Brahma Sutra Upanishad Evam Shri Bhagavata Book in PDF Download
The Shrimad Bhagavat Puranas are called the Tilakarajas of the Puranas. After the creation of seventeen Puranas, Sri Ved Vyas has composed this Purana, Srimad Bhagavat is the shrine of the Vaishnavas, the glory of this Purana composed by Shri Shukukadevji Mukharavind is as much in the Sanskrit literature as in any other Puranaka. The commentaries of Srimad Bhagwat Purana are available in different languages, as there are no other Puranaki. Among the major Chari sects of India, Srimad Bhagwatka is very respectable. Due to the Triveni of Bhakti-Jnana-Vairagya, its renunciation is extremely virtuous and peaceful. The Vedas-Upanishads and Brahmasutraka in this one book, as it is coordinated, are rare elsewhere. Shrimad Bhagwat Puranaka Shravan is not possible by virtue of one birth, it is the statement of Shrivayas. Padmapuranaka is of the opinion
It is even written that one gets to hear this Purana by virtue of birth of some kind. What about humans? It is considered rare even to the gods. "Srimad Bhagavati Barta Suranamapi Durlabha". Acharyani considered it to be the unnatural commentary of the planetary formulas.
That is, this Purana is an annotation to explain the meaning of the Brahmasutras, Bharat is decisive of the Earth, Gayatrika is a commentary, Vedartha is an extension of Vedartha. Such a sentence is not found in relation to any other Puranas, so this excellent proof has been conferred upon it the status of pride. The meaning of "Srutyarthastu paave-pade" shrutis is in the post, in Sri Madhagavat, so this book is Indian and Mayaka Kanthar. Has been practiced and is therefore authentic, as a result, he did not comment like other masters, they consider it as 'unnatural means'. The trend towards such important landmarks is also a history.
By clicking on the link given below, you can download the written book Brahma Sutra Upanishad Evam Shri Bhagavata in PDF by Dr. Vasudev Krishna Chaturvedi
श्रीमद्भागवत पुराणको पुराणोंका तिलकराज कहा जाता है । सत्रह पुराणों की रचनाके पश्चात् श्रीवेदव्यासने इस पुराणकी रचनाकी है, वैष्णवोंका कण्ठहार है श्रीमद्भागवत, श्रीशुकदेवजीके मुखारविन्दसे निः सृत इस पुराणकी महिमाका गान जितना संस्कृत साहित्यमें हुआ है, किसी अन्य पुराणका नहीं। श्रीमद्भागवत पुराण की जितनी टीकायें विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध हैं उतनी किसी अन्य पुराणकी नही हैं। भारतवर्ष के चारी प्रमुख सम्प्रदायोंमें श्रीमद्भागवतका अत्यन्त समादर है । भक्ति-ज्ञान-वैराग्यकी त्रिवेणीके कारण इसका अवगाहन परम पुण्य फलदायक एवं शान्तिप्रद है। इस एक ग्रन्थ में वेद-उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रका जैसा समन्वय हुआ है अन्यत्र दुर्लभ है । श्रीमद्भागवत पुराणका श्रवण एक जन्मके पुण्यसे तो सम्भव ही नहीं है, ऐसा श्रीव्यासका कथन है । पद्मपुराणका मत है
"जन्मान्तरे भवेत् पुण्यं तदा वै भागवतं सभेत्"
यहाँ तक लिखा है कि कोटि जन्मके पुण्यसे यह पुराण सुननेको मिलता है । मनुष्योंकी तो बात ही क्या ? यह तो देवों को भी दुर्लभ माना गया है। "श्रीमद्भागवती बार्ता सुराणामपि दुर्लभा" । आचार्यनि इसे ग्रह्म सूत्रोंका अकृत्रिम भाष्य माना है
अर्थोऽयं ब्रह्मसूत्राणां भारतार्थ विनिर्णय : । गायत्री भाष्यरूपोऽसौ वेदार्थ उपवहित : ॥
अर्थात् यह पुराण ब्रह्मसूत्रोंका अर्थ बतलाने वाला भाष्य है, भारत अर्थका निर्णायक है, गायत्रीका भाष्य है, वेदार्थका विस्तार है । अन्य किसी पुराणके सम्बन्ध में ऐसा वाक्य नहीं मिलता अतः यही सर्वोत्कृष्ट प्रमाण इसे गौरव पद प्रदान करता रहा है। "श्रुत्यर्थस्तु पवे-पडे" श्रुतियोंका अर्थ तो पद-पद पर है श्री मदभागवत में अतः यह ग्रन्थ भारतीय वाङ मयका कण्ठहार है श्रीचेतन्यमहाप्रभुने ब्रह्मसूत्रोंपर] भाष्य नहीं लिखा उनकी मान्यता रही कि जिस ऋषि व्यासने ब्रहम सूत्रोंकी रूचना की है, उन्हीं की वाणी द्वारा श्रीमद् भागवत का प्रणयन हुआ है अतः प्रामाणिक ही है, फलतः उन्होंने अन्य आचार्यों की भांति भाष्य नहीं किया वे इसे - 'अकृत्रिम माध्य' मानते हैं। ऐसे महनीय ग्रन्धके विषयकी ओर प्रवृत्तिका भी एक इतिहास है।नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके, आप लिखित पुस्तक ब्रह्मसूत्र उपनिषद एवं श्रीमद्भागवत हिंदी को डॉ वासुदेव कृष्ण चतुर्वेदी द्वारा पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते हैं।
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ब्रह्मसूत्र उपनिषद एवं श्रीमद्भागवत | Brahma Sutra Upanishad Evam Shri Bhagavata | |
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