Some Excerpts From the Book Aham Brahmasmi
Ego-vritti / sense of 'I am'.
The questioner is the experience of continual copy that as soon as he wakes up from sleep, the world suddenly appears. Where does it come from? Maharaj, before anything can take existence, it is necessary to have someone for whose reason the object is manifesting after taking existence. Change in the process of appearance and disappearance of all things, and the background of such change must be to recognize an unchangeable element.
Q: Before I woke up I was conscious. in what way? Were you kind of memoryless, or devoid of experience? Do you stop feeling when you are unconscious? Is your existence possible without knowledge? Is the disturbance in memory proof of your non-existence? And even if seen from a rational point of view, is it possible that you can express your non-existence as a real experience? You cannot even say that your mind did not exist. When someone calls you, don't you wake up even in your sleep? And when you wake up, doesn't this feeling of 'I am' arise first? Therefore, even in sleep or unconsciousness, consciousness must exist like a seed. The experience of waking up assumes something like "I am in the body-world."
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अहं ब्रह्मास्मि पुस्तक के कुछ अंश
अहं-वृत्ति / 'मैं हूँ' का भाव ।
प्रश्नकर्ता यह नित्य प्रति का अनुभव है कि निद्रा से जागते ही ससार अकस्मात् प्रतीत होने लगता है। यह कहाँ से आता है? महाराज कोई भी वस्तु अस्तित्व ग्रहण कर सके, इससे पूर्व कोई होना आवश्यक है, जिसके निमित्त वस्तु अस्तित्व ग्रहण कर प्रगट हो रही हो। सभी वस्तुओं की प्रतीति और विलुप्ति होने की प्रक्रिया में परिवर्तन, और इस प्रकार के परिवर्तन की पृष्ठभूमि के रूप में एक परिवर्तन रहित तत्त्व को मानना ही होगा।
प्र. : जाग पड़ने से पूर्व मैं चेतना शून्य था। म किस प्रकार से ? क्या तुम स्मृतिशून्य की तरह थे, या कि अनुभव से रहित ? क्या अचेत होने पर तुम अनुभव करना बंद कर देते हो ? क्या ज्ञान के बिना तुम्हारा अस्तित्व संभव है? क्या स्मृति में व्यवधान तुम्हारे अस्तित्व रहित होने का प्रमाण है ? और यदि तर्कसंगत दृष्टि से भी देखा जाये तो क्या यह संभव है कि तुम अपने न होने को वास्तविक अनुभव के रूप में व्यक्त कर सको? तुम यह भी नहीं कह सकते कि तुम्हारे मन का अस्तित्व नहीं था। जब कोई तुम्हें पुकारता है, तो क्या तुम निद्रा में भी जाग नहीं पड़ते? और जाग जाने पर क्या 'मैं हूँ' यही भाव सबसे पहले नहीं उठता? अतः सुषुप्ति अथवा मूर्च्छा में भी चेतना किसी बीज की तरह विद्यमान रहती अवश्य है। जागने पर का अनुभव कुछ ऐसी गति ग्रहण करता है "मैं हूँ- देह-संसार में।"
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अहं ब्रह्मास्मि- Aham Brahmasmi PDF | |
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