Sunday, February 28, 2021

रघुवंश महाकाव्य : कालिदास प्रणीत | Raghuvansh Mahakavya : by Kalidas Pranit

रघुवंश महाकाव्य : कालिदास प्रणीत द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – काव्य | Raghuvansh Mahakavya : by Kalidas Pranit Hindi PDF Book – Poetry (Kavya)

रघुवंश महाकाव्य : कालिदास प्रणीत द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Raghuvansh Mahakavya : by Kalidas Pranit Hindi PDF Book 

 रघुवंश कालिदास द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। इस महाकाव्य में उन्नीस सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न 29 राजाओं का इक्कीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हुए वर्णन किया गया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। वे सभी समाज में आदर्श स्थापित करने में सफल हुए। राम का इसमें विशद वर्णन किया गया है। उन्नीस में से छः सर्ग उनसे ही संबन्धित हैं।

आदिकवि वाल्मीकि ने राम को नायक बनाकर अपनी रामायण रची, जिसका अनुसरण विश्व के कई कवियों और लेखकों ने अपनी-अपनी भाषा में किया और राम की कथा को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। कालिदास ने यद्यपि राम की कथा रची परन्तु इस कथा में उन्होंने किसी एक पात्र को नायक के रूप में नहीं उभारा। उन्होंने अपनी कृति 'रघुवंश' में पूरे वंश की कथा रची, जो दिलीप से आरम्भ होती है और अग्निवर्ण पर समाप्त होती है। अग्निवर्ण के मरणोपरान्त उसकी गर्भवती पत्नी के राज्यभिषेक के उपरान्त इस महाकाव्य की इतिश्री होती है।

रघुवंश पर सबसे प्राचीन उपलब्ध टीका १०वीं शताब्दी के काश्मीरी कवि वल्लभदेव की है। किन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध टीका मल्लिनाथ (1350 ई - 1450 ई) द्वारा रचित 'संजीवनी' है।


पुस्तक का नाम/ Name of Book : रघुवंश महाकाव्य / Raghuvansh Mahakavya 
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : कालिदास - Kalidas
श्रेणी / Categories : काव्य / Poetry
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 24.7 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 427


 
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श्रृंगार तिलक : कालिदास | Shringaar Tilak by Kalidas

श्रृंगार तिलक : कालिदास  | Shringaar Tilak by Kalidas

Shringaar Tilak by Kalidas|श्रृंगार तिलक : कालिदास के बारे में अधिक जानकारी -

यह "शृङ्गारतिलक" शङ्कार रस के खण्ड काव्यों में अनूठा है,नववयस्क विद्यार्थी लोग प्रायः इस ग्रंथ के दो चार झोकों को कण्ठस्य रखते हैं, इस ग्रंथ के निर्माता कविकुल तिलक "कालिदास जी" का नाम सर्वत्र ही प्रसिद्ध है, सुशि- हित समाज में शायद ऐसे बिरले ही लोग होंगे जो कि "कालिदास" के नाम से अपरिचित होते ॥

पर उन कालिदास जी का "जीवनचरित्र" आज तक ऐसा नहीं देखने में आया जिससे चित्त को पूर्ण सन्तोष हो सके । लेकिन सूर्य को कोई छिपा भी नहीं सकता, यद्यपि काशी के अस्त मित भारतेन्दु "बाबू इरि्चन्दপजी ने" अपने "चरितावली"नामक इतिहास ग्रंथ में "कालिदास का चरित्र" शीर्षक विशाल लेख देकर मुक्तकण्ठ होकर यह दिखा दिया है कि उक्त कवि के समय का ठीक पता नहीं लगता बरन कर एक "कालिदास का" होना निश्चित है। परन्तु इस प्रसिद्ध पद्य के अनुसार महाराज "विक्रमादित्य के" दरबार में इन महाकवि का रहना प्रमाणित होता है।
 


पुस्तक का नाम/ Name of Book : श्रृंगार तिलक | Shringaar Tilak
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : कालिदास - Kalidas
श्रेणी / Categories : काव्य / Poetry
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 8.6 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 18


 
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Saturday, February 27, 2021

कालिदास और उनकी कविता : कालिदास | Kalidas Aur Unki Kavita by Kalidas

कालिदास और उनकी कविता : कालिदास  | Kalidas Aur Unki Kavita by Kalidas

 Kalidas Aur Unki Kavita by Kalidas | कालिदास और उनकी कविता : कालिदास के बारे में अधिक जानकारी



पुस्तक का नाम/ Name of Book :   कालिदास और उनकी कविता | Kalidas Aur Unki Kavita
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : कालिदास - Kalidas
श्रेणी / Categories : काव्य / Poetry
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 3.12MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 183



 
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Friday, February 26, 2021

रसीदी टिकट | Rasidi Ticket by Amrata Pritam

रसीदी टिकट  | Rasidi Ticket by Amrata Pritam

 Rasidi Ticket : by Amrita Pritam Free Hindi PDF Book | रसीदी टिकट : अमृता प्रीतम द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक




पुस्तक का नाम/ Name of Book :   रसीदी टिकट | Rasidi Tikat
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
श्रेणी / Categories : इतिहास / History
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 3.3MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 192



 
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Thursday, February 25, 2021

अभिज्ञान शकुन्तला नाटक : कालिदास | Abhigyan Shakuntalam Natak by Kalidas

अभिज्ञान शकुन्तला नाटक : कालिदास | Abhigyan Shakuntalam Natak by Kalidas

Abhigyan Shakuntalam Natak by Kalidas | अभिज्ञान शकुन्तला नाटक : कालिदास 

 इस शकुंतला नाटक में सस्कृत, तथा प्राकृतभाषा, व श्लोक, बहुत से छंदों में गर्भित हैं । सो ही उक्र जनने सुगमता से संस्कृत की भाषा और प्राकृतकी भी स्वदेशीय मध्यदेश की भाषा विभू पितकी है । तथा श्लोकों का प्रतिबिम्ब भाषा अर्थात् (फोटो ग्रাफ्) तसवीर किया है सोही पहिले मंगलावरणपर्वक (नांदी) जो कि नाटक के आदि में आशिपहै सो कहते हैं 
अभिज्ञान शाकुन्तलम् महाकवि कालिदास का विश्वविख्यात नाटक है ‌जिसका अनुवाद प्रायः सभी विदेशी भाषाओं में हो चुका है। इसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय, विवाह, विरह, प्रत्याख्यान तथा पुनर्मिलन की एक सुन्दर कहानी है। पौराणिक कथा में दुष्यन्त को आकाशवाणी द्वारा बोध होता है पर इस नाटक में कवि ने मुद्रिका द्वारा इसका बोध कराया है।

पुस्तक का नाम/ Name of Book :   अभिज्ञान शकुन्तला नाटक | Abhigyan Shakuntala Natak
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : कालिदास - Kalidas
श्रेणी / Categories : साहित्य / Literature
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book :  18 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 262



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Tuesday, February 23, 2021

अभिधम्मपिटक | Guide Through The Abhidhamma Pitaka by Nyanatiloka Mahathera

अभिधम्मपिटक | Guide Through The Abhidhamma Pitaka by Nyanatiloka Mahathera


The Abhidhamma Pitaka Book in PDF Download

Guide Through The Abhidhamma Pitaka by Nyanatiloka Mahathera, Comprehensive Manual of Abhidhamma PDF, Abhidhammattha Sangaha PDF, Abhidhamma books, Abhidhamma Pitaka pdf This very valuable synopsis of canonical Abhidhamma literature has been out of print for a long time and greatly missed by students of Buddhist philosophy. It is therefore much appreciated that the Bauddha Sahitya Sabhat we taken to reprint it, thus continuing the laudable service rendered by that society in the field of Buddhist literature. It was the Venerable Author's wish to revise this book fully and enlarge it himself, but the infirmities of old-age obliged him to entrust this task to his pupil the undersigned. At his suggestion, a new introductory chapter on the Abhidhamma Mātika, with a complete translation of it, has been included. As to the previously existing chapters, the most numerous additions are those made to Chapter II, on the Vibhanga. Here, for instance, the intricate divisions and sub-divisions found in some of the sections have been outlined and partly illustrated by extracts. The details of these rather involved classifications certainly do not make interesting reading, yet the editor regarded it as a principal aim of this book to clarify the structure of the several Abhidhamma works and thus aid closer study of them. With that aim in view, tables have been included in the chapter on the Patthana which show by symbols some of the regular permutations of terms used in that work. But owing to restrictions of space required by the present edition, the chapter on the Patthana could not be extended beyond its present limits.

By clicking on the link given below, you can download the written book Guide Through The Abhidhamma Pitaka in PDF.


Particulars

(विवरण)


 eBook Details (Size, Writer, Lang. Pages

(आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी)

 पुस्तक का नाम (Name of Book) 

अभिधम्मपिटक | Guide Through The Abhidhamma Pitaka 

 पुस्तक का लेखक (Name of Author) 

न्यातिलोक महाथेरा / Nyanatiloka Mahathera

 पुस्तक की भाषा (Language of Book)

English

 पुस्तक का आकार (Size of Book)

  11.4 MB

  कुल पृष्ठ (Total pages )

 202

 पुस्तक की श्रेणी (Category of Book)

Buddhism



 


 


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गायत्रीउपासनापद्धतिः - राधेश्याम चतुर्वेदी | Gayatri Upasana Paddhati by Shiv Chaitanya Varni

गायत्रीउपासनापद्धतिः - राधेश्याम चतुर्वेदी | Gayatri Upasana Paddhati by Shiv Chaitanya Varni

Gayatri Upasana Paddhati by Shiv Chaitanya Varni |गायत्रीउपासनापद्धतिः - राधेश्याम चतुर्वेदी के बारे में अधिक जानकारी :- 

 गायत्री शब्द से प्रायः सभी लोग परिचित हैं। यह तीन अर्थो को बतलाता है -मन्त्र देवता और छन्द। मन्त्र शब्दात्मक होता है और देवता उसका अर्थ। शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध है । इसलिये गायत्री मन्त्र का उच्चारण गायत्री देवता की उपासना है।

प्रस्तुत ग्रन्थ 'गायत्रीउपासनापद्धति' इसी गायत्री देवता की पूजा विधान का संक्षिप्त परिचायक है। गायत्री की सात्त्विक एवं वाम मार्गी दोनो प्रकार की पूजा का विधान शास्त्रों में मिलता इस पुस्तक में केवल सात्त्विक उपासना का वर्णन है । गायत्री वेदमाता और विश्वजननी है। इसकी जितनी अधिक उपासना जितने विधि विधान के साथ की जाय उतना ही अधिक और उत्तम फल देने वाली होती है।



पुस्तक का नाम/ Name of Book :   गायत्रीउपासनापद्धति: | Gayatri Upasana Paddhati 
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : राधेश्याम चतुर्वेदी |Shiv Chaitanya Varni
श्रेणी / Categories : Tantra-Mantra,Adhyatm
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 22.8 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 52



 
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तिरुक्कुरल : गोविन्द राय जैन | Tirukkural by Govind Ray Jain

तिरुक्कुरल : गोविन्द राय जैन  | Tirukkural by Govind Ray Jain

Tirukkural by Govind Ray Jain| तिरुक्कुरल : गोविन्द राय जैन के बारे में अधिक जानकारी :- 

भारत वर्ष के प्राचीन साहित्य में प्राकृत, अदमागधी संस्कृत और अपभ्रंश आदि भाषाओं के जैन साहित्य के मूल सर्जक बनेक जैन आचार्य विद्वान् कवि माने जाते हैं, उसी प्रकार दक्षिण भारत की भाषाओं में कर्नाटक प्रान्त की भाषा कन्नड़ के साहित्य को समृद्धि के शिखर तक पहुँचाने वाले जेन आचार्य और कवि मनीषी संसार में विख्यात हैं ऐसे कबि जिनका काव्य विद्ठत् समाज में और जन सभाओं के सांस्कृतिक-साहित्यिक उत्सवों में उल्लास के साथ गाया जाता है, पढ़ा सुना जाता है । अभी कुछ बरसों पहले तक हम में से बहुतों की धारणा यह होती थी कि दक्षिण का जो भी व्यक्ति सामने होता था उसे हम 'मद्रासी' कह कर पुकारते थे । जन- साधारण को विगत वर्षों में साहित्यिक, सांस्कृतिक और फिल्मों के माध्य से यह स्पष्ट हुआ है कि दक्षिण में अलग
अलग प्रान्त हैं और उनकी अलग अलग महत्वपूर्ण भाषाएँ हैं- कर्नाटक की कन्नड़, आन्ध्र प्रदेश की तेलुगु, केरल की मलयालम और तमिलनाडु (मद्रास प्रान्त) की तमिल । कर्नाटक की भाँति तमिलनाडु की भाषा तमिल इतनी प्राचीन है कि वह प्राकृत और मागधी के समकक्ष महत्वपूर्ण है इसी तमिल भाषा का प्राचीन काव्य है 'कुरल' जिसे आदर के साथ बोलने के लिए उसके पहले 'तिरु' अर्थात् 'श्री' लगाते हैं और उसे तिरुक्कुरल कहते हैं।

'कुरल' लगभग दो हजार वर्ष पहले लिखा गया था। कुरल' का अर्थ होता है एक छोटा छन्द जिसमें दोहे के समान दो पंक्तियां होती हैं । विचित्रता यह है कि दोहे की दोनों पंक्तियों के अन्तिम शब्दों में तुक होती है, कुरल छन्द की पंक्तियों के प्रथम शब्द तुकान्त होते हैं तमिल भाषा के महान् विद्वान्, जैन दर्शन के व्याख्याता, शिक्षा शास्त्रियों में अग्रगण्य स्व० राव बहादुर प्रोफेसर ए. चक्रवर्ती ने अपने जीवन काल में जो अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं उनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय है प्राकृत समयसार और पंचास्तिकाय संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद तथा अंग्रेजी में टीकाएँ तथा तमिल के कुरल काव्य की व्याख्या एक प्राचीन टीका के आधार पर जो जैन सन्त को लिखी हुई थी। स्व० साहू शान्ति प्रसाद जैन द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने स्थापना वर्ष में ही तमिल भाषा को इस मूल टीका को अपनी मद्रास शाखा के माध्यम मे प्रकाशित किया था । अंग्रेजी में प्रो० चक्रवर्ती द्वारा अनूदित समयसार और पंचास्तिकाय संग्रह आचार्य कुन्दकुन्द की रच- नाएँ हैं । बहुत गौरव को बात यह है कि तमिल में लिखा 'कुरल काव्य' भी आचार्य कुन्दकुन्द को रचना है, जिन्हें एलाचार्य के नाम से भी स्मरण किया जाता है । आचार्य कुन्दकुन्द के अनेक नाम मूलसंघ की पट्टावलि में गिनाये गये हैं :
 

पुस्तक का नाम/ Name of Book :   तिरुक्कुरल | Tirukkural 
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain
श्रेणी / Categories : Adhyatm
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 3 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 236



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RAJASTHANI RANIVAS - HINDI by RAHUL SANKRITYAYAN

राजस्थानी रनिवास | RAJASTHANI RANIVAS - HINDI by RAHUL SANKRITYAYAN

 


पुस्तक का नाम/ Name of Book : राजस्थानी रनिवास | Rajasthani Ranivas
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
श्रेणी / Categories : इतिहास / History,
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 27.2 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 353



 
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Monday, February 22, 2021

विजयनगर- साम्राज्य का इतिहास : डॉ. रामप्रसादत्रिपाठी | Vijaynagar samrajya Ka Itihas by - Dr. Ramprasad Tripathi

विजयनगर साम्राज्य PDF

Vijaynagar samrajya Ka Itihas by - Dr. Ramprasad Tripathi| विजयनगर- साम्राज्य का इतिहास :  डॉ. रामप्रसादत्रिपाठी

Vijaynagar samrajya Ka Itihas by - Dr. Ramprasad Tripathi| विजयनगर- साम्राज्य का इतिहास :  डॉ. रामप्रसादत्रिपाठी

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास | Vijaynagar Samrajya Ka Itihas के बारे में अधिक जानकारी :

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास | Vijaynagar Samrajya Ka Itihas के बारे में अधिक जानकारी :
किसी देश की संस्कृति उस देश के इतिहास में सन्निहित रहती है । अतएव उस देश की सभ्यता तथा सस्कृति का अनुशीलन करने के लिए हमें उसका इतिहास जानना आवश्यक है। जब तक रोम और ग्रोस के पुरातन इतिहास का अध्ययन न किया जाय तब तक उसकी महत्ता का परिचय प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। ठीक यही दशा भारतवर्ष की भी है। यदि हमे अपने प्राचीन गौरव को जानना है तो हमे प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करना नितान्त आवश्यक है ।

भारत में समय-समय पर अनेक साम्राज्य स्थापित हुए। वे उन्नति को पराकाष्ठा पर पहुंचे और अन्त मे काल के गाल में सदा के लिए विलीन हो गये। इन में कुछ ऐसे भी साम्राज्य हैं जिनका नाम केवल कथा-शेष रह गया है और जिनके अतुल वैभव तथा कला- कौशल की स्मृति वे खण्डहर दिलाते हैं जो समय के थपेडे को सहकर भी आज अपना सिर उठाये खड़े हैं। बिजयनगर का साम्राज्य इन्ही साम्राज्यों में से एक है। इस साम्राज्य की महत्ता क्या थी तथा इसको भारतीय इतिहास मे क्यो इतना महत्त्व दिया जाता है इसका वर्णन अगले पृष्ठों में पाठकों को मिलेगा । परन्तु यहा तो मुझे केवल इतना ही कहना है कि हिन्दू-साम्राज्य के प्रतिष्ठापक तथा हिन्दू-सस्कृति के रक्षक ये विजयनगर सम्राट न होते तो आज हमारी सस्कृति का नाम भी न रहता । सच तो यह है कि दक्षिण भारत में भारतीय संस्कृति को बचाने का श्रेय इन्हीं राजाओ को प्राप्त है।

यह अत्यन्त दुःख का विषय है कि आज से केवल पचास वर्ष पूर्व इन महाप्रतापी राजाओं का कोई नाम भी नहीं जानता था । भारतीय जनता इनको भूल चुकी थी और विजयनगर का महान् साम्राज्य 'एक भूला हुआ साम्राज्य' समझा जाने लगा था। इनकी पवित्र स्मृति को याद दिलान-- बाले हम्पी के वे टूटे-फूटे खण्डहर थे जो मृत्यु के मुख में जाने की प्रतीक्षा मे खड़े थे । परन्तु सर्व प्रथम इस महान् साम्राज्य के इतिहास की ओर ई० सेवेल नामक विद्वान् का ध्यान आकर्षित हुआ जिन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध प्रामाणिक पुस्तक ए फारगाटेन इम्पायर' लिखकर इस साम्राज्य को प्रकाश में लाने का प्रशसनीय कार्य किया । सेवेल की पुस्तक का नामकरण यथार्थ ही था। सेवेल के पश्चात् दक्षिणी भारत के ऐतिहासिको का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और उन लोगो ने लगन के साथ इसका अध्ययन करना प्रारम्भ किया । इन विद्वानों मे डा. कृष्णस्वामी, डा. सालातोर तथा फादर हेरास का नाम उल्लेखनीय है । इन विद्वानो ने इस साम्राज्य के इतिहास पर प्रामाणिक पुस्तके लिखी हैं और इनकी शिष्य-मण्डली भी इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रही है । परन्तु यह सचमुच हमारे दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी में इस विषय पर एक भी पुस्तक अभी तक नही लिखी गई । विजयनगर का यह प्रस्तुत इतिहास इसी अभाव की पूर्ति करने का एक विनम्र प्रयास है इस ग्रन्थ मे विजयनगर साम्राज्य के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास का सक्षिप्त तथा प्रामाणिक विवेचन किया गया है ।


पुस्तक का नाम/ Name of Book :  विजयनगर- साम्राज्य का इतिहास | Vijaynagar samrajya Ka Itihas
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : डॉ. रामप्रसादत्रिपाठी - Dr. Ramprasad Tripathi
श्रेणी / Categories : इतिहास / History,
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 10.98 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 318



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स्वप्न-विद्या | Svapna Vidya by Kameshwar Upadhyaya

स्वप्न-विद्या | Svapna Vidya by Kameshwar Upadhyaya

 स्वप्न – विद्या : डॉ. कामेश्वर उपाध्याय द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Svapn – Vidhya : by Dr. Kameshvar Upadhyay Hindi PDF Book 

स्वप्न विद्या के भारतीय सिद्धान्त

संस्कृत वाङ्मय में स्वप्न विद्या को परा विद्या का अंग माना गया है । अत: स्वप्न के माध्यम से सृष्टि के रहस्यों को जानने का प्रयास भारतीय ऋषि, मुनि और आचार्यों ने किया है । फलतः भारतीय मनीषियों की दृष्टि में स्वप्न केवल जाग्रत दृश्यों का मानसलोक पर प्रभाव का परिणाम मात्र नहीं है न तो कामज या इच्छित विकारों का प्रतिफलन मात्र है ।

सामान्य रूप से वेदान्त की विद्या में कहा जाए तो स्वप्न लोक की तरह यह दृश्य लोक क्षणभंगुर है । इससे स्वप्न का मिथ्यात्व सिद्ध होता है । रज्जु में सर्प का भ्रम कहा जाए तो स्वप्न में भीखारी का राजा होना भी भ्रम मात्र ही है; परन्तु स्वप्न को आदेश मानकर राजा हरिश्चन्द्र द्वारा अपने राज्य का दान, स्वप्न में अर्जुन द्वारा पाशुपतास्त्र की दीक्षा प्राप्ति आदि उदाहरण भी भारतीय संस्कृति में देखने को मिलते है । त्रिजटा ने जो कुछ स्वप्न में देखा उसको अपूर्व प्रमाण मानकर श्री हनुमान जी ने लंका दहन किया । ये सब ऐसे उदाहरण है जो स्वप्न में विद्या को दैविक आदेश या परा अनुसंधान से जोड़ते है । स्वप्न चिन्तन जब शास्त्र का रूप ग्रहण करता है तो निश्चित ही उसकी चिन्तना पद्धति मूर्त से अमूर्त काल में प्रवेश कर जाती है ।

स्वप्नकमलाकर ग्रन्थ में स्वप्न को चार प्रकार का माना गया है - (1) दैविक स्वप्न (2) शुभ स्वप्न (3) अशुभ स्वप्न और (4) मिश्र स्वप्न

दैविक स्वप्न को उच्च कोटि का साध्य मानकर इसकी सिद्धि के लिए अनेक मंत्र और विधान भी दिये गये हैं । स्वप्न उत्पत्ति के कारणों पर विचार करते हुए आचार्यों ने स्वप्न के नौ कारण भी दिये है- (1) श्रुत (2) अनुभूत (3) दृष्ट ( 4) चिन्ता (5 ) प्रकृति (स्वभाव) (6) विकृति (बीमारी आदि से उत्पन्न ) (7) देव (8) पुण्य और (१) पाप ।

प्रकृति और विकृति कारण में काम (सेक्स) और इच्छा आदि
का अन्तर्भाव होगा । दैवी आदेश वाले स्वप्न उसी व्यक्ति को मिलते हैं जो वात, पित्त, कफ त्रिदोष से रहित होते है । जिनका हृदय राग द्वेष से रहित और निर्मल होता है ।

देव, पुण्य और पाप भाव वाले तीन प्रकार के स्वप्न सर्वथा सत्य सिद्ध होते है । शेष छः कारणों से उत्पन्न स्वप्न अस्थायी एवं शुभाशुभ युक्त होते है ।

मैथुन, हास्य, शोक, भय, मलमूत्र और चोरी के भावों से उत्पन्न स्वप्न व्यर्थ होते है

रतेह्हासाच्च शोकाच्च भयान्मूत्रपुरीषयोः ।

प्रणष्टवस्तुचिन्तातो जातः स्वप्नो वृथा भवेत् ।। बृहस्पति के मतानुसार दश इन्द्रियाँ और मन जब निश्चेष्ट होकर सांसारिक चेष्टा से, गतिविधियों से पृथक् होते है तो स्वप्न उत्पन्न होते है इस परिभाषा के अनुसार विदेशी विचारकों के इस कथन को बल मिलता है जिसमें वे स्वप्न का मुख्य कारण जाग्रत अवस्था के दृश्यों को मानते है ।


पुस्तक का नाम/ Name of Book : स्वप्न-विद्या | Svapna Vidya
पुस्तक के लेखक/ Author of Book :  डॉ. कामेश्वर उपाध्याय |Dr. Kameshvar Upadhyay
श्रेणी / Categories :  Astrology
पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 67.6 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 134


 
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Ravan Bhashya by Sudhirkumar Gupt

Ravan Bhashya PDF Download | रावण भाष्य हिंदी पीडीएफ डाऊनलोड


 Ravan Bhashya PDF Download | रावण भाष्य के बारे में कुछ जानकारी :- 

रावण और उस के भाष्य का परिचय ।

पिछली कुछ शताब्दियों से रावण एक वेदभाष्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । फिट्ज ऐडवर्ड होल ने लिखा है कि कल कता से प्रकाशित ग्रहलाघव के संस्करण (पृ० ५) में मल्लारि के लेख मे इंगित होता है कि रावण ने वेद के कुछ अंशों पर भाष्य लिखा । अजमेर और ग्वालियार तथा अन्य स्थानों में उन्हें कुछ ऐसे पण्डित मिले जिन्हों ने निश्चयात्मक रूप में कहा कि उन्हों ने रावणभाष्य देखा है और उन के पास रहा भी है । इन पण्डितों के मतानुसार यह भाष्य सम्पूर्ण ऋग्वेद और यजुर्वेद पर था ।

२. नामसाम्य के कारण लोक में सामान्य धारणा वेदभाष्य कार रावण का लंका के राजा और रामायण के प्रतिनायक रावण से तादात्म्य करती है । इस धारणा को तो बिना किसी समीक्षा के तुरन्त ही त्यागा जा सकता है । आगे के विवरण भी इसी निष्कर्ष की ओर इंगित करते हैं ।

३. कुछ लोगों के मत में रावण और सायण एक ही व्यक्ति हैं । लेखप्रमाद से सायण रावण बन जाते हैं । परन्तु रावणभाष्य

के अंशों को सुरक्षित रखने वाले देवज्ञ पण्डित सूर्य सायण और रावण में रावण का एक रामायणीय पर्याय प्रयुक्त कर मेद प्रद शित करते हैं

'विदित्वा वेदार्थ दशवदनवाणीपरिणतम्' ।

सूर्य पण्डित ने एक स्थल पर रावण और सायण दोनों का नाम लेते हुए दोनों के भाष्यों में तुलना की है । रावणभाष्य अध्यात्मपरक है और सायणभाष्य अधिदेवात्मक

"सायनभाष्यकारराधिदैविकाभिप्रायेण बाह्यसंग्रामविषयो दर्शित: । रावणमाष्ये तु अध्यात्मरीत्याभ्यन्तरसंग्रामविषयो दर्शितः । वोटभाष्ये तुभयमपि ।"

एक अन्य स्थल पर कण्वसंहिताभाष्यकार कह कर सायण का एक मत भी दिया है।

"अत्र कण्वसंहिताभाष्यकारस्तु तत्सवितुरिति विश्वा मित्रः सावित्री गायत्री तदिति षष्ठ्या विपरिणाम्यते ।""

अतः देबज्ञ पण्डित सूर्य के मत में रावण और सायण दो भिन्नभिन्न व्यक्ति हैं। इन दोनों के भाष्य की तुलना आगे दी गई है। वह भी सूर्यपण्डित के विचार को पुष्ट करती है । सूर्यपण्डित को मन्त्रों के गीता के विषय के श्रनुरूप श्रध्यात्मक श्र्थों की खोज थी , जो उसे रावणभाष्य में ही मिल सके । अतः उस ने रावणभाष्य का आश्रय लिया। जहाँ उस अपना भाष्य दिया है, वहाँ सम्भवतः: रावण का भाष्य या तो उपलब्ध न था, या उन के अनुकूल न था ।



पुस्तक का नाम/ Name of Book :    Ravan Bhashya | रावण भाष्य 
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : Sudhirkumar Gupt 
श्रेणी / Categories : हिंदू - Hinduism,धार्मिक / Religious,
पुस्तक की भाषा / Language of Book : Hindi/Sanskrit
पुस्तक का साइज़ / Size of Book :  5.8 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 179


 
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Ravan Krut Shiv Tandav Strotam Pdf in Hindi

Ravan Krut Shiv Tandav Strotam Pdf download | रावण कृत शिव तांडव स्त्रोतम्


Ravan Krut Shiv Tandav Strotam Pdf download | रावण कृत शिव तांडव स्त्रोतम् 


 
शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | शिव तांडव सरल भाषा में pdf

शिव ताण्डव स्तोत्र (संस्कृत:शिवताण्डवस्तोत्रम्) रावण द्वारा विरचित भगवान शिव का स्तोत्र है।
मान्यता है कि शिवभक्त रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले चलने को उद्यत हुआ उस समय अपनी शक्ति पर पूर्ण अहंकार भाव में था। महादेव को उसका यह अहंकार पसंद नही आया तो भगवान् शिव ने अपने पैर के अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया। शिव के अनन्य भक्त रावण का हाथ दब गया और वह आर्त्तनाद कर उठा - "शंकर शंकर" - अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए, और स्तुति करने लग गया; जो कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाया। शिव ताण्डव स्तोत्र से शिव इतना खुश हुए की आशुतोष भगवान भोलेनाथ ने ना केवल रावण को सकल समृद्धि और सिद्धि से युक्त सोने की लंका ही वरदान के रूप में नहीं दी अपितु सम्पूर्ण ज्ञान, विज्ञान तथा अमर होने का वरदान भी दिया । कहा जाता है की शिव ताण्डव स्तोत्र सुनने मात्र से ही व्यक्ति सम्पत्ति , समृद्धि अथवा सन्तादि प्राप्त करता है।


पुस्तक का नाम/ Name of Book :    Ravan Krut Shiv Tandav Strotam | रावण कृत शिव तांडव स्त्रोतम्
पुस्तक के लेखक/ Author of Book : Maharaj Deen Dikshit
श्रेणी / Categories : हिंदू - Hinduism,धार्मिक / Religious,
पुस्तक की भाषा / Language of Book : Hindi/Sanskrit
पुस्तक का साइज़ / Size of Book : 9.2 MB
कुल पृष्ठ /Total Pages : 20


 
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