Purva Kalina Bharat Book in PDF Download
The first (English) edition of this book was written about four decades ago and since then there have been significant changes in the readings of Indian history. These changes have been the result of some new material as well as fresh interpretations of familiar material. Here I have incorporated new material and essential elements of the interpretation, but at the same time retaining the old arguments where they are relevant today.
A major amendment has been made in this book regarding the extension of time. In the earlier text, the period related to the book ended in 1526 but in the present text, it ends around 1300 AD. After many years of effort, I have been able to convince my publisher (Pinguin) that the history of India should be in three volumes, not two. In the earlier division of two districts, justice was not being done with the important period of about 1300-1800 AD. Now this defect is being rectified. The final binding will bring the description to the present tense. This change also leaves more space for each bound. F. R. and B. Allchin's The Birth of Indian Civilization, which was revised in 1993 and published by Pinguin, and his work The Origins of Civilization, published by Viking in 1997 (Pinguin 1998), give us a good introduction to the prehistory and antihistory of India. That is why I have made only a brief overview of prehistory and antihistory.
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लगभग चार दशक पूर्व इस पुस्तक का प्रथम (अंगरेजी) संस्करण लिखा गया और तब से भारतीय इतिहास के वाचनों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। ये परिवर्तन कुछ नई सामग्री और साथ ही परिचित सामग्री की ताजा व्याख्याओं के परिणाम रहे हैं। यहां मैंने नई सामग्री तथा व्याख्याओं के आवश्यक तत्वों को शामिल कर लिया है, लेकिन साथ ही पुरानी दलीलें जहां आज भी प्रासंगिक हैं, वहां उन्हें बरकरार रखा है।
इस पुस्तक में एक प्रमुख संशोधन काल के विस्तार के संबंध में किया गया है। पूर्ववर्ती पाठ में पुस्तक से संबंधित काल 1526 में समाप्त होता था लेकिन प्रस्तुत पाठ में वह 1300 ई. के आसपास समाप्त हो जाता है। अनेक वर्षों के प्रयत्न के बाद मैं अपने प्रकाशक ( पिंगुइन) को समझा पाई हूं कि भारत का इतिहास दो नहीं बल्कि तीन जिल्दों में होना चाहिए। दो जिल्दों के पूर्ववर्ती विभाजन में लगभग 1300-1800 ई. के महत्त्वपूर्ण काल के साथ न्याय नहीं हो पा रहा था। अब इस दोष का मार्जन किया जा रहा है। अंतिम जिल्द वर्णन को वर्तमानकाल तक ले आएगी। इस परिवर्तन से प्रत्येक जिल्द के लिए अधिक स्थान भी निकल आता है। एफ. आर. और बी. अलचिन-कृत दबर्थऑफइंडियन सिविलाइजेशन, जिसका संशोधन 1993 में किया गया और जो पिंगुइन से ही प्रकाशित हुआ, तथा विकिंग द्वारा 1997 ( पिंगुइन द्वारा 1998) में प्रकाशित उन्हीं की रचना दआरिजिन्सऑफ एसिविलाइजेशनसे भारत के प्रागितिहास और आद्येतिहास से हमारा अच्छा परिचय हो जाता है। इसलिए प्रागितिहास तथा आद्येतिहास का मैंने केवल संक्षिप्त अवलोकन ही किया है।
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Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
पूर्वकालीन भारत | Purva Kalina Bharat PDF | |
Hindi | |
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