Indian philosophy Book in PDF Download
First edition face
Philosophy is a very difficult subject. In this, the mental date of Bharatvarsha is safe. Since time immemorial, the scholars have discovered this fund and from time to time, by removing beautiful and precious gems from it, they have increased the pride of India. Even today, the mind of India is high for the ideology of this very valuable philosophy in the whole world.
Right from the time of my reading, I had a keen desire to study philosophy from a pure Indian point of view and to meditate with a scientific view. This aspiration was fulfilled by the teachings and blessings of Pujya Pitrucharan Mahamahopadhyay Pandit Jaydev Mishra and Guruvar Mahamahopadhyay Dr. Shri Gopinath Kaviraj ji. According to the pure Indian philosophical spirit based on the scriptures based on philosophies written in Sanskrit language, there was a strong desire to write such a book in regret or not, because of not seeing the best granite written in any language. Due to the grace of the officers of 'Hindi Prakashan Yojana' organized by the Uttar Pradesh government, that wish was converted into action today. I am very satisfied with this. For this I am extremely grateful to those officers.
The elements of Indian philosophy are very esoteric. Just as to understand 'life', it is necessary to get knowledge of all its organs in individual, macroeconomic and coordinated form, similarly it is necessary to understand Indian philosophies in individual and macro and coordination form.
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भारतीय दर्शन किताब करें पीडीएफ में डाउनलोड
प्रथम संस्करण का आमुख
अनन्तगुणसम्पन्नमखण्डं चिन्मयं शिवम् । जयदेवास्यजनकं ध्यात्वा सुगाऊच मातरम् ॥१॥ ज्ञाननिष्ठं परं नत्वा गोपीनाथगुरुं सवा । उमेशस्तनुते थेयो भारतीयं हि दर्शनम् ॥२॥
दर्शनशास्त्र बहुत ही कठिन विषय है। इसी में भारतवर्ष की मानसिक तिथि सुरक्षित है अनादि काल से ज्ञानियों ने इस निधि की खोज की है और समय-समय पर सुन्दर तथा मूल्य रत्नों को इससे निकाल कर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाया है। आज भी समस्त संसार में इसी बहुमूल्य दर्शनशास्त्र की विचारधारा के ही लिए भारतवर्ष का मस्तक ऊंचा है।
पढ़ने के समय से ही मेरे मन में दर्शनशास्त्र का शुद्ध भारतीय दृष्टिकोण से अध्ययन करने की तथा वैज्ञानिक दृष्टि से मनन करने की उत्कट अभिलाषा थी । पूज्य पितृचरण महामहोपाध्याय पण्डित जयदेव मिश्र तथा गुरुवर महामहोपाध्याय डाक्टर श्री गोपीनाथ कविराज जी के उपदेश एवं आशीर्वाद से यह अभिलाषा पूर्ण हुई। संस्कृत भाषा में लिखे हुए दर्शनशास्त्र के आकर ग्रन्थों के आधार पर विशुद्ध भारतीय दार्शनिक भावना के अनुसार किसी भी भाषा में लिखे हुए उत्तम ग्रन्य को न देखकर मन में खेद या अतएव इस प्रकार के एक प्रन्थ को लिखने की बहुत से उत्कट इच्छा थी। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा आयोजित 'हिन्दी प्रकाशन योजना' के अधिकारियों की कृपा से आज वह इच्छा कार्यरूप में परिणत हुई। इससे मुझे बहुत सन्तोष है। इसके लिए में उन अधिकारियों के प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूँ ।
भारतीय दर्शन के तत्व बहुत गूढ़ हैं। जिस प्रकार 'जीवन' को समझने के लिए उसके सभी अंगों का व्यष्टि, समष्टि एवं समन्वय रूप में ( synthetically) ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है, उसी प्रकार भारतीय दर्शनों को व्यष्टि तथा समष्टि एवं समन्वय रूप में समझना नितान्त आवश्यक है।
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Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
भारतीय दर्शन | Indian philosophy | |
डॉ. उमेश मिश्र | Dr. Umesh Mishra | |
Education,Knowledge |
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