Siddhidayak Sadhnaao Ke Parikshit Prayog Book in PDF Download
Tested Experiments of Siddhi Sadhanas
Philosophy of Gayatri - From a young child, a giant banyan tree is embedded in Vatbeej. The essence of the entire human body is negligibly contained in the sperm. The giant texts are taken off on a tiny bit of microfilm. In the same way, the essence of the entire deity culture is contained in a small Gayatri Mantra. Gayatri has been called the mother and presiding officer of Indian culture
Gayatri is Brahmavidya. He is called Kamadhenu. The Gods of heaven, by drinking this drink, enjoy the Sompan and remain always healthy, healthy and young. Gayatri is called Kalpavriksha. The one who takes shelter of it does not remain in want. Gayatri is Paras, whose shelter - the one who loses the hardness of iron and attains gold-like aura and dignity. Gayatri is the nectar. The one who descends it in the interval becomes immortal. Heaven and liberation are considered the ultimate goal of life. Both of these are unintentionally received by Gayatri in the form of ajar grant to the seeker. It is believed that no one who takes Gayatri Mata's sincere heart will never be disappointed. In times of crisis, she becomes a swimmer. For the purposes of upliftment, he gets proper boon. By removing the disorientation of the darkness of ignorance and attaining the right path of the right path and reaching the goal of ultimate progress, it is easily possible by taking shelter of Mother Gayatri.e.
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सिद्धिदायक साधनाओं के परीक्षित प्रयोग
गायत्री का तत्त्वज्ञान-नन्हे से वटबीज में विशालकाय बरगद का वृक्ष सन्निहित रहता है। मनुष्य की समूची काया का सार-संक्षेप नगण्य से शुक्राणु में समाया होता है। विशालकाय ग्रंथ जरा से माइक्रोफिल्म पर उतार लिए जाते हैं। ठीक इसी प्रकार समूची देव संस्कृति का सारतत्त्व छोटे से गायत्री मंत्र में समाविष्ट है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी और अधिष्ठात्री कहा गया है।
गायत्री ब्रह्मविद्या है। उसी को कामधेनु कहते हैं। स्वर्ग के देवता इसी का पयपान करके सोमपान का आनंद लेते और सदा नीरोग, परिपुष्ट एवं युवा बने रहते हैं। गायत्री को कल्पवृक्ष कहा गया है। इसका आश्रय लेने वाला अभावग्रस्त नहीं रहता। गायत्री ही पारस है जिसका आश्रय - सान्निध्य लेने वाला लोहे जैसी कठोरता-कालिमा खोकर स्वर्ण जैसी आभा और गरिमा उपलब्ध करता है। गायत्री ही अमृत है। इसे अंतराल में उतारने वाला अजर-अमर बनता है। स्वर्ग और मुक्ति को जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। यह दोनों ही गायत्री द्वारा साधक को अजस्र अनुदान के रूप में अनायास ही मिलते हैं। मान्यता है कि गायत्री माता का सच्चे मन से आँचल पकड़ने वाला कभी कोई निराश नहीं रहता। संकट की घड़ी में वह तरण-तारिणी बनती है। उत्थान के प्रयोजनों में उसका समुचित वरदान मिलता है। अज्ञान के अंधकार का भटकाव दूर करके और सन्मार्ग का सही रास्ता प्राप्त करके चरम प्रगति के लक्ष्य तक जा पहुँचना, गायत्री माता का आश्रय लेने पर सहज संभव होता है।
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