तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि इन हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Teerthon Mein Tarpan Evam Shraddh Ki Sankshipt Vidhi PDF Download Free
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There is a law to perform tarpan and shraadh in all the pilgrimages. Therefore, both of these will be briefly discussed here. The knowledge of the ritual and method should be obtained from the scriptures of your branch. Here the simplest authentic tarpan method is being written according to the median branch.
Snanang Tarpan - After bathing in Gangadi pilgrimages, bathing-tarpan should be done. It is considered necessary to do this before the evening.
Snanadanantaram yavattarpayetpitrudevatah. Snananga tarpanam vidyakkadachinnaiva hapayet
This is the reason that it is not prohibited even in Asouch and it is also prescribed for living ancestors.
Asauchelapi tadbhavati.....Atra dev pitanamevejyatvat sangasya
Chanushtheyatvajjeevitpitrikasyapyadhikarah.
(Victory of Acharratna in Nityakarma Pujaprakash p.29) For the living ancestors, only the last part of it is discarded, which will be directed at the place. In this, Tilak is done with water only. Take water in the left hand and do urdhwapundu with the right thumb. After that do tripundu with three fingers.
• The method of offering Jalanjali is to make anjali by joining both the hands. Fill it with water and lift it as high as the horn of a cow and leave Anjali in the water.
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तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि पीडीएफ में डाउनलोड करे
तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि-
सभी तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध करने का विधान है। अतः यहाँ इन दोनों की संक्षिप्त चर्चा की जायगी। तर्पणक्रम एवं विधि का ज्ञान अपनी शाखा के ग्रन्थों से प्राप्त करना चाहिये। यहाँ माध्यन्दिन शाखा के अनुसार सरलतम प्रामाणिक तर्पणविधि लिखी जा रही है।
स्नानाङ्ग तर्पण - गङ्गादि तीर्थों में स्नान के पश्चात् स्नानाङ्ग-तर्पण करना चाहिये। संध्या के पहले इसका करना आवश्यक माना गया है।
स्नानादनन्तरं यावत्तर्पयेत्पितृदेवताः। स्नानाङ्गं तर्पणं विद्वान्कदाचिन्नैव हापयेत् ॥
यही कारण है कि आशौच में भी इसका निषेध नहीं होता तथा जीवित - पितृकों के लिये भी यह विहित हैं।
आशौचेऽपि तद्भवति.....अत्र देव पितॄणामेवेज्यत्वात् साङ्गस्य चानुष्ठेयत्वाज्जीवितपितृकस्याप्यधिकारः।।
(नित्यकर्म पूजाप्रकाश पृ. 29 में आचाररत्न का वचन ) जीवित पितृकों के लिये केवल इसका अन्तिम अंश त्याज्य होता है, जिसका निर्देश यथास्थान किया जायगा। इसमें तिलक जल से ही किया जाता है। बायें हाथ में जल लेकर दाहिने अंगूठे से ऊर्ध्वपुण्डू कर ले। तदनन्तर तीन अँगुलियों से त्रिपुण्डू करे।
•जलाञ्जलि देने की रीति यह है कि दोनों हाथों को सटाकर अञ्जलि बना ले। इसमें जल भरकर गो के सींग जितना ऊँचा उठाकर जल में ही अञ्जलि छोड़ दे। Teerthon Mein Tarpan Evam Shraddh Ki Sankshipt Vidhi Hindi PDF Book, तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि PDF Free download, तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि PDF किताब, तीर्थों में तर्पण एवं श्राद्ध की संक्षिप्त विधि बुक फ्री डाउनलोड, tarpan vidhi in hindi, pitru tarpan, pitru tarpan vidhi. pitru tarpan mantra pdf, tarpan vidhi pdf, pitru tarpan mantra in sanskrit pdf.
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