बिखरे मोती | Bikhre Moti |
रूढ़ियों और सामाजिक बन्धनों की शिलाओं पर अनेक निर पराध आत्माएँ प्रतिदिन ही चूर चूर हो रही हैं । उनके हृदय बिन्दु जहाँ-तहाँ मोतियों के समान विखरे पड़े हैं । मैंने तो उन्हें केवल बटोरने का ही प्रयत्न किया है मेरे इस प्रयत्न में कला का लोभ है और अन्याय के प्रति क्षोभ भी। सभी मानवों के हृदय एक से हैं। वे पीड़ा से दुःखित, अत्याचार से रुष्ट और करुणा से द्रवित होते है । दुःख, रोप, और करुणा, किसके हृदय में नहीं हैं ? इसीलिए ये कहानियाँ मेरी न होने पर भी मेरी हैं, आपकी न होने पर भी आपकी और किसी विशेष की न होने पर भी सबकी हैं । समाज और गृहस्थी के भीतर जो घात, प्रतिघात निरंतर होते रहते हैं उनकी यह प्रतिध्रनियाँ मात्र हैं; उन्हें आपने सुना होगा। मैंने कोई नई बात नहीं लिखी है; केवल उन प्रतिध्वनियों को अपने भावुक हृदय की तंत्री के साथ मिलाकर ताल स्वर में बैठाने का ही प्रयत्न किया है।
हृदय के टूटने पर आंसू निकलते हैं, जैसे सीप के फूटने पर मोती । हृदय जानता है कि उसने स्वयं पिघल कर उन आंसुओं को ढाला है । अत: वे सच्चे हैं । किन्तु उनका मूल्य तो कोई प्रेमी ही बतला सकता है । उसी प्रकार सीप केवल इतना जानती है कि उसका मोती खरा है; वह नहीं जानती कि वह मूल्यहीन है अथवा बहुमूल्य । उसका मूल्य तो रत्नपारिखी ही बता सकता है। अतएव इन 'बिखरे मोतियों का मूल्य कलाविद् पाठकों के ही निर्णय पर निर्भर है।
मुझे किसी के सामने इन्हें उपस्थित करने में संकोच ही होता था परन्तु श्रद्धेय श्री० पदुमलाल पुन्नालाल जी बख्शी के आग्रह और प्रेरणा ने मुझे प्रोत्साहन देकर इन्हें प्रकाशित करा ही दिया, जिसके लिए हृदय से तो मैं उनका आभार मानती हूँ किन्तु साथ ही डरती भी हूँ कि कहीं मेरा यह प्रयत्न हास्यास्पद ही न सिद्ध हो ।
सुभद्राकुमारी चौहान
पुस्तक का नाम/ Name of Book : बिखरे मोती | Bikhre Moti
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : सुभद्रा कुमारी चौहान - Subhadra Kumari Chauhan
श्रेणी / Categories : साहित्य / Literature
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 17.43 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 209
॥ सूचना ॥
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