सदा दिवाली | Sada Diwali Hindi PDF Book

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सदा दिवाली | Sada Diwali Hindi PDF Book

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Dhanteras, Kali Chaudas, Diwali, Nutanvarsha and Bhai Dooj.... The festival of Diwali is considered to be a bundle of these festivals. ... Goodbye to the darkness of the past and welcome the new dawn of the new year.. New year and new thing.

In the new morning of the new year, start the new year by drinking self-prasad.

Morning memory. Yatswapnajagarasushuptamvaiti nityam tad brahma nishkalamah na cha bhutsanghah.

'In the morning, I remember the Self-tattva that springs up in my heart. The soul who is the form of Sachchidananda, who is the final movement of the paramahansa, who is in the form of Turiya, who always knows these three states of waking, dreaming and sleeping, and who is pure Brahman, that is I. I am not this body made up of Panchmahabhutas.'

Waking, dreaming and sleeping, these three states change, yet those who are irritable

Consciousness does not change. I meditate on that unbroken self-consciousness. Because that is my nature. The nature of the body changes, the nature of the mind changes, the decisions of the intellect change, yet the one who does not change, I am the immortal soul. I am the eternal part of the Supreme Soul." A seeker who meditates like this soon attains the state of nirlep bhav in the world.

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सदा दिवाली

धनतेरस, काली चौदस, दिवाली, नूतनवर्ष और भाईदूज.... इन पर्वो का पुञ्ज माने दिवाली के त्योहार शरीर में पुरुषार्थ, हृदय में उत्साह, मन में उमंग और बुद्धि में समता.... वैरभाव की विस्मृति और स्नेह की सरिता का प्रवाह... अतीत के अन्धकार को अलविदा और नूतनवर्ष के नवप्रभात का सत्कार... नया वर्ष और नयी बात.... नया उमंग और नया साहस.. त्याग, उल्लास, माधुर्य और प्रसन्नता बढ़ाने के दिन याने दीपावली का पर्वपुञ्ज ।

नूतनवर्ष के नवप्रभात में आत्म प्रसाद का पान करके नये वर्ष का प्रारंभ करें....

प्रातः स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वम् सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम् । यत्स्वप्नजागरसुषुप्तमवैति नित्यम् तद् ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसंघः ।।

'प्रातःकाल में मैं अपने हृदय में स्फुरित होने वाले आत्म-तत्त्व का स्मरण करता हूँ। जो आत्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है, जो परमहंसों की अंतिम गति है, जो तुरीयावस्थारूप है, जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं को हमेशा जानता है और जो शुद्ध ब्रह्म है, वही मैं हूँ। पंचमहाभूतों से बनी हुई यह देह मैं नहीं हूँ।'

जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति, ये तीनों अवस्थाएँ तो बदल जाती हैं फिर भी जो चिदघन

चैतन्य नहीं बदलता। उस अखण्ड आत्म-चैतन्य का मैं ध्यान करता हूँ। क्योंकि वही मेरा स्वभाव है। शरीर का स्वभाव बदलता है, मन का स्वभाव बदलता है, बुद्धि के निर्णय बदलते हैं फिर भी जो नहीं बदलता वह अमर आत्मा मैं हूँ। मैं परमात्मा का सनातन अंश हूँ।" ऐसा चिन्तन करने वाला साधक संसार में शीघ्र ही निर्लेपभाव को निर्लेप पद को प्राप्त होता है।

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Particulars

(विवरण)


 eBook Details (Size, Writer, Lang. Pages

(आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी)

 पुस्तक का नाम (Name of Book) 

सदा दिवाली | Sada Diwali PDF

 पुस्तक का लेखक (Name of Author) 

अज्ञात / Unknown

 पुस्तक की भाषा (Language of Book)

Hindi

 पुस्तक का आकार (Size of Book)

1 MB

  कुल पृष्ठ (Total pages )

 19

 पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)

धार्मिक / Religious


 


 


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