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Shriri Mahalakshmi Puja Paddhati Dr. Yogesh Mishra pdf book in hindi : श्री महालक्ष्मी पूजा पद्धतिश्री महालक्ष्मी पूजा पद्धतिएक समय धर्मपुत्र युधिष्ठिर जी ने हाथ जोड़कर भगवान् श्रीकृष्ण से विनय की, हे भगवन् कृपा कर आप हमें कोई ऐसा उपाय बतावें, जिससे हमारा नष्ट हुआ राज्य हमें पुनः प्राप्त हो तथा राज्य लक्ष्मी भी प्राप्त हो जावे । भगवान् श्रीकृष्ण बोले- 'हे राजन् ! जब दैत्यराज बलि राज्य किया करते थे, तब उनके राज्य में सारी प्रजा सुखी थी और मेरा भी वह प्रिय भक्त था। एक बार उसने सौ अश्वमेघ यज्ञ करने की प्रतिज्ञा की ! उनमें से जब निनाणवे यज्ञ हो चुके एक ही शेष था, तब इन्द्र को अपना सिंहासन छिन जाने का भय हुआ। क्योंकि सौ अश्वमेध यज्ञ करने वाला इन्द्रासन का अधिकारी होता है। इस भय के कारण वह रुद्र आदि देवताओं के पास पहुँचा किन्तु उसका कुछ भी उपाय सके। तब सब देवता इन्द्र को साथ लेकर क्षीरसागरशायी विष्णु भगवान के यहां गये । पुरुषसूक्त आदि वेद मन्त्रों से भगवान की स्तुति की और इन्द्र ने अपना दुःख सुनाया। भगवान बोले इन्द्र तुम घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे इस भय का अन्त कर दूंगा । यह कह कर उन्हें इन्द्रलोक भेजा'। स्वयं भगवान वामन का अवतार धारण करके सौ वां यज्ञ कर रहे राजा बलि के यहां पहुंचे । राजा से उन्होंने तीन पैर पृथ्वी दान में मांगी। दान का संकल्प हाथ में लेकर भगवान ने एक पैर से सारी पृथ्वी नाप ली । दूसरे पैर से अन्तरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर धारण किया। इतना होने पर भी वामनदेव जी ने राजा से वर मांगने को कहा। वर में बलि ने कहा- कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवम् अमावस्या तीन दिन इस पृथ्वी पर मेरा राज्य रहे । इन दिनों में सारी जनता दीपोदान, दीपावली दीपपूजा आदि करके उत्सव मनावे । लक्ष्मी का पूजन हो लक्ष्मी का निवास हो। इस प्रकार वर मांगने पर विष्णु भगवान ने कहा कि राजन् ! यह वर हमने तुमको दे दिया। इस दिन लक्ष्मी पूजन दीपावली पूजन करने वाले के घर लक्ष्मी का निवास होगा और अन्त में मेरे धाम को प्राप्त होगा। यह कहकर भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य देकर पाताल में भेजा और इन्द्र का भय दूर किया।
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