पितर हमारे अदृश्य सहायक इन हिंदी | Pitar Hamare Adrushya Sahayak PDF Download Free
Pitar Hamare Adrushya Sahayak Book in PDF Download
Pitra: Our invisible helper is how it can be possible to carry on the process of mutual contact - spiritual practice and exchange. Many spirits take uncouth measures when they do not get success in their efforts. Basically humans are frightened and terrified by this feeling. Whereas with how many of them the love, courtesy and cooperation can go on with the loved ones. A society of a country to another country, a person of another society, when tied in the affectionate cooperation of another person, yields useful results, then there is no reason to ignore human beings like our own sometime ago so that they lose their bodies and In the subtle body - living in space. Spirituality has that power to open the door for emotional and functional cooperation between these two people.
Angry, distressed, sick, distressed, generous human compassion to the victims - it can be easily possible to help the departed relatives who are in poor condition, especially those who expect cooperation. By comforting angry souls who are indulging in harm to others, relief can be relieved from their wrathful vengeance. They are called phantom-wrathed, dissatisfied, degraded souls and Pitras are those who have been leading an elevated life. Like life, they want to come and help someone and contribute to making things better, like reaching the post-mortem. With the help of such souls, how many have received so many important grants. This issue is one that can be opened on spiritual grounds for a more comprehensive and planned purpose. Surely both the parties will get benefit and satisfaction in this process.
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पितर हमारे अदृश्य सहायक पीडीएफ में डाउनलोड करे
पितर: हमारे अदृश्य सहायक है कि पारस्परिक सम्पर्क - साधना और आदान-प्रदान का सिलसिला चलाना किस प्रकार सम्भव हो सकता है। प्रयत्न में सफलता न मिलने पर कई प्रेतात्माएँ अनगढ़ उपाय करती हैं। मूलतः मनुष्य इस अनुभूति से भयभीत एवं आतंकित होते हैं। जब कि उनमें से कितने ही प्रियजनों के साथ स्नेह, सौजन्य एवं सहयोग का सिलसिला चल सकता है। एक देश दूसरे देश की एक समाज दूसरे समाज की एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के स्नेह सहयोग में बँध जाने पर उपयोगी परिणाम उपलब्ध करते हैं, फिर कोई कारण नहीं कि कुछ समय पूर्व के अपने ही जैसे मनुष्यों की इसलिए उपेक्षा करें कि वे शरीर खो बैठे और सूक्ष्म शरीर में- अन्तरिक्ष में निवास कर रहे हैं। आत्मिकी में वह सामर्थ्य है कि वह इन दोनों लोगों के बीच भावनात्मक एवं क्रियात्मक सहयोग का द्वार खोल सके।
क्रुद्ध, विक्षुब्ध, रुग्ण, व्यथित, पीड़ितों को सहकार देने वाली उदार मानवी करुणा–विपन्न स्थिति में पड़े हुए प्रेतात्माओं की विशेषतया सहयोग की आशा अपेक्षा करने वाले दिवंगत सम्बन्धियों की सहायता करना तो सरलतापूर्वक सम्भव हो सकता है। दूसरों को हानि पहुँचाने में निरत, क्रुद्ध आत्माओं को सान्त्वना देकर उनके आक्रोश प्रतिशोध से कष्ट उठाने वालों को राहत दिलाई जा सकती है। प्रेत-क्रुद्ध, असन्तुष्ट, दुर्गतिग्रस्त आत्माओं को कहते हैं और पितर वे हैं, जो श्रेष्ठ समुन्नत जीवन जीते रहे हैं। वे जीवनकाल की तरह, मरणोत्तर स्थिति में पहुँचने की तरह किसी के आने-किसी को सहायता पहुँचाने और परिस्थितियाँ अच्छी बनाने में योगदान करना चाहते हैं। ऐसी आत्माओं की सहायता से कितनों ने ही कितने ही प्रकार के महत्त्वपूर्ण अनुदान प्राप्त किए हैं। यह प्रकरण ऐसा है जिसे आत्मिकी आधार पर अधिक अच्छी तरह-अधिक व्यापक एवं योजनाबद्ध प्रयोजनों के लिए खोला जा सकता है। निश्चय ही इस प्रक्रिया में दोनों ही पक्षों को लाभ मिलेगा और सन्तोष होगा।
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