त्रिलता स्तुतिमुक्तावली इन हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Trilata Stutimuktavali PDF Download Free
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Commentary Sajjan Community This memory was composed by Pakavyagra Kaviratna Shri Tejman ji. Its Sanskrit commentary was worthy, in which verses and koshadi proofs would be written in the word Siddhi, but the Hindu public should benefit from the knowledge of the meaning by reading the Hindi language commentary, so Hindi language was written, it is the natural quality among the scholars of Sanskrit that other poets can do this. Gentlemen are pleased, they keep the answer only on many gentlemen, they can have knowledge only by verses, the loss of caste and Brahmin or Sanskrit education in the kingdom of Butan was done in the past, so the first Panchadasho name track was written, the description of which is written in the appendix. Read but did not get any benefit, Pata Vidya Panchavishati was named after reading which Late Mahamahopadhyay Shri Bhandari ji was pleased in Lahore and signed it soon but: State language is paramount, then how should Sanskrit education be advanced, again poetry. Composed in five hundred verses, gifts were sent to scholars in many cities of India, but even after being refugees reached the message of ten scholars, there was a feeling of money for those who printed hundreds of rupees from their own, ultimately it is a statement that the Brahmin caste has done the right thing. Due to lack of union and mutual love, the caste has become weak, due to which the relationship is being respected and the rule of creation is being implemented.
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प्रस्तुत पुस्तक त्रिलता स्तुति मुक्तावली अर्थात् तीन लडायोतियों का हार श्रीपति पादार्पण
टीका सज्जन समुदाय यह स्मृति पकाव्यग्र कविरत्न श्री तेजमान जी ने रचा । इसकी संस्कृत टीका योग्य थी जिस में शब्द सिद्धि में अर्थालङ्कार छन्द और कोषादि प्रमाण लिखे जाते परन्तु हिन्दु जनता हिन्दी भाषा टीका पढ़ कर अर्थ ज्ञान का लाभ करे अतः हिन्दी भाषा लिखी गयी, संस्कृत ज्ञाता विद्वानों में स्वभावज गुण है कि अन्य की कवि यह कर कोई सज्जन प्रसन्न होते हैं प्रत्युत्त कई सज्जन पर ही रखते हैं उन को श्लोक मात्र से ही ज्ञान हो सकता है बूटन राज्य में जाति और ब्राह्मण वा संस्कृत विद्या की जो हानि हुई वह प्रभूत पूर्व अतः प्रथम पंचदशो नाम ट्रैकट लिखा गया जिसका वर्णन परिशिष्ट में लिखा हुपा पढ़े पर कुछ लाभ न हुपा, पतः विद्या पंचविशति नाम रखा गया जिस को पढ़ कर स्वर्गीय महामहोपाध्याय श्री भण्डारी जी ने लाहौर में प्रसन्न हो कर शीघ्र हस्ताक्षर दिये परन्तु: राज्य भाषा ही 'सर्वोपरि होती है तो संस्कृत विद्या की कैसे उन्नत होतो, पुनः काव्य पांच सौ श्लोकों में रचा गया भारतवर्ष के अनेक नगरों में विद्वानों को उपहार भेजा परन्तु की दश विद्वानों के सन्देश पहुच शरणार्थी होने पर भी संकड़ों रुपये अपने पास से खयं करे छपवाने वालो का या भावर हुआा, अन्ततोगत्वा यह कथन अवश्य है कि ब्राह्मण जाति ने संघ और परस्पर प्रेम न होने से जाति प्रति निर्बल हो गई जिस से सबंध मान हो रहा है और एक वर सृष्टि का नियम लागू हो रहा है थकाव्य आपकी भेंट किया जाता है। Trilata Stutimuktavali PDF, त्रिलता स्तुतिमुक्तावली PDF Free download, त्रिलता स्तुतिमुक्तावली PDF किताब, त्रिलता स्तुतिमुक्तावली बुक फ्री डाउनलोड, Trilata Stutimuktavali book pdf, Trilata Stutimuktavali Book download Free.
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