ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य - रत्नप्रभा भाषानुवाद सहित हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Brahmasutra Shankar Bhashya - Ratnaprabha Bhashanuvad Sahit PDF Download Free
Some Excerpts From the Book Brahmasutra Shankar Bhashya - Ratnaprabha Bhashanuvad Sahit
Its name is 'Brahmasutra Shankarabhashya Ratnaprabha', 'Brahmasutra Shankara bhashya Ratnaprabha' (Bhag-1). In this excellent book, the original Brahmasutra, then Shankaracharya's 'Barirak Bhashya' composed on it and Govindanand's 'Ratnaprabha Bhashya' has been given on it and easy and excellent Hindi translation of all three has also been given.
The brother of the enemy, who took refuge in compassion, soon attained an elevated position, I am found in the shelter of that Paramhari (Shri Ramchandraji) in the form of blissful joy, carrying Janaki in her arms. 1
I bow down to the imperishable, imperishable Kashipati Shri Shivji, who gives all the favored things through Siparvati's jaw, gives salvation through his lotus feet, removes the strong group of vima with the sword of Lord Ganesha, with his material, Gajcharm Khappar etc. 2
By whose grace even a dumb man becomes a pundit, that Veerapani with the body of Vedas
I meditate in Srisaraswatika. 3 Shri Shiv Ram Yogi, who expressed his differences with Shiva and Shri Vishnu by his own name, lived in Kali. Sri Kamakshi Devi gave him Devdurlabh abundant kheer with her own hands. They became very revered after eating it. Shri Gopal Saraswati attained self-realization from him. The lotus face of Shri Govind Saraswatiji developed from the supreme Advaita's form manifested by Gopal Saraswati. Having gone like an immortal at the lotus feet of the same Guru Maharaj, I have become happy, having attained knowledge. 4
Salutations to the commentator Shri Shankaracharyaji and the author, Lord Shrived Vyasji, by paying homage to the Paramhansas (the best
For the satisfaction of humans, in the scripture of commentary (Jalavatar), Bagjal-roop bondage (water-formed bondage)
I call the remedy to remove 5 For those whose mind remains laziness in looking at the gigantic book, for them an explanation called Bhashyarasprabha (Many form of Maniki Kanti) is composed. 6
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ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य - रत्नप्रभा भाषानुवाद सहित पुस्तक के कुछ अंश
इसका नाम 'ब्रह्मसूत्र शाङ्करभाष्य रत्नप्रभा' 'Brahmasutra Shankara bhashya Ratnaprabha' (Bhag-1) है। इस अत्युत्तम ग्रन्थ में मूल ब्रह्मसूत्र फिर उस पर शंकराचार्य रचित 'शारीरक भाष्य' एवं उस पर गोविन्दानन्द विरचित 'रत्नप्रभा भाष्य' दिया गया है तथा तीनों का सहज एवं उत्कृष्ट हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है।
जिस करुणामयको शरणर्ने गया हुआ शत्रुका भाईभी शीघ्र उन्नत पदको प्राप्त हुआ, जानकी जीको गोदमें लिए हुए निरतिशय आनन्दरूप उस परमहरि ( श्रीरामचन्द्रजी) की शरण में प्राप्त होता हूं ॥ १ ॥
सीपार्वतीजांके द्वारा सब इष्ट पदार्थोंको देनेवाले, अपने चरण कमलसे मोक्ष देनेवाले, श्रीगणेशजी के मुखरूप तलवारसे प्रबल विमसमूहको दूर करनेवाले, गजचर्म खप्पर आदि अपनी सामग्रीसे, वैराग्य-सुखसे बढ़कर कुछ नहीं है ऐसा उपदेश करते हुए निष्कल्मष, अविनाशी काशीपति श्रीशिवजी को में प्रणाम करता हूं ॥ २ ॥
जिसकी कृपाके लेशमात्रसे गूंगा भी पण्डित हो जाता है, वेदशास्त्र शरीरवाली उस वीणापाणि
श्रीसरस्वतीका में ध्यान करता हूं ॥ ३ ॥ अपने नामसे श्रीविष्णु तथा शिवके साथ अपना अभेद प्रकट करनेवाले श्रीशिवराम योगी काळीमें रहते थे। उन्हें श्रीकामाक्षी देवीने अपने हाथोंसे देवदुर्लभ प्रचुर खीर दी। उसे खाकर वे अति पूज्य हुए। उन्हांसे श्रीगोपाल सरस्वतीको आत्मबोधकी प्राप्ति हुई। गोपाल सरस्वतांसे प्रकटित परम अद्वैतकी आमासे श्रीगोविन्दसरस्वतीजीका मुखकमल विकसित हुआ। उन्हीं गुरु महाराज के चरण कमलों में अमरके समान गया हुआ मैं, ज्ञान प्राप्तकर, सुखी हुआ हूँ॥ ४ ॥
भाष्यकार श्रीशङ्कराचार्यजी एवं सूत्रकार भगवान् श्रीवेदव्यासजीको प्रणामकर परमहंसों (श्रेष्ठ
इंसों) के सन्तोषके लिए भाष्यरूपी शास्त्र ( जलावतार) में बाग्जालरूपी बन्धन (जलरूपी बन्धन )
को दूर करनेवाले उपायको कहता हूँ ॥ ५ ॥ विशालकाय ग्रन्थको देखनमें जिनका मन आलस्ययुक्त रहता है, उनके लिए भाष्यरसप्रभा ( मान्यरूपी मणिकी कान्ति) नामकी व्याख्या रची जाती है ॥ ६ ॥
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