Some Excerpts From the Book Aushdhiya Kharpatvar
The emergence of 'vegetation' in different stages of life development in the earth occurred long ago, even in the food chain, these plants make their own food while living on someone else, while the rest including humans have completely depended on plants for food and energy. Huh. Since ancient times, Naspatis have been used in various forms. It was the development of a culture that started many trees and plants for the food items produced from them. But apart from the trees grown from an economic or useful point of view, most of the vegetation grew unintentionally around in the wild. Whether the crop is sown or not, still greenery is visible all around, but greenery is more visible due to these wild vegetation, these unwanted vegetation that grows on its own in addition to the economically useful and desired crop or trees and plants are weeds. These unwanted wild plants are found everywhere in fields-barns, gardens-gardens, barren fallow-infertile lands, they are of one-year, or multi-year nature. Extremely tolerant of drought, excess moisture, waterlogging, and high-temperature adverse conditions, these weeds compete with any crop for nutrients and water. There is an opposite effect in lap crop production. Rainy season and moist climate are most conducive for the growth of spores, but these plants are seen in the form of weeds in Kharif, Rabi, and Zaid all seasons.
By clicking on the link given below, you can download the written book Aushdhiya Kharpatvar in PDF.
औषधीय खरपतवार पुस्तक के कुछ अंश
पृथ्वी में जीवन विकास के विभिन्न चरणों में वनस्पति' का उद्भव मानव ने बहुत पहले हुआ भोजन श्रंखला में भी ये वनस्पतियां किसी दूसरे पर रहते हुए अपना भोजन स्वयं निर्मित करती हैं जबकि मानव सहित बाकी ने भोजन एवं ऊर्जा के लिए पूर्णतः पेड़-पौधों पर आश्रित हैं। आदिकाल नस्पतियों का उपयोग विभिन्न रूपों में होता आ रहा है। संस्कृति विकास ही इनसे उत्पन्न खाद्य पदार्थों के लिए बहुत से पेड़-पौधों की बाकायदा ने लगी। लेकिन आर्थिक या उपयोगी दृष्टिकोण से उगाये गये पेड़ अलावा ज्यादातर वनस्पतियां अनचाहे ही जंगली रूप में चारों ओर उगी । चाहे फसल बोयें या न बोयें फिर भी चारों तरफ हरियाली दिखायी देती पर हरियाली इन्हीं जंगली वनस्पतियों के कारण ज्यादा दिखाई देती गयी आर्थिक उपयोगी एवं वांछित फसल या पेड़-पौधों के अलावा रूप से अपने आप उग आने वाली ये अवांछित वनस्पतियां खरपतवार हैं। ये अवांछित जंगली पौधे खेत-खलिहान, बाग-बगीचों, बंजर परती जाऊ-अनुपजाऊ सभी भूमियों में सर्वत्र पाये जाते हैं ये एकवर्षीय, या बहुवर्षीय प्रकृति के होते हैं। सूखा, ज्यादा नमी, जलभराव, उच्च ताप विपरीत परिस्थितियों के प्रति अति सहिष्णु ये खरपतवार किसी भी फसल के साथ पोषक तत्व व पानी हेतु अत्यधिक प्रतियोगिता करते हैं। लप फसलोत्पादन में विपरीत प्रभाव पड़ता है। वर्षाऋतु एवं नम जलवायु रों के पनपने के लिए सबसे अनुकूल होती है लेकिन खरपतवार के रूप ये पौधे खरीफ, रबी एवं जायद सभी मौसमों में देखे जाते हैं।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके, आप लिखित पुस्तक औषधीय खरपतवार पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते हैं।
Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
औषधीय खरपतवार | Aushdhiya Kharpatvar PDF | |
डॉ. दशन्य ओझा / Dr. Dashanya Ojha,विजयेन्द्र स्नातक / Vijayendra Snatak | |
Hindi | |
Ayurveda books |
No comments:
Post a Comment