Ashtadas Puran Darpan Hindi Book in PDF Download
Ashtadas Puran Darpan hindi pdf by Pt. Jwalaprasad Jee Mishra , Ashtadas Puran Darpan Hindi pdf free download, Ashtadas Puran Darpan hindi pdf file.In India, the content of the four varnas and the four ashrams is the Ashta Dasha Purana. Often, through these, there is a sense of old age, canto, pratisarga, manvantar lineage. Vedartha is well known from the narratives of these Puranas. The writing is history-puranabhyam Vedam samupavrihayet. Vimetyalapshrutadvedo mamay praharishyati ” Expand the Vedas from history and Puranas, the pure path of your father, grandfather etc. is known from the Puranas itself, the origin of many castes, patriotism, knowledge, science, different 2 rules of different departments of the world, all these are known from the Puranas only. In the absence of Puranic history, in a way the world can be considered to be blind, the history of the people of India, the Purana is the ultimate wealth, the storehouse of worship is the Purana, the gateway to Muktika. The detail of Pashdev worship is rendered by the Puranas, the specialty of Bhagavadavatar. Navadha Bhakti can be attained at the feet of God only from the story of Preeti Purana. What a lot, the seekers of both the worlds are Puranas, the two subjects you want to search in the world, that subject can be found only in the Puranas, when it is so, then who is such a person who will not believe in the Puranas.
In this Ashtadasha Puranadarpan, all the stories of the Puranas will be seen like a mirror, a person who is generous in nature can understand how hard the writer must have worked in the making of this practice.
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अष्टादश पुराण दर्पण PDF Download, अष्टादश पुराण दर्पण पीडीएफ डाऊनलोड, अष्टादश पुराण दर्पण PDF भारतवर्ष में चारों वर्ण और चारों आश्रमों की रीति नीति विचार आचार की सामग्री अष्टा दश पुराण ही है । प्रायः इन्हीके द्वारा पुरातन वृद्ध, सर्ग, प्रतिसर्ग, मन्वन्तर वंशानुचरितका बोध होता है। इन पुराणों के आख्यानोंसेही वेदार्थ भलीभाँतिसे जाना जाता है। लिखामी है इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपवृंहयेत् । विमेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामय प्रहरिष्यति ॥” इतिहास और पुराणों से वेदार्थ का विस्तार करे, पुराणों से ही अपने पिता पितामह आदि का निर्मल मार्ग जाना जाता है, अनेक जातियों की उत्पत्ति, देशभेद, ज्ञान, विज्ञान, जगत्के भिन्न भिन्न विभागों के भिन्न २ नियम यह सब पुराणों से ही जाने जाते हैं, पुराण इतिहास के न होने से एक प्रकार जगत् अंध कारमय समझा जा सकता है, भारतवासियोंका तो इतिहास पुराण ही परम धन है, उपासना का भण्डार मुक्तिका द्वार पुराण ही है । पश्चदेव उपासनाका विस्तार भगवदवतारकी विशेषता पुराण ही प्रतिपादन करते है। नवधा भक्ति ईश्वरके चरणोंमें प्रीति पुराणकथासे ही प्राप्त हो सकती है । बहुत क्या, दोनों लोकोका साधक पुराण ही है, संसार में जिन २ विषयों की आप खोज करना चाहें, वह विषय एकमात्र पुराणों में ही मिल सकता है, जब ऐसा है तो ऐसा कौन पुरुष है जो पुराणों पर श्रद्धा न करेगा।
इस अष्टादशपुराणदर्पण में पुराणो की समस्त कथायें दर्पण की समान दिखाई देंगी, गुण ग्राही सज्जन उदार प्रकृति के पुरुष समझ सकते है कि इस प्रथ के निर्माण में ग्रंथकर्ता को कितना परिश्रम हुआ होगा,
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अष्टादश पुराण दर्पण | Ashtadas Puran Darpan | |
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