BHARAT KE MAHAN SANT Hindi Book in PDF Download
Buddha's Grand Mercy: Tearful Eye of Nature
Do you know this lovely world of yours? Do you know how it is today? How was it earlier? How did people live on this earth before us? Where did those people go now? Why did this happen? What values and attitudes were there, which are no longer there, or which have decreased a lot? Compassion, compassion, love, tolerance, co-existence, suffering but persecution - these values have become very rare today. Nowhere are the levels of thinking, which considered the living beings threaded in the same chain, not only from insects to virgins, from insects to humans, all believed to be tied in the same string, but with the dormant consciousness of stone Till the awakened consciousness of man, he used to keep the stairs of development in mind. This is the true eye of religion, in which the webs of sects are not woven. The Buddha who considered the knowledge of nature's true eyes as religion was Mahatma Buddha. His greatness is indeed a great call to the world for violence-killing-mercilessness! The same Karun Pukar appears again and again, bursting from the womb of nature again and again, Buddha is sometimes in the form of Gautam Buddha, Kabir, sometimes as Nanak and Gandhi. She comes. This eye is a compassionate eye of the whole nature, in which any part of the organ is deformed.
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बुद्ध की महाकरुणा: प्रकृति की अश्रु भरी आँख
क्या आप अपनी इस प्यारी दुनिया को जानते हैं? जानते हैं कि यह आज कैसी हैं? पहले कैसी थी? हमसे पहले इस धरती पर कैसे लोग रहते थे? वे लोग अब कहाँ बिला गए? ऐसा क्यों हुआ? कौन से जीवन-मूल्य और व्यवहार थे, जो अब नहीं रहे या जिनमें बहुत कमी आ गई है? करुणा, दया, प्रेम, सहिष्णुता, सह अस्तित्व, पर पीडाहरण, अभयदान-ये मूल्य व्यवहार आज बड़े विरल हो गए हैं। कहीं दिखते ही नहीं सोच के वे स्तर, जो प्राणीमात्र को एक ही श्रृंखला में पिरोया हुए मानते थे, कीड़ों से लेकर कुंजर तक ही नहीं, कीड़ी से लेकर मनुष्य तक सबको एक ही डोरी में बँधे हुए मानते थे, बल्कि पत्थर की सुप्त चेतना से मनुष्य की जाग्रत् चेतना तक विकास की सीढ़ियों को ध्यान में रखते थे। यही धर्म की सच्ची आँख है, जिसमें संप्रदायों के जाले नहीं बुने हुए। प्रकृति की सच्ची आँखवाले ज्ञान को ही धर्म माननेवाले बुद्धपुरुष- महात्मा बुद्ध थे। उनकी महाकरुणा वास्तव में विश्व की हिंसा-हत्या-निर्दयता पर महाकरुण पुकार है! यही करुण पुकार बार बार प्रकट होती है, बार-बार फूटती है प्रकृति की कोख से बार-बार जन्म लेते हैं बुद्ध कभी गौतम बुद्ध के रूप में, कबीर के रूप में, कभी नानक और गांधी के रूप में वही आँख बार-बार भर आती हैं। यह आँख समूची प्रकृति की करुणामयी आँख है, जिसमें किसी भी अंग के क्षत-विक्षत होने पर अजस अनुधार वह निकलती है।
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भारत के महान संत (Bharat Ke Mahan Sant Pdf) | |
बलदेव वंशी (Baldev Vanshi) | |
आत्मकथा,जीवनी / Biography |
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