श्री लक्ष्मी चालीसा इन हिंदी पीडीएफ पुस्तक | Shri Lakshmi Chalisa PDF Download Free
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Goddess Lakshmi, the consort of Lord Vishnu, is considered the goddess of wealth, prosperity and splendor. Worshiping Lakshmi ji regularly brings wealth and wealth in a person's life.
The auspicious day for worshiping Goddess Lakshmi is considered to be on Friday. The Chalisa of Mata Lakshmi was composed by Ramdas. The following Shri Lakshmi Chalisa should be recited to worship Lakshmi ji.
Worship material of Mata Lakshmi
In Mahalakshmi Puja, Roli, Kumkum, Rice, Paan, Betel nut, Clove, Cardamom, Incense, Camphor, Google Dhoop, Deepak, Cotton, Kalava (Mauli), Coconut, Honey, Curd, Gangajal, Jaggery, Coriander, Fruit, Flower, Barley Wheat, durva, sandalwood, vermilion, ghee, panchamrit, milk, dry fruits, milk, batashe, Gangajal, yagyopaveet, white clothes, perfume, chowki, urn, lotus garland, conch shell, picture or statue of Lakshmi and Ganesh ji, Asana, plate, silver coin, confectionary, 11 lamps etc. should be kept at the time of worship.
worship method of mata Lakshmi
Place the idols of Mata Lakshmi and Lord Ganesha on a post in such a way that Lord Ganesha should be in the right direction of Lakshmi and his face should be towards east.
Sitting in front of them, establish a Kalash on the rice, wrap a coconut in a red cloth and place it in such a way that only its front is visible.
Place mango tree leaves between the coconut and the urn, take two big lamps and keep ghee in one and oil in the other. Place one at the feet of the idols and the other on the right side of the post.
Then at the time of auspicious time, first of all sanctify by taking water, mouli, abir, sandalwood, gulal, rice, incense, light, jaggery, flowers, dhani, naivedya etc.
Then salute them by lighting all the lamps (it is considered auspicious to light a minimum of 26 diyas). Sprinkle rice on them.
couplet
Mother Lakshmi, please reside in the heart. Purvahu is my hope after fulfilling my wish. Sindhu Suta Vishnupriya Nata Shir Frequently. Riddhi siddhi mangalprade nat head again and again take .
Soratha
This peacock Ardas, I request with folded hands. Do all the rituals, jai janani jagadambika. • Durga Roop Niranjani, the giver of happiness and wealth. Whoever gives you meditation, Riddhi-Siddhi wealth.
quadruped
Sindhu Suta I Sumiron Tohi. Knowledge intellect Vidya Do Mohi You are no equal. Everything is pure our hope. Jai Jai Jagat Janani Jagadamba. You are all self-sufficient. You are the only residents of less and less. This is our request. Jag Janani Jai Sindhu Kumari. Deen that you are beneficial Vinvaum Nitya Tumhi Maharani. Please please Jag Janani Bhavani. I should praise any method. Sudhi lijay crime bisari Kindly see chitvo mama ori. Jagat Janani's request is listened to Mori. Knowledge, wisdom, jai, the bestower of happiness. Our mother is in trouble Kshir Sindhu when Vishnu Mathyo. Fourteen gems were found in Sindhu. In the fourteen gems, you did Sukhrasi service. Whenever the birth where Lord Lina. Why did you change your form? Vishnu himself when the male Tanu stream. Linheu Awadhpuri Avatar Then you appeared Janakpur Mahi. Serve the heart Pulkahin Adopt it. Lord of the world known Tribhuvan.
All of you do not come with strong power. Where is the glory?
Make the word of your mind in order. desired fruit pie Thy deceit, deceit and cleverness. Worship brought different types of mind. And where did I extinguish recently? The one who recited this brought it to mind. Let there be no trouble. Desired fruit pawai fruit soi Trahi-trahi jai sorrow nivarini. The threefold heat of bondage, Harini. Whoever reads and reads this Chalisa. Listen carefully and listen to it. So that no one disease is tormenting you. Son etc. get wealth. Son is inferior and property is inferior. The blind deaf leper is very poor. How can you recite Vipra Bolaay? Never bring doubt in your heart. Get the text done day Chalisa. Please bless Gaurisa Get lots of happiness and wealth. There is no shortage of kahu. Do worship for twelve months. He is blessed and not blessed. Recite your mind daily. There is no one like him in the world. Multiple Method What should I brag. Pay attention to the examination. Do believe fasting nema. Hoy Siddha Ujai ur Prema. Jai Jai Jai Laxmi Maharani. Eat the qualities that pervade everyone. • You are strong and strong. I would say no to you. Remember the Mohi orphan. Sankat Kati Bhakti Mohi Dije
Sorry for our mistake. Darshan Dijai Dasha Nihari A distraught officer. You are heavy to bear the unbroken sorrow. No, the intellect is in the body. Know everything in your mind. Form quadrilateral. Trouble peacock now karhu redressal Somehow I should brag. Knowledge intellect is not fascinated. Where is Ramdas called now? Take away your misery
Doha.
Trahi trahi sorrow loser haro begi sab tras. Jayati Jayati Jai Laxmi Karo destroy the enemy. Ramdas Dhari meditates with utmost humility. I have mercy on Matu Laxmi Das. .. Iti Lakshmi Chalisa Sampoornam.
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भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी जी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। लक्ष्मीजी की नित्य पूजा करने से मनुष्य के जीवन में धन-सम्पति आती है।
मां लक्ष्मी के पूजन का शुभ दिन शुक्रवार को माना गया है। माता लक्ष्मी की चालीसा की रचना रामदास ने की थी। लक्ष्मी जी की आराधना के लिए निम्न श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
महालक्ष्मी पूजन में रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, गूगल धुप, दीपक, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, मिष्ठान्न, 11 दीपक इत्यादि वस्तुओं को पूजन के समय रखना चाहिए।
माता लक्ष्मी की पूजा विधि
एक चौकी पर माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि लक्ष्मी की दाईं दिशा में श्रीगणेश रहें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे।
उनके सामने बैठकर चावलों पर कलश की स्थापना करें, इस कलश पर एक नारियल लाल वस्त्र में लपेट कर इस प्रकार रखें कि उसका केवल अग्रभाग ही दिखाई दे।
नारियल और कलश के बिच आम के पेड़ के पत्ते रखे, दो बड़े दीपक लेकर एक में घी और दूसरे में तेल भरकर रखें। एक को मूर्तियों के चरणों में और दूसरे को चौकी की दाईं तरफ रखें।
फिर शुभ मुहूर्त के समय जल, मौली, अबीर, चंदन, गुलाल, चावल, धूप, बत्ती, गुड़, फूल, धानी, नैवेद्य आदि लेकर सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
फिर सभी दीपकों (न्यूनतम 26 दियों को जलाना शुभ माना जाता है) को जलाकर उन्हें नमस्कार करें। उन पर चावल का छटकाव करे।
दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास । मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥ सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार। ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥ टेक ॥
॥ सोरठा ॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका।। • दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ।
चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥ तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥ जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥ तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी ॥ जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी ॥ विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी। केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥ कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥ ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥ क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो । चौदह रत्न में तुम सुखरासी सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥ जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥ ● स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥ तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥ अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥
तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥ तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई ॥ और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई। ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥ त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ।। जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥ ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै । पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना।। विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै ॥ पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥ सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै । बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥ प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं । बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई। करि विश्वास करें व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा । जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥ • तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं ॥ मोहि अनाथ की सुधि लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी ॥ बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥ नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में । रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥ कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥ रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥
॥ दोहा ।
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥ रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर।। ।। इति लक्ष्मी चालीसा संपूर्णम।
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