मिर्जा ग़ालिब द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Mirza Ghalib PDF Download Free
Mirza Ghalib |
Mirza Ghalib Book in PDF Download
The Mughal Empire in India was taking its last breath. The Nawabzades were immersed in luxury. They either used to get caught up in chess and backgammon or they used to waste all the time in quail. The rest of the time was spent in drinking and dancing and singing. Delhi, which had remained Indrapuri during the time of Emperor Shah Jahan, looked like a widow at this time. He was robbed many times, sometimes from loved ones and sometimes from others. The people had become poor. There was a storm of unrest and economic troubles all around in the society.
The British had caught the entire country in their clutches with their tricks. The king and the emperor were left. Even to say that Bahadur Shah Zafar was the Mughal emperor but his name empire was limited only to the Red Fort of Delhi. Even in the Red Fort, there was no money to pay salaries to the servants. The treasury was empty.
Even at a time when there was decline all around, there was one area which was on the way to progress. He was Urdu poet Emperor Bahadur Shah Zafar himself was a good poet. The Red Fort was the center of Shero-Shayari during his time. Mushairas of high order were often held there. Ibrahim Jauk, Maumin and Mirza Ghalib are the great poets of this period. After Mirza Ghalib Jauk was the royal poet of Emperor Zafar. He also used to embellish the poetry of Emperor Zafar.
Mirza Ghalib has been a very popular poet. Even today his lions live on people's tongues. This line, which is often repeated on the occasion of birthday, is from the same great poet:
May you be safe for a thousand years, the days of every year are fifty thousand.
Ghalib's centenary was celebrated with great pomp in the country and abroad in the year 1966.
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ग़ालिब कौन है ?
भारत में हुए मुग़ल साम्राज्य अपनी अंतिम साँसें ले रहा था। नवाबजादे विलासिता में डूबे थे। वे या तो शतरंज और चौसर में फंसे रहते थे या फिर बटेरवाज़ी में सारा समय गँवा देते थे। शेष समय मदिरा-पान और नाच-गानों में बीतता था। दिल्ली, जो सम्राट शाहजहाँ के समय में इंद्रपुरी बनी हुई थी, इस समय विधवा- सी लगती थी। वह कई बार लुटो-पिटी, कभी अपनों से तो कभी ग़ैरों से । जनता निर्धन हो गई थी। समाज में चारों ओर अशांति और आर्थिक संकटों का तूफान था ।
अंग्रेजों ने अपनी चाल से संपूर्ण देश को अपने शिकंजे में जकड़ लिया था। राजे-महाराजे के रह गए थे। यहाँ तक कि कहने को तो बहादुरशाह जफ़र मुग़ल सम्राट थे लेकिन उनका नाम साम्राज्य केवल दिल्ली के लाल किले तक सीमित था। लाल किले में भी नौकर-चाकरों को वेतन देने के लिए धन नहीं था। खजाना खाली हो चुका था।
ऐसे समय में भी, जबकि चारों ओर गिरावट ही गिरावट थी, एक क्षेत्र ऐसा भी था जो उन्नति की ओर अग्रसर था। वह था उर्दू काव्य सम्राट बहादुरशाह जफ़र स्वयं एक अच्छे शायर थे। उनके समय में लाल किला शेरो-शायरी का केन्द्र था। वहाँ उच्च कोटि के मुशायरे अकसर होते रहते थे। इब्राहीम जौक़, मौमिन और मिर्ज़ा ग़ालिब इस काल के महान शायर हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब जौक के बाद सम्राट जफ़र के राजकवि रहे। वे सम्राट जफ़र की कविता भी सँवारा करते थे ।
मिर्जा ग़ालिब बहुत ही लोक प्रिय कवि हुए हैं। आज भी उनके शेर लोगों की ज़बान पर रहते हैं। जन्म-दिवस के अवसर पर प्रायः दुहराई जाने वाली यह पंक्ति उसी महान शायर की है :
तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार ।
ग़ालिब की शताब्दी सन् १९६६ में बड़ी धूमधाम से देश-विदेश में मनाई गई।
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Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
मिर्जा ग़ालिब | Aghori Tantra PDF | |
Hindi | |
123 | |
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