनुकूल न था ।
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