रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड - हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2 - Hindi PDF Book

रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड - हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2 - Hindi PDF Book
रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड - हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2

Some Excerpts From the Book Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2

There is more material for reading, contemplation and experience in this section than in the first section. Every single letter of this is useful. In this, place has been given to those experiment gems, which due to their supernatural and miraculous properties have buried their fingers under the teeth of the devotees and their attendants. Certain experiments of this section have closed the chirping mouth of the Western scholars and have made the incurable and terminally ill patients not only bedridden, but also healthy and strong, so we hope that the physicians and generous gentlemen who wish for fame, like this section also do their work as before. Taxes will make our efforts successful.

This petty pen cannot describe the sacrifice and hard work that Shri Poo Swamiji Maharaj has had to make in collecting these experiment gems. Scholars and appreciative readers will come to know the truth of our statements as their curse. In this section, a collection of the offerings of ancient Maharishis, Siddhas, revered renunciation idols, saints, as well as the well-tested and proven fruitful experiments of experienced physicians have also been made. Home remedies and running jokes have also been adopted in place.

Gentlemen who have read the first volume of Rastantrasara and Siddhaprayog Sangrah, Medicine Tatva Pradeep, Medicine Gun Dharma Vicharana, sick care, have consumed medicines from Shruthva Krishna Gopal Ayurvedic Charitable Dispensary, it is useless to introduce the personality and profession of Shri Swamiji Maharaj. It will be enough for us to say that, it is the self-power of Shri Swamiji that people rejected the statement 'Shiram dadyat sutam dadyat na dadyat mantramaushadham', keep enchanted serpents doing their own experiments and give the rituals to melt metals.

In others published from this institution, the opinion of the ancient Thor ancient literature has been discussed in detail in comparative terms. In which the method of making each felt experiment, its properties, proportions, etc. are written in simple language. By not hiding the experience of hundreds of years, they have published the Ayurveda with the aim of progress and placed it in front of the Vaidya society. Due to this only reason, 6 editions of Rastantrasar and Siddhamayog Sangrah were sold in such a short time and 7 or Sarkaran is also going to end soon.

There is no personal self in this problem and to keep it running smoothly, a host of 11 eminent gentlemen of Mant has been made. The benefits obtained from medicines and books are used to serve the poor.

Special attention is paid to purity and purity at the time of making Shraushadhi in Rasayana Shala and each experiment is prepared according to the legislation written in the books published by the institution.

(1) Well ripe chemicals and ashes.

1. Golden class.

First method - Pure Parad, Pure Gandhak, Pure Kalai and Nausadar all four 12. - 12 Take 6 mash of Tola and Kalmishora. Put the kaliko in the pan and mix it with the juice. Then make Kajali by mixing sulfur, salt and salt, fill it in a large belly and big pointed sratsi vial made of cloth. Keep that bottle in the hand with the hole pierced at the bottom. bottom hole 1॥ 1 Round out the inch. Put the bottle in the handi and fill it up to the name of the bottle. Then give a bright fire below. Nosadar gets applied on the mouth, due to which the mouth keeps closing. Therefore, keep doing the test by running the hot iron salt again and again from time to time with great care. After 4-5 hours, the shiny substance starts sticking on the tip of the iron. Then understand that the golden square has come to be ready. When the gold rod sticks firmly on the rod, it does not rise easily, then stop giving fire. Golden class becomes pure in about 6 houses. If the fire is slow, it takes 8 hours. When the disguise is cool, break the bottle methodically and remove the flowers of Nausadar from above and Chang's vermilion from below. Stunning golden clusters are found in the stem like beautiful guinea gold, keep it aside.

By clicking on the link given below, you can download the written book Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2 in PDF.

रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड पुस्तक के कुछ अंश

इस खण्डमें प्रथम खण्डकी अपेक्षा पठन, मनन तथा अनुभव करनेकी सामग्री धिक है। इसका एक एक पत्र उपादेय है। इसमें उन प्रयोग रत्नोंको स्थान दिया जया है, जिन्होंने अपने अलौकिक व चमत्कारिक गुणोंके कारण श्रातुरों व उनके परि चारकोंके दांतोंके नीचे अंगुलियां दबवा दी हैं। इसी खण्डके कतिपय प्रयोगोंने पाश्चात्य चैद्यविद्याविशारदोंके चहकते हुए मुखको बन्द कर असाध्य और भूमिस्थ मरणप्रायः रोगियोंको शय्यारूढ ही नहीं, प्रत्युत स्वस्थ और सबल बना दिया है, अतः हम श्राशा करते हैं कि, यशकी इच्छा रखने वाले वैद्य तथा उदार सज्जन वृन्द इस खण्डको भी पूर्वकी भांति अपना कर हमारे प्रयत्तोंको सफल बनायेंगे ।

इन प्रयोग रत्नोंका संग्रह करनेमें श्री० पू० स्वामीजी महाराजको जो त्याग और परिश्रम करना पड़ा है, उसका वर्णन यह क्षुद्र लेखनी कर नहीं सकती । विद्वान् तथा कदरदान पाठकोंको हमारे कथनकी सत्यता अपने श्राप मालूम पड़ जावेगी । इस खण्डमें प्राचीन महर्षियों, सिद्धों, श्रर्वाचीन त्याग मूर्ति सन्तोंकी प्रसादियोंके साथ साथ अनुभवी वैद्योंके चिर परीक्षित तथा सद्यः फलदाता प्रयोगोंका भी संग्रह किया गया है। घरेलू नुस्खों व चलते चुटकलोंको भी यथास्थान अपनाया गया है ।

जिन सज्जनोंने रसतन्त्रसार व सिद्धप्रयोगसंग्रह प्रथमखण्ड, चिकित्सातत्वप्रदीप, औषधगुणधर्मविवेचन, रुग्ण परिचर्याको पढ़ा है, श्रथवा कृष्णगोपाल आयुर्वेदिक धर्मार्थं औषधालयको दवाईयोंका सेवन कर लिया है, उनको श्री० स्वामीजी महाराजके व्यक्तित्व च अध्यवसायका परिचय देना बेकार है। हमारा इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि, यह श्री० स्वामीजीका ही आत्मबल है कि लोगों ने ' शिरं दद्यात् सुतं दद्यात् न दद्यात् मंत्रमौषधम्" कथनको ठुकरा कर मंत्रमुग्ध सर्पवत् अपने अपने प्रयोग रखों और धातु धातुओंको मस्म करनेकी क्रियाओंको दे दिया। 

इस संस्था से प्रकाशित अन्योंमें सर्वाधीन थोर प्राचीन साहित्यके मतका तुलनात्मक दृष्टिसे विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। जिनमें प्रत्येक अनुभूत प्रयोग बनानेकी विधि, गुण, अनुपान, यादि सरल भाषा में लिसे हैं। सैंकड़ों वर्षके अनुभूत प्रयोगको न छिपाकर थायुर्वेदको उन्नतिके बध्यसे प्रकाशित कर वैद्य समाजके सन्मुख रखदिये हैं। इसी एक मात्र कारणसे इतने अल्प समयमे ही रसतन्त्रसार व सिद्धमयोगसंग्रहके ६ सस्करण विक गये और ७ या सरकरण भी प्राय शीघ्र ही समाप्त होने वाला है।

इस सस्या में किसीका व्यक्तिगत स्वायें नहीं है एवं इसका सचालन सुचारु रूप से होते रहनेके लिए मान्तके ११ प्रतिष्ठित सज्जनोंका दूस्टमण्डल बना दिया गया है । औषध और पुस्तक विश्वीसे जो लाभ मिलता है उसका उपयोग गरीवाँकी सेवा करने में किया जाता है।

रसायन शाला में श्रौषधि निर्माण समय शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रस्सा जाता है औौर प्रत्येक प्रयोग संस्थासे प्रकाशित ग्रन्थोंमें लिसे विधान के अनुसार ही तैयार किया जाता है।

(१) कूपीपक्व रसायन और भस्म ।

१. सुवर्ण वङ्ग ।

प्रथम विधि - शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध कलई और नौसादर चारों १२॥ - १२ ॥ तोले तथा कल्मीशोरा ६ माश लें। कलईको कड़ाही में डाल रस करके पारद मिलावें । फिर गन्धक, नौसादर और शोरा मिलाकर कजली करें, कपड़मिट्टी की हुई बड़े पेट और बड़ी नोंकवाली श्रातसी शीशीमें भरें । उस बोतलको नीचे छेदकी हुई हांडीमें रक्खें । नीचेका छेद १॥ १ ॥॥ इंच गोलाईका करें। बोतल हांडीमें रखकर बोतलकी नामि तक वालुका भरें। फिर नीचे तेज अग्नि देवें । नोसादर मुँहपर लगता जाता है, जिससे मुँह बन्द होता रहता है । अतः सम्हालपूर्वक बीच बीच में बार-बार तप्त लोह सलाकाको चला चलाकर परीक्षा करते रहें । ४-५ घण्टे पर लोहसलाकाकी नोकपर तेजस्वी द्रव्य चिपकने लगता है । तब समझ लें, कि स्वर्ण वङ्ग तैयार होने आई है। सलाका चलाने पर स्वर्ण वङ्ग दृढ़ चिपके, सरलतासे ऊपर न उठे, तब अग्नि देना बन्द करदें । लगभग ६ घरमें स्वर्ण वङ्गका पाक हो जाता है । श्रग्नि मंद हो, तो ८ घण्टे लगते हैं। स्वांग शीतल होने पर बोतलको विधिपूर्वक तोड़कर ऊपरसे नौसादरके पुष्प और उसके नीचेसे चङ्ग सिंदूरको अलग निकालें। पैदेमें सुन्दर गिनीगोल्डके समान तेजस्वी स्वर्ण वङ्ग मिलती है उसे अलग रखें।

नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके, आप लिखित पुस्तक रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते हैं। 


Particulars

(विवरण)


 eBook Details (Size, Writer, Lang. Pages

(आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी)

 पुस्तक का नाम (Name of Book) 

रस तन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड | Ras Tantra Sar va Siddh Prayog Sangrah Vol – 2 PDF 

 पुस्तक का लेखक (Name of Author) 

कृष्ण गोपाल / Krishan Gopal

 पुस्तक की भाषा (Language of Book)

Hindi

 पुस्तक का आकार (Size of Book)

18 MB

  कुल पृष्ठ (Total pages )

 260

 पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)

Granth


 
 ॥ सूचना ॥
अगर इस पेज पर दी हुई सामग्री से सम्बंधित कोई भी सुझाव, शिकायत या डाउनलोड नही हो रहे हो तो नीचे दिए गए "Contact Us" के माध्यम से सूचित करें। हम आपके सुझाव या शिकायत पर जल्द से जल्द अमल करेंगे।

Download Other Popular Books 👇

No comments:

Post a Comment