Teesra Netra I |
Teesra Netra I Arun Kumar Sharma pdf download :तीसरा - नेत्र |
पुस्तक के संबंध में:-
वर्तमान समय में स्व.म.म.डॉ. गोपीनाथ कविराज के पश्चात पिताश्री पं. अरूण कुमार शर्मा आध्यात्म चिंतक और तत्व दृष्टा के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध है। परम सौभाग्य की बात तो यह है कि वे अभी हम सब लोगों के बीच अपनी भौतिक सत्ता में विद्यमान हैं। अपने निवास पर प्रबुद्ध एवं आध्यात्मिक वर्ग के लोगों से प्रातः नित्य सायंकाल योग और तंत्र के गूढ़ और गोपनीय विषयों पर चर्चा किया करते हैं वह। आध्यात्मिक विशेषकर योग के प्रति मेरी शुरू से ही रूचि रही है, इसलिए कभी कदा अवसर प्राप्त होने पर सत्संग में भी अपनी जिज्ञासाओं के निमित्त उपस्थित हो जाया करता हूँ। एक दिन प्रसंगवश मैंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की "योग" द्वारा मनुष्य का आत्मिक विकास कैसे सम्भव है?
मेरी इस जिज्ञासा के समाधान में पिताश्री ने कहा भी अवस्थाएं हैं उनमें "योग" सर्वोच्च अवस्था है। वह अवस्था अति दुर्लभ हैं। मनुष्य की जितनी जिसे प्राप्त करने के लिए देवगण भी लालायित रहते हैं। वास्तव में योग ऐसी अवस्था है जिसे प्राप्त कर मनुष्य असम्भव से असम्भव कार्य कर सकने में समर्थ होता हैं। एक परम उच्च अवस्था प्राप्त सिद्ध योगी के लिए कुछ भी सम्भव नहीं हैं। क्योंकि वह ईश्वर से अभिन्न होता है। जैसे ईश्वर की शक्ति माया है, उसी प्रकार एक सिद्ध योगी की भी अपनी शक्ति होती है और वह उसी शक्ति का आश्रय लेकर असम्भव को सम्भव करता है। जो जितना ईश्वर का आदर्श प्राप्त करने में समर्थ है, वह उतना ही बड़ा योगी है। साधक और योगी में क्या अन्तर है?
इस प्रश्न के उत्तर में पिताश्री ने कहा - जब तक वह माया को नियन्त्रित नहीं कर पाता - तब तक साधक है। माया को नियन्त्रित कर उस पर अधिकार प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह योगी है। इसी को वीर भाव और दिव्य भाव कहते हैं। साधक वीर भावापन्न है जबकि योगी है दिव्य भवापन्न।
बीसवीं शताब्दी के इस वैज्ञानिक युग में भी एक अत्यन्त रहस्यमय देश है तिब्बत। भारत की योग-तंत्र आदि प्राचीन विद्यायें भले ही लुप्त हो गयी हों काल के प्रवाह में पड़कर, लेकिन वे आज भी तिब्बत में गुप्त रूप से सुरक्षित हैं। इसमे सन्देह नहीं। भारत और तिब्बत का संबंध अति प्राचीन काल से है। सातवीं शताब्दी में तिब्बत के राजा का विवाह नेपाल और चीन की राजकुमारियों से हुआ था। दोनों देशों के राजकुमारियों के परिवार बौद्ध धर्मावलम्बी थे। पंचशील में विश्वास रखते थे। तिब्बत के राजा भी बौद्ध धर्म से प्रभावित हुए बिना न रह सके, परिणाम स्वरूप उन्होंने भी बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं बौद्ध धर्म को तिब्बत का राज धर्म भी घोषित कर दिया। यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि बौद्ध धर्म के पहले तिब्बत में 'वोन' धर्म प्रचलित था। जो भारतीय शैव धर्म का विकृत रूप था। तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रभाव धीरे-धीरे अपनी चरम सीमा पर पहुँचने लगा। उसी समय राजा द्वारा प्रेरित होकर तिब्बत के प्रकाण्ड विद्वान सम्भोत भारत आये और जब वापस तिब्बत लौटने लगे तो अपने साथ संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध योग, तंत्र, ज्योतिष आदि विषयों से संबंधित बहुत से ग्रन्थ ले गये। और उनका अनुवाद तिब्बती लिपि में किया जो कश्मीर की शारदा लिपि जैसी है।
- पुस्तक का नाम/ Name of Book : तीसरा - नेत्र |Teesra Netra I
- पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी /hindi
Ye book kab tak milegi
ReplyDeleteAbhi available nhi hai jab hogi to bata diya jayega telegram channel pr to join kr le waha
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