कौटिल्य का अर्थशास्त्र और चाणक्य सूत्र इन हिंदी | Arthasastra Of Kautilya And The Canakya Sutra PDF Download Free
Arthasastra Of Kautilya And The Canakya Sutra Book in PDF Download
Chanakya NITI evam kautilya arthashastra PDF, तंत्र सिंधु PDF Free download, अर्थशास्त्र पुस्तक PDF, कौटिल्य का अर्थशास्त्र PDF, Arthasastra Of Kautilya And The Canakya Sutra. In ancient India, meetings and committees were appointed for the operation of the governance system like today. For example, the Rajya Sabha of the adults, the public meeting of the people, the guilds (pug) of traders and businessmen, the 'sangha' of the states and the gram sabhas of the families (clans). These assemblies made laws and implemented them among the people. The main function of these assemblies was to represent the people and give their opinion for the election of the king and for the public good. In Kautilya's Arthashastra, a serious explanation of the Sabha: Samiti has been given.
If we look into the history of Sabha: Samiti, its seeds are found scattered at the core of human civilization. The history of man begins from the dawn of man. From the study of Vedic literature, we know that at that time there was a system of committees to carry out public works related to national life. This committee was organized and approved by the general subjects (Vishah). By him the king was elected. It was so important that it is said to be mandatory for everyone to attend (Rigveda 10|173.1; Atharvaveda 6871). From the political point of view, this public institution also had another importance; Because through him, apart from the king, the polity was also run. This is the reason that in Rigveda (10/161/3) good wishes have been expressed for his policy and advice. The elected king was required to attend every meeting of the 'Committee'
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प्राचीन भारत में शासन व्यवस्था के परिचालन के लिए आज की भांति सभायें तथा समितियाँ नियुक्त होती थीं। उदाहरण के लिए प्रौढ़ की राजसभा, जनता की सार्वजनिक सभा, व्यापारियों तथा व्यवसायियों का मण्डल ( पूग ), राज्यों का 'संघ' और कुटुम्बों ( कुलों ) की ग्रामसभायें। ये ही सभायें कानून बनातीं तथा उसको जनता में क्रियान्वित करती थीं। इन सभाओं का प्रमुख कार्य जनता का प्रतिनिधित्व करना और राजा के निर्वाचन तथा सार्वजनिक भलाई के लिए अपनी राय देना था। कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में सभा : समिति की गंभीर व्याख्या की गयी है ।
यदि हम सभा : समिति के इतिहास की खोज करते हैं तो उसके बीज हमें मानव सभ्यता के मूल में बिखरे दिखायी देते हैं। मनुष्य की उदयवेला से ही उसके इतिहास का आरम्भ होता है । वैदिक साहित्य के अध्ययन से हमें विदित होता है कि उस समय राष्ट्रीय जीवन सम्बन्धी सार्वजनिक कार्यों को संपन्न करने के लिए समिति की व्यवस्था थी । यह समिति सर्वसाधारण प्रजाजनों ( विश: ) द्वारा आयोजित तथा स्वीकृत होती थी। उसी के द्वारा राजा का चुनाव होता था। वह इतनी महत्त्वपूर्ण थी कि उसमें सभी लोगों का उपस्थित होना अनिवार्य बताया गया है (ऋग्वेद १० | १७३।१; अथर्ववेद ६८७१) । राजनीतिक दृष्टि से इस लोकसंस्था का दूसरा भी महत्त्व था; क्योंकि उसी के द्वारा राजा के अतिरिक्त राजव्यवस्था का भी संचालन होता था। यही कारण है कि ऋग्वेद ( १०/१६१/३ ) में उसकी नीति तथा मंत्रणा के लिए शुभकामना प्रकट की गयी है। निर्वाचित राजा के लिए 'समिति' की प्रत्येक बैठक में उपस्थित होना आवश्यक था Chanakya NITI evam kautilya arthashastra PDF, तंत्र सिंधु PDF Free download, अर्थशास्त्र पुस्तक PDF, कौटिल्य का अर्थशास्त्र PDF, Arthasastra Of Kautilya And The Canakya Sutra.
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