Ishavasyopanishad Book in PDF Download
Eesavasopanishad Commentators 'Daghyaddatharvan', the seer of the forty-fourth chapter of Shukla Yajurveda Is said to be a sage. Yaju: Sarvanukramani of the last five chapters of Yajurveda. The sage called "Daghydathharva". Therefore, "Dadhyaduarthva" is the first of these mantras. Can be considered presenter. In some editions of the Yajurveda, the forty-ninth chapter is written "Sage: Longitudinally".The last and the last time of the Shukla Yajurveda Ishavasopanishad. The major Upanishads book is In both codes as the forty-fourth chapter of this Upanishads is mentioned. It envisages enlightenment. Shukla. The Vedanta noun is well known for its subjugation in the last chapter of the Yajurveda. The last forty-fourth chapter of Karmarasamhita is the same 'Ishopanishad' at this time. Or is known as 'Ishavasyopanishad'. Mediocreational Vagasnayi Seventeen mantras are found in the forty-fourth chapter of the Samhita, while the Karmashakhiya Eighteen mantras are available in the Samhita. Following are some of the lessons of both the codes
is Vajasaneyi-Madhyamandin-Shuklayujurveda Sahita-Patha:
Isha Vasyamidam Sarvat Yatkijva Jagatya Jagtu.
Ten Tyakten Bhujjitha: Ma Gridha: Kasyya Swid Dhanmu. ...
Kurvanneveh Karmani Jijiwischechatam Samah.
And Tvayi Nanyetoousti na karma scriptate nare. ॥॥2 ॥॥
Asuriya Naam te loka Andhen Tamasavrita.
Te phantyapi gachhanti yeh ke chaatmahano jana:. 8॥.
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ईशावास्योपनिषद् किताब करें पीडीएफ में डाउनलोड
ईशावास्योपनिषद् का उत्स भाष्यकारों ने शुक्ल यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय का द्रष्टा 'दघ्यड्डाथर्वण' को ऋषि बताया है। यजु: सर्वानुक्रमणी ने यजुर्वेद के अन्तिम पाँच अध्यायों का ऋषि “दघ्यड्अथर्वा' कहा है। अतः '“दध्यडूअथर्वा' को ही इन मंत्रों का प्रथम प्रस्तोता माना जा सकता है। यजुर्वेद के कुछ संस्करणों में चालीसवें अध्याय का “ऋषि: दीर्घतपा" लिखा हुआ है।
ईशावास्योपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन अन्तिम एवं काण्वसंहिता का प्रमुख उपनिषद् ग्रन्थ है। दोनों संहिताओं में चालीसवें अध्याय के रूप में इस उपनिषद् का उल्लेख हुआ है। इसमें आत्मज्ञान का विचार किया गया है। शुक्ल यजुर्वेद के अन्तिम अध्याय में उपनिबद्ध होने से इसकी वेदान्त संज्ञा सुप्रसिद्ध है। काण्वसंहिता का जो अन्तिम चालीसवाँ अध्याय है, वही इस समय 'ईशोपनिषद्' या 'ईशावास्योपनिषद्' के नाम से जाना जाता है। माध्यन्दिनशाखीय वाजसनेयी संहिता के चालीसवें अध्याय में सत्रह मन्त्र प्राप्त होते हैं, जबकि काण्वशाखीय संहिता में अठारह मंत्र उपलब्ध होते हैं। दोनों संहिताओं के कुछ पाठभेद निम्न है
वाजसनेयि-माध्यन्दिन-शुक्लयजुर्वेदसहिता-पाठः
ईशा वास्यमिदं सर्व॑ यत्किज्व जगत्यां जगतू।
तेन त्यक्तेन भुज्जीथाः मा गृधः कस्य स्विद् धनमू।॥ ।।
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविशेच्छतं समाः।
एवं त्वयि नान््ययेतोउस्ति न कर्म लिप्यते नरे ।॥2॥॥
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।
ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जना:। 8 ॥।
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Particulars (विवरण) | (आकार, लेखक, भाषा,पृष्ठ की जानकारी) |
ईशावास्योपनिषद् | Ishavasyopanishad | |
Prof. Yogesh Chandra Dubey | |
साहित्य / Literature |
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