वाराही (बृहत्) संहिता | Varahi (Brihat) Samhita by Pandit Sukhanandmishratmaj

वाराही (बृहत्) संहिता | Varahi (Brihat) Samhita by Pandit Sukhanandmishratmaj

Varahi (Brihat) Samhita by Pandit Sukhanandmishratmaj PDF Download | वाराही (बृहत्) संहिता

वाराहीसंहिता ज्योतिषका प्रधान ग्रंथ है। इसके रचयिता बराहमिहिराचार्य आदित्य- दासके पुत्र ये जो कि अवन्तीनिवासी थे। बराहमिहिराचार्यने अपने पितासे समस्त शास्त्र को पढकर कपित्यनगरमें जाकर सूर्यभगवान्की तपस्या की और वर पाया। जो कुछ भी हो हमको इस ग्रंथकी भूमिकामें वराहमिहिर और सूर्यसिद्धांतके बनानेवाले समयका निर्णय करना है। क्योंकि इन लोगोंके समयका निरूपण हो जानेसे और भी अनेक ज्योतिविद्गणोंके समयका निरुपण हो जायगा वराहमिहिराचार्यने अपने पंचसिद्धात्मिका नामक ग्रंथों लिखा है :-

आश्लेषा द्दक्षिणमुत्तरायणं रवेनिष्ठाद्यात् ।
नूनं कदाचिदामीद्येनोक्तं पूर्वशास्त्रेषु ॥१॥
साम्प्रतमयनं सवितुः ककटाद्यान्मृगादितश्चान्यत् । 
प्रत्यक्ष परीक्षणैव्व्यक्तिः ॥२ ॥
उक्तभावेविकृतिः द्ूरस्यचिह्नंविद्यादुबयेजतमयेऽपिवा सहस्रांशोः। 

छायाप्रबेशनिर्गमचिह्नर्वा मण्डले महति ॥३॥
अप्राप्य मकरमर्को विनिवृत्तो हन्ति सापरान् याम्यान् ।
कर्कटकमसम्प्राप्तो विनिवृत्तश्चोत्तरान् संन्द्रीम् ॥४ ॥ उत्तरमयनमतीत्य व्यावृत्तः क्षेमस्य वृद्धिकरः ।
प्रकृतिस्थश्चाप्येवं विकृतिगतिर्भयकृदुष्णांशुः ॥५॥


आश्लेषाके शेषार्द्धमें दक्षिणायन और धनिष्ठाकी आदिमें रविका उत्तरायण निश्चय किसी कालमें आरंभ होता था क्योंकि पूर्व शास्त्रमें इसी प्रकारका लेख है ॥१॥ संप्रति रविका दक्षिणायन कर्कटकी आदिमें और उत्तरायण मकरकी आदिमें आरंभ होता है अतएव प्राचीन अयनके अभावमें उसका परिवर्तन भली भांति मालूम होता है ॥२॥ (अयनके बदलको जाननेकी विधि) सूर्यके उदय व अस्तके समय दूरके चिह्न. (नक्त्रादि), से यह जाने, अथवा बृहन्मंडलकी (केन्द्रस्थ कीलककी) छायाके नियत चिह्नोंसे प्रवेश और निर्गम करके जाने ॥३॥ उत्तरायणमें मकरतक न जाकरके लौट आनेपर दक्षिण पश्चिमदिशा और दक्षिणायन में कर्कटतक न जाकर लौटनेसे उत्तर पूर्व दिशा नष्ट होती है ।।४॥ मकरकी आदिमें गमन करके लौट आनेसे सूर्य मंगलदायक होता है और यही उसकी सहजगति है, इससे विकृति गति हो तो सूर्य अमंगलदायक होता है ।।५।।

वराहमिहिराचार्यके पहले दो श्लोकोंसे हमको दो ज्योतिषियों के समयको मानने में सहायता मिलती है। प्रथम पूर्वशास्त्रकारी और दूसरे स्वयं वराहमिहिराचार्य। वराहके टीकाकार भट्टोत्पलने पूर्वशास्त्रके अर्थमें पराशरीसंहिताको लिखा है । इन्होंने उक्त शास्त्रसे ऋतुके अवस्थाविषयक वचनोंको भी टीकामें उद्धृत किया है।


पुस्तक का नाम/ Name of Book :   वाराही (बृहत्) संहिता | Varahi (Brihat) Samhita 
पुस्तक के लेखक/ Author of Book :  Pandit Sukhanandmishratmaj
श्रेणी / Categories :  Jyotish books
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 66.9 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 356



 
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