Tripindi Shraddh Paddhati Book in PDF Download
The purpose of Narayan Bali and Tripindi Shradh is the distinction of performing Narayan Bali in the scriptures as an atonement for the success of the rest of the living beings who die. The Shradh performed by a Jiva born in his own family or in any other family related to him, for the purpose of removing obstacles in the attainment of progeny or any other kind of evil, is called Tripindi Shradh. In Narayanvatti, it is the aim of the soul to be saved from the death of one's clan-gotra, whereas in Tripindi bradha, Shradh is performed for the purpose of retiring from the evils that occur in their lineage. Narayan Bali is primarily a deity-purpose shraddha, in which only one demon is worshipped, whereas in Tripindibandh, sattvik rajas-tamas are also bound for the purpose of demons.
Pishchamochantirtha, Gaya Pretshilatirtha and other places of pilgrimage in Kashi are suitable for performing Tripindi Shradh. Apart from this, it can be done on the banks of any virtuous river or lake. If these places are not accessible, then Tulsi tree can also be planted in the tireless sannidhi, near the pagod
When to do Tripipadi Shradh, although in the four months of Kartik, Margasish Paush and Magha, both the parties should perform Shradh on Ekadashi, Panchami, Ashtami and Prayodashi Tithis, but if there is any serious obstacle, then this Shradh can be done even without expecting month and date.
The main karma to be performed in Tripindi Shradh – the special process to be done in Tripindi Badh, a brief description of it is presented her
In Tripindobadh, it is the method of bathing in the pilgrimage with determination for the purpose of attaining the right in the first Shradh by going to a pilgrimage. Thereafter, there is the law of worship of the Gods, Rishis, Divyapita, Swapitru and Tatambatritya etc. After this, the Shalagram or the idol of Lord Vishnu is worshiped as per the procedure. After the worship, the prime pledge of the conditioned is the resolution. After taking a vow, three separate urns are established for worship of Vishnu, Brahma and stayed, worship of urns, the idols of the three deities are worshiped with fire, their installation and worship is done on the urns. Thereafter, three brahmins are selected to recite Vishnu, Brahma and Rudrasools, and while reciting hymns, kalashans are invited. The reciters of the hymns used to recite the hymns with a vow. and the Shradhkar starts the process of advance process under the guidance of Acharya.e..a.
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त्रिपिण्डीश्राद्धपद्धति पीडीएफ में डाउनलोड करे
नारायणबलि तथा त्रिपिण्डीश्राद्धका उद्देश्य भेद- जिन जीवोंका दुर्मरण हो जाता है, उनके औध्यदेहिकबाकी सफलता के लिये प्रायश्चित्तरूपमें शास्त्रों में नारायणबलि करने का विधान है। अपने कुलमें अथवा अपने सम्बद्ध किसी अन्य कुलमें उत्पन्न किसी जीवके प्रेतयोनि प्राप्त होने पर उसके द्वारा अपने वंशमें सन्तानप्राप्तिमें बाधा अथवा अन्य प्रकारके होनेवाले अनिष्टको निवृत्तिके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध त्रिपिण्डी श्राद्ध कहलाता है। नारायणवत्तिमें अपने कुल- गोत्रके दुर्मरणग्रस्त जीवका उद्धार हो जाय-यह उद्देश्य होता है, जबकि त्रिपिण्डी ब्राद्ध में अपनी वंश परम्परामें होनेवाले अनिष्टोंकी निवृत्तिके उद्देश्यसे श्राद्ध किया जाता है। नारायणबलि मुख्यरूपसे देवतोद्देश्यक श्राद्ध होता है, जिसमें केवल एक प्रेतका ही श्राद्ध किया जाता है, जबकि त्रिपिण्डीबद्ध में सात्त्विक राजस-तामस प्रेतोंके उद्देश्यसे भी बाद्ध होता है।
त्रिपिण्डीश्राद्धके लिये प्रशस्त स्थान त्रिपिण्डी श्राद्धको करनेके लिये काशीमें पिशाचमोचनतीर्थ, गया प्रेतशिलातीर्थ तथा अन्यान्य तीर्थस्थल उपयुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त किसी भी पुण्यसलिला नदी अथवा सरोवरके तटप इसे सम्पन्न किया जा सकता है। यदि ये स्थान सुलभ न हों तो शिवालयके समीपमें, तुलसीवृक्ष अथक सन्निधिमें भी किया जा सकता है।
त्रिपिपडीश्राद्ध कब करे यद्यपि कार्तिक, मार्गशीष पौष और माघ-इन चार महीनोंमें दोनों पक्षको एकादशी, पंचमी, अष्टमी और प्रयोदशी तिथियोंमें श्राद्ध करना चाहिये, किंतु कोई उत्कट कोटिकी बाधा हो रही हो तो मास और तिथिकी अपेक्षा न करके भी यह श्राद्ध किया जा सकता है।
त्रिपिण्डीश्राद्धमें होनेवाले मुख्य कर्म–त्रिपिण्डी बाद्धमें सम्पन्न होनेवाली जो विशेष प्रक्रिया है, उसका संक्षेप में यहाँ वर्णन प्रस्तुत है
त्रिपिण्डोबाद्धमें मुख्य रूपसे किसी तीर्थ में जाकर सर्वप्रथम श्राद्ध में अधिकार प्राप्ति के निमित्त संकल्पपूर्वक तीर्थ में स्नान को विधि है। तदनन्तर देव, ऋषि, दिव्यापित, स्वपितृ एवं ताताम्बात्रितयादि शास्त्रबोधित पितरों का तर्पण, सूर्योपस्थान एवं दिङ्नमस्कारका विधान है। इसके पश्चात् शालग्राम अथवा भगवान् विष्णुको मूर्तिका यथाविधि पूजन किया जाता है। पूजनके अनन्तर बद्धका प्रधान प्रतिज्ञासंकल्प होता है। प्रतिज्ञासंकल्प करके विष्णु, ब्रह्मा तथा रुके पूजनके लिये तीन पृथक्-पृथक् कलशोंको स्थापना, कलशोंका पूजन, तीनों देवोंकी प्रतिमाओंको अग्न्युत्तारपूर्वक प्राणप्रतिष्ठा, कलशोंपर उनका संस्थापन तथा पूजन होता है। तदनन्तर विष्णु, ब्रह्मा तथा रुद्रसूलोंका पाठ करनेके लिये तीन ब्राह्मणोंका वरण होता है तथा सूक्तोंका पाठ करते हुए कलशोंका अभिमन्त्रण किया जाता है। सूक्तपाठकर्ता ब्राह्मण संकल्प लेकर सूळपाठ करते। रहते हैं और श्राद्धकर्ता आचार्यक निर्देशन में अग्रिम वाद्धप्रक्रियाका आरम्भ करता है।
पितृ पक्ष 2021 में श्राद्ध की तिथियां
क्र० स० श्राद्ध तिथि
1. पूर्णिमा श्राद्ध 20 सितंबर 2021
2. प्रतिपदा श्राद्ध 21 सितंबर 2021
3. द्वितीया श्राद्ध 22 सितंबर 2021
4. तृतीया श्राद्ध 23 सितंबर 2021
5. चतुर्थी श्राद्ध 24 सितंबर 2021
6. पंचमी श्राद्ध 25 सितंबर 2021
7. षष्ठी श्राद्ध 27 सितंबर 2021
8. सप्तमी श्राद्ध 28 सितंबर 2021
9. अष्टमी श्राद्ध 29 सितंबर 2021
10. नवमी श्राद्ध 30 सितंबर 2021
11. दशमी श्राद्ध 1 अक्तूबर 2021
12. एकादशी श्राद्ध 2 अक्तूबर 2021
13. द्वादशी श्राद्ध 3 अक्तूबर 2021
14. त्रयोदशी श्राद्ध 4 अक्तूबर 2021
15. चतुर्दशी श्राद्ध 5 अक्तूबर 2021
16. अमावस्या श्राद्ध 6 अक्तूबर 2021
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