शाम्भवी तंत्र इन हिंदी पीडीऍफ पुस्तक | Shambhavi Tantra PDF Download Free
Shambhavi Tantra Book in PDF Download
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Shambhavi Tantra is not attained in its full form today. A small part of it is being published by Bharatiya Vidya Sansthan, Varanasi under the name 'Gyansankuli Tantra' with my translation. The present text is also only a part of the very vast Shambhavi Tantra. In this, the sense of Shambhavi Vidya is found everywhere, so its basic noun 'Shambhavi Tantra' seems to be expedient. As far as the other part of it can be received by divine grace in the distant future, it is planned to publish it in the form of its various volumes. Presently, its Sanskrit part is seen by Swanamdhanya Mahamahopadhyay Dr. Gopinathji Kaviraj, due to which the authenticity of the book becomes self-evident.
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इस तन्त्र को प्रायः लुप्त तत्र माना गया है । परम्परा की दृष्टि से इसे शैवतंत्र के अन्तर्गत् कहा जा सकता है। मानव के विकास की विधा में साधना का स्थान अन्यतम है। साधना क्रममार्ग के अवलम्बन से सम्पन्न होती है। अर्थात् क्रमिक रूप से सोपान क्रम से उर्ध्वारोहण । जो अधिकारी प्राक्तन एवं पूर्वार्जित क्रम के अनुसार जितना उन्नत होता है, वह उसी मात्रा में क्रमोन्नति का भागी होता है। अर्थात उसने पूर्वार्जित एवं प्राक्तन कर्म के अनुसार पूर्वजन्म में जहां तक की साधना को सम्पन्न कर लिया था, इस जन्म में वह उसी विन्दु से साधना प्रारंभ करता है। अर्थात् पूर्वजन्म में वह साधन पथ पर जहां तक अग्रसर हो चुका था, इस जन्म में उससे आगे के साधन पथ पर वह गतिशील होने लगता है। उसे पूर्व सम्पादित साधना को दोहराने की आवश्यकता नहीं रहती। श्रीमद्भगवद्गीता में भी इसी सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गयी है । इसी कारण से एक ही शास्त्र में अधिकारी भेद को प्रधान रखकर तदनुरूप अनेक साधनाओं का वर्णन किया गया है। जो जिस प्रकार की योग्यता से सम्पन्न है, वह तदनुरूप साधना का वरण करता है। तदनुरूप साधना, का वरण करने के अभाव में साधक अग्रगामी गति प्राप्त कर सकने से वंचित रह जाता है। इसी कारण एक ही शास्त्र में अनेक साधन विधि का उल्लेख प्राप्त होता है। साधकों की योग्यता में विविधता है।
शांभवी तन्त्र आज अपने पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं है। इसका एक क्षुद्र अंश मैरे अनुवाद के साथ 'ज्ञानसंकुली तंत्र' के नाम से भारतीय विद्या संस्थान, वाराणसी द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। प्रस्तुत ग्रंथ भी अति विशाल शांभवी तंत्र का ही एक अंश मात्र है। इसमें शांभवी विद्या का सर्वत्र आभास प्राप्त होता है, अतः इसकी मूल संज्ञा 'शांभवी तन्त्र' ही समीचीन प्रतीत हो रही है। दैवकृपा से इसके अन्य अंश की जहां तक प्राप्ति अदूर भविष्यत् में हो सकेगी, उसका प्रकाशन इसके विभिन्न खण्ड के रूप में करने की योजना है। सम्प्रति इसका संस्कृत अंश स्वनामधन्य महामहोपाध्याय डा० गोपीनाथ जी कविराज द्वारा दृष्ट है, जिसके कारण ग्रंथ की प्रामाणिकता स्वतःसिद्ध हो जाती है। shambhavi mahamudra book, शाम्भवी तंत्र PDF Free download, शाम्भवी तंत्र PDF किताब, शाम्भवी तंत्र PDF, शाम्भवी तंत्र बुक फ्री डाउनलोड,shambhavi mudra secrets, shambhavi mahamudra steps, Shambhavi Tantra pdf dowload.
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