Tirukkural by Govind Ray Jain| तिरुक्कुरल : गोविन्द राय जैन के बारे में अधिक जानकारी :-
भारत वर्ष के प्राचीन साहित्य में प्राकृत, अदमागधी संस्कृत और अपभ्रंश आदि भाषाओं के जैन साहित्य के मूल सर्जक बनेक जैन आचार्य विद्वान् कवि माने जाते हैं, उसी प्रकार दक्षिण भारत की भाषाओं में कर्नाटक प्रान्त की भाषा कन्नड़ के साहित्य को समृद्धि के शिखर तक पहुँचाने वाले जेन आचार्य और कवि मनीषी संसार में विख्यात हैं ऐसे कबि जिनका काव्य विद्ठत् समाज में और जन सभाओं के सांस्कृतिक-साहित्यिक उत्सवों में उल्लास के साथ गाया जाता है, पढ़ा सुना जाता है । अभी कुछ बरसों पहले तक हम में से बहुतों की धारणा यह होती थी कि दक्षिण का जो भी व्यक्ति सामने होता था उसे हम 'मद्रासी' कह कर पुकारते थे । जन- साधारण को विगत वर्षों में साहित्यिक, सांस्कृतिक और फिल्मों के माध्य से यह स्पष्ट हुआ है कि दक्षिण में अलग
अलग प्रान्त हैं और उनकी अलग अलग महत्वपूर्ण भाषाएँ हैं- कर्नाटक की कन्नड़, आन्ध्र प्रदेश की तेलुगु, केरल की मलयालम और तमिलनाडु (मद्रास प्रान्त) की तमिल । कर्नाटक की भाँति तमिलनाडु की भाषा तमिल इतनी प्राचीन है कि वह प्राकृत और मागधी के समकक्ष महत्वपूर्ण है इसी तमिल भाषा का प्राचीन काव्य है 'कुरल' जिसे आदर के साथ बोलने के लिए उसके पहले 'तिरु' अर्थात् 'श्री' लगाते हैं और उसे तिरुक्कुरल कहते हैं।
'कुरल' लगभग दो हजार वर्ष पहले लिखा गया था। कुरल' का अर्थ होता है एक छोटा छन्द जिसमें दोहे के समान दो पंक्तियां होती हैं । विचित्रता यह है कि दोहे की दोनों पंक्तियों के अन्तिम शब्दों में तुक होती है, कुरल छन्द की पंक्तियों के प्रथम शब्द तुकान्त होते हैं तमिल भाषा के महान् विद्वान्, जैन दर्शन के व्याख्याता, शिक्षा शास्त्रियों में अग्रगण्य स्व० राव बहादुर प्रोफेसर ए. चक्रवर्ती ने अपने जीवन काल में जो अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं उनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय है प्राकृत समयसार और पंचास्तिकाय संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद तथा अंग्रेजी में टीकाएँ तथा तमिल के कुरल काव्य की व्याख्या एक प्राचीन टीका के आधार पर जो जैन सन्त को लिखी हुई थी। स्व० साहू शान्ति प्रसाद जैन द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने स्थापना वर्ष में ही तमिल भाषा को इस मूल टीका को अपनी मद्रास शाखा के माध्यम मे प्रकाशित किया था । अंग्रेजी में प्रो० चक्रवर्ती द्वारा अनूदित समयसार और पंचास्तिकाय संग्रह आचार्य कुन्दकुन्द की रच- नाएँ हैं । बहुत गौरव को बात यह है कि तमिल में लिखा 'कुरल काव्य' भी आचार्य कुन्दकुन्द को रचना है, जिन्हें एलाचार्य के नाम से भी स्मरण किया जाता है । आचार्य कुन्दकुन्द के अनेक नाम मूलसंघ की पट्टावलि में गिनाये गये हैं :
पुस्तक का नाम/ Name of Book : तिरुक्कुरल | Tirukkural
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain
श्रेणी / Categories : Adhyatm
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 3 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 236
॥ सूचना ॥
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