न हन्यते इन हिंदी | Na Hanyate PDF Download Free
Na Hanyate Book in PDF Download
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I know everything is beneath it, just as it was. Still in their subconscious I am present in the same way and my grandson is sleeping by the side of my parents above. Tomorrow morning when he comes down, his soft little hands will cling to me in the same way - my world is the same - soft, alive, giving green. Yet, why does molten lava roll over it? I feel the heat of hot air on my face. No, no, not lava, maybe even molten gold - it's not worth returning, there's joy in it, it's worth it. I know it will not turn to ashes; Because even if it is reduced to ashes, what will be left is the same residual.
Even then, for two days today, how much pain, how much pain am I facing? 'Ramayani vekshya madhuranscha nishamya shabdham - Just like that. The mind is disturbed, does the soulless mind remember in the same way - 'Paryutsuki bhavati yat sukhitoऽpi jantuh'? It is not like that, it is not a matter of any other birth, it is just a matter of that day, only forty-two years ago. I have gone back only forty-two years. For man, this is a long period of time, but for eternity?
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न हन्यते : प्रथम पर्व
मैं जानती हूँ उसके नीचे सब कुछ है, जैसा था ठीक वैसा ही। अभी भी उनके अवचेतन में मैं उसी तरह मौजूद हूँ और ऊपर अपने माँ बाप की वग़ल में सोया हुआ है मेरा पोता । कल सवेरे जब वह उतरकर आयेगा तब उसके नरम नरम छोटे-से हाथ मुझे उसी तरह चिपटा लेंगे- मेरी दुनिया तो वैसी ही है— कोमल, सजीव, दे हरी-भरी। फिर भी, इसके ऊपर पिघला हुआ लावा लुढ़ककर क्यों आता है? मेरे मुँह पर तो गरम हवा की ताप लगती है। नहीं, नहीं, लावा नहीं, पिघला हुआ सोना भी तो हो सकता है - यह तो लौटा देने लायक नहीं है, इसमे तो आनन्द है, इसका तो मूल्य है। मैं जानती हूं, यह राख नहीं हो जायेगा; क्योंकि राख हो जाने पर भी जो बचेगा—यह तो वही अवशिष्ट है |
तो भी आज दो दिनों से कितना कष्ट, कितना भयानक कष्ट पा रही हूँ मैं कैसा कष्ट ? 'रम्याणि वीक्ष्य मधुरांश्च निशम्य शब्दान् — जिस तरह । मन व्याकुल होता है, जननान्तर सुहृद मन को क्या उसी तरह याद आता है – 'पर्युत्सुकी भवति यत् सुखितोऽपि जन्तुः' ? ऐसा भी तो नहीं, यह तो - किसी और जन्म की बात नहीं है, यह तो बस उस दिन की बात है केवल बयालीस वर्ष पहले की बात है। केवल वयालीस वर्ष पीछे लौट गयी हूँ मैं मनुष्य के लिए तो यह समय की लम्बी अवधि है, परन्तु अनन्त के लिए ? Na Hanyate PDF Download, न हन्यते PDF Free download, न हन्यते PDF किताब, न हन्यते बुक फ्री डाउनलोड, Na Hanyate Novel Download Free.
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न हन्यते | Na Hanyate PDF | |
संस्कृत | Sanskrit | |
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