सतगुरु राम सिंह जी महाराज इन हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Satguru Ram Singh Ji Maharaj PDF Download Free
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The unique and inexplicable sacrifices of the Namdhari Sikhs for the independence of the country have been inscribed on the primary pages of the history of the war of independence in the name of "Kuka Movement". The first leader of India's independence, the promoter of the non-cooperation movement, Shri Satguru Ram Singh ji raised his voice against the British government from Sri Bhaini Sahib district Ludhiana (Punjab) on 12 April 1857. They were buried under social evils.
In these circumstances, Satguru ji considered it necessary to inculcate self-respect, devotion and heroic rasa in the people, that their moral upliftment and social reform should be done first, otherwise they would remain helpless. Therefore, he laid special emphasis on "Naam Japa" and "Gurbani Path" to mold their behavior according to "Bhay Kahu Kahu Det Nahi Nahi Bhay Manat Aan" and to develop in them the best moral qualities. Patriotism, mutual reconciliation, tolerance and inspired them to stay united and eat by sharing, this word of Guru Nanak Dev ji to earn ten nails i.e. Haq Halal, "Haq Paraya-Nanaka, that pig, that cow" His principle made up a sentence. He propagated all this in such a simple manner, in the language of the people, in his own dialect, Punjabi that
(Shri Satguru Ram Singh ji at the time of starting the practice of Anand Karaj, an inter-caste and no-dazzle)
According to D.I.G. MacAndrew's report "Guru Ram Singh's propaganda created turmoil in Punjab" - (Report dated 9/6/1862)
Regarding the conduct of Namdhari Sikhs, the English record says - "Kuka does not lie." "Kuka does not drink alcohol."
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श्री सत्गुरु रामसिंह जी
देश की स्वतंत्रता के लिए नामधारी सिक्खों की अद्वितीय तथा अकथनीय कुर्बानियों को जंगे आजादी के इतिहास के प्राथमिक पन्नों पर "कूका आन्दोलन" के नाम से अंकित किया गया है। भारत की आजादी के सर्वप्रथम प्रणेता, असहयोग आन्दोलन के प्रवर्त्तक श्री सत्गुरु रामसिंह जी ने 12 अप्रैल 1857 ई. को श्री भैणी साहिब जिला लुधियाना (पंजाब) से जब अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाई तब भारतवासी पराधीनता के साथ-साथ अनेक अयोगामी धार्मिक प्रपंचों तथा सामाजिक कुरीतियों के तले दबे हुए थे।
इन परिस्थितियों में सतगुरु जी ने लोगों में आत्मसम्मान जगाने, भक्ति-भाव तथा वीर रस पैदा करने के लिए यह आवश्यक समझा कि सर्वप्रथम उनका नैतिक उत्थान तथा सामाजिक सुधार किया जाए, अन्यथा वे असहाय ही बने रहेंगे। अतः "भय काहू कउ देत नहि नहि भय मानत आन" के अनुकूल उनका आचरण ढालने तथा उनमें श्रेष्ठ नैतिक गुणों के विकास के लिए उन्होंने "नाम जप" तथा "गुरबाणी पाठ" पर विशेष जोर दिया। देशप्रेम, आपसी मेल-मिलाप, सहनशीलता तथा एकजुट रहने तथा बाँट कर खाने के लिए उन्हें प्रेरित किया दस नाखुनों की अर्थात् हक हलाल की कमाई करने के लिए गुरु नानक देव जी का यह शब्द "हक पराया-नानका उस सूअर उस गाय" उनका सिद्धान्त वाक्य बना दिया। यह सब कुछ उन्होंने इतने सरल ढंग से, लोगों की अपनी बोली, पंजाबी भाषा में ऐसे प्रचारित किया कि
(श्री सत्गुरु रामसिंह जी अंतरजाती एवं दाज़ रहित आनन्द कारज की प्रथा शुरू करते समय)
डी.आई जी मैक एण्ड्रियो की रिपोर्ट अनुसार "गुरु रामसिंह के प्रचार ने पंजाब में उथल-पुथल मचा दी" - (रिपोर्ट दिनांक 9/6/1862)
नामधारी सिक्खों के आचरण के सम्बंध में अंग्रेजी रिकार्ड कहता है- “कूका झूठ नहीं बोलता।" "कूका शराब नहीं पीता।"। Satguru Ram Singh Ji Maharaj, सतगुरु राम सिंह जी महाराज PDF Free download, सतगुरु राम सिंह जी महाराज PDF किताब, सतगुरु राम सिंह जी महाराज बुक फ्री डाउनलोड, Satguru Ram Singh Ji Maharaj Biography.
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